Thursday, May 21, 2020

एक मित्र ने पूछा है कि अगर हम बच्चों को कोई भी शिक्षा न दें, तब तो बच्चे बिगड़ जाएंगे। अगर हम उनको आदर्श न सिखाएं, अगर हम उनको सिद्धांत न सिखाएं, तो वे बिगड़ जाएंगे।



बड़े मजे की बात है कि आप तीन हजार साल से सिखा रहे हैं, फिर भी वे बिगड़ क्यों गए हैं? आदर्श भी सिखा रहे हैं, शिक्षा भी दे रहे हैं, सिद्धांत भी, गीता भी पिला रहे हैं, रामायण, कुरान, बाइबिल भी पिला रहे हैं और फिर भी वे बिगड़ गए? तीन हजार साल से आप क्या कर रहे हैं और?


तो मैं यह नहीं कहता हूं कि कुछ भी न सिखाएं। मैं यह कहता हूं कि उनके ऊपर थोपें नहीं, उनके भीतर जो छिपा है, उसके सहारे बनें, उसे विकसित करें।


दो बातें हैं। एक बच्चे पर हम थोप दें कोई बात, तो बच्चे की आत्मा हमेशा के लिए परतंत्र हो जाती है। और बच्चे के भीतर जो छिपी हुई शक्तियां हैं, उनको सहारा दें, उनको विकसित होने का मौका दें, समझें उस बच्चे को और उन-उन ताकतों को जो उसके भीतर सोई हैं, जगाएं, तो बच्चा विकसित होगा। बच्चे के ऊपर ढांचे नहीं देने होते, उसकी चेतना को दिशा देनी होती है। और हम ढांचे देते रहे हैं।


हम छोटे-छोटे बच्चों को क्या कहते हैं? हम उनसे कहते हैंः महावीर जैसे बनो, बुद्ध जैसे बनो, गांधी जैसे बनो। यह बात एकदम गलत है। कोई बच्चा क्यों महावीर जैसा बने? वह खुद बनने को पैदा हुआ है। कोई महावीर की ट्रू कॉपी बनने को पैदा हुआ है? उसकी जिंदगी अपनी है, वह अपनी आत्मा लेकर आया है, क्यों बने महावीर जैसा? क्यों बुद्ध जैसा बने? क्यों गांधी जैसा बने? वह खुद अपने जैसा बनेगा। लेकिन हम उसे सिखा रहे हैं कि फलां जैसे बनो, उस जैसे बनो। और इस सिखाने का परिणाम यह होगा कि अगर बच्चा बुद्ध, महावीर और राम जैसा बनने की कोशिश में पड़ गया, तो एक बात तय है, वह जो होने को पैदा हुआ था, वह नहीं बन पाएगा। और वही होता उसका विकास, वही होती उसकी आत्मा, वह नहीं हो पाएगा। और जब उसका विकास नहीं हो पाएगा, उसकी आत्मा पूर्णता को नहीं पा पाएगी, तो वह होगा दुखी, पीड़ित, परेशान, चिंतित, हैरान। उसकी समझ में नहीं आएगा कि यह क्या हो रहा है?


और क्या आपको पता है, आज तक जमीन पर कोई एक आदमी दूसरे आदमी जैसा हुआ है? बुद्ध को हुए ढाई हजार साल हो गए, फिर दूसरा बुद्ध क्यों नहीं पैदा हुआ अब तक? ढाई हजार साल कोई कम वक्त है? राम को हुए और भी वक्त हो गया, अब तक दूसरा राम क्यों पैदा नहीं हुआ? कोई कम समय मिला है राम को होने में फिर दुबारा? लेकिन सच्चाई यह है... और हमारी आंखें इतनी अंधी हैं कि हम देखते नहीं, फिर भी हम दोहराए चले जा रहे हैं--राम जैसे बनो, कृष्ण जैसे बनो, क्राइस्ट जैसे बनो। सच्चाई यह है कि कोई आदमी कभी किसी दूसरे जैसा न बन सकता है, न बनने की जरूरत है। हर आदमी यूनीक है, हर आदमी बेजोड़ है, हर आदमी अद्वितीय है। परमात्मा अदभुत कलाकार मालूम होता है, वह एक ही चीज को दुबारा पैदा ही नहीं करता। इतना इनवेंटिव मालूम होता है, इतना आविष्कारक। उसकी आविष्कार की बुद्धि चुकती ही नहीं है। वह एक ढांचे को बनाता है और तोड़ देता है, फिर नये आदमी बनाता है। वह कोई फैक्ट्री नहीं खोली हुई है उसने कि जहां ढांचे लगे हुए हैं, सांचे लगे हुए हैं, एक सी मॉडल की फोर्ड गाड़ियां निकलती जा रही हैं हजारों। एक-एक आदमी अद्वितीय और बेजोड़ है। सृष्टि की अदभुत से अदभुत लीलाओं में यह एक लीला है कि हर आदमी बेजोड़ और अलग है। हर आदमी अपने जैसा है, और किसी जैसा भी नहीं है।


लेकिन हम बच्चों को सिखाते हैंः दूसरों जैसे हो जाओ। यह शिक्षा बुनियादी रूप से गलत है। इसका फल क्या होगा? उस बच्चे का व्यक्तित्व मर जाएगा। उधार होगा उसका व्यक्तित्व। और अगर वह बन भी गया किसी जैसा, तो वह नकल होगी, सच्चाई नहीं। राम तो नहीं बन पाएगा, रामलीला का राम जरूर बन सकता है। और रामलीला के राम की कोई भी जरूरत दुनिया में नहीं है। क्योंकि रामलीला का राम एकदम झूठा आदमी है, एकदम झूठा, उसमें कोई भी मतलब नहीं है। पाखंड इसी से पैदा हुआ दुनिया में, दूसरे जैसे बनने की कोशिश से।


अपने माहीं टटोल

ओशो


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