Osho Whatsapp Group
To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...
Friday, May 14, 2021
एक और मित्र ने पूछा है कि आपने कहा कि व्यक्ति जैसा भाव करता र्ह, वैसा ही बन जाता है। तो क्या मुक्त होने के भाव को गहन करने से वह मुक्त भी हो सकता है?
Thursday, May 13, 2021
सेक्स की मांग जो इंसान के दिल में है, और अश्लीलता की मांग, इन दोनों में थोड़ा वैचारिक...
आग्रह आक्रमण है
Tuesday, May 11, 2021
is it fair to take Sanyaas because you cannot solve your personal problems?
पिछले जन्मों का कर्म
एक व्यर्थ की धारणा हमें सिखा दी गई है कि तुम्हें दु:खी होना ही पड़ेगा, क्योंकि पिछले जन्मों का कर्म तुम्हें भोगना है। यह धारणा अगर मन में बैठ गई कि मैं पिछले जन्मों के कर्मों को भोग रहा हूं, तो सुख का उपाय कहां है? इतने—इतने जन्म! कितने—कितने जन्म! चौरासी कोटि योनियां! इनमें कितने पाप किए होंगे, थोड़ा हिसाब तो लगाओ! इन सारे पापों का फल भोगना है। सुख हो कैसे सकता है! दुख स्वाभाविक मालूम होने लगेगा। ये आदमी को दु:खी रखने की ईजादें हैं।
मैं तुमसे कहता हूं: कोई पाप नहीं किए हैं, कोई कर्म का फल नहीं भोगना है। तुम अभी जागे ही नहीं, तुम अभी हो ही नहीं, पाप क्या खाक करोगे! पाप बुद्ध कर सकते हैं। लेकिन बुद्ध पाप करते नहीं।
अकबर की सवारी निकलती थी और एक आदमी अपने मकान की मुंडेर पर चढ़ गया और गालियां बकने लगा। सम्राट को गालियां! तत्क्षण पकड़ लिया गया। दूसरे दिन दरबार में मौजूद किया गया। अकबर ने पूछा: तू पागल है! क्या कह रहा था? क्यों कह रहा था? उसने कहा मुझे क्षमा करें, मैंने कुछ कहा ही नहीं। मैंने शराब पी ली थी। मैं बेहोश था। मैं था ही नहीं! अगर आप मुझे दंड देंगे, तो ठीक नहीं होगा, अन्याय हो जाएगा। मैं शराब पीए था।
अकबर ने सोचा और उसने कहा: यह बात ठीक है; दोष शराब का था, दोष तेरा नहीं था। तू जा सकता है। मगर अब शराब मत पीना। शराब पीने का दोष तेरा था। शराब पीने के बाद जो कुछ तेरे मुंह से निकला, उसमें तेरा हाथ नहीं, यह बात सच है।
आज भी अदालत पागल आदमी को छोड़ देती है, अगर पागल सिद्ध हो जाए। क्यों? क्योंकि पागल आदमी का क्या दायित्व? किसी पागल ने किसी को गोली मार दी। अदालत क्षमा कर देती है, अगर सिद्ध हो जाए कि पागल है। क्योंकि पागल आदमी को क्या दोष देना, उसे होश ही नहीं है!
तुम होश में रहे हो? ये जो चौरासी कोटि योनियां जिनके संबंध में तुम शास्त्रों में पढ़ते हो, तुम होश में थे? तुम्हें एकाध की भी याद है? अगर तुम होश में थे, तो याद कहां है? तुम्हें एक बार भी तो याद नहीं आती कि तुम कभी वृक्ष थे, कि तुम कभी एक पक्षी थे, कि तुम कभी जंगल के सिंह थे। तुम्हें याद आती है कुछ? शास्त्र कहते हैं; तुम्हें याद नहीं। और तुम गुजरे हो चौरासी कोटि योनियों से।
तुम बेहोश थे, तुम मूर्च्छित थे। मूर्च्छा में जो भी किया गया, उसका क्या मूल्य है? परमात्मा अन्याय नहीं कर सकता। इस दुनिया की अदालतें भी इतना अन्याय नहीं करतीं, तो परमात्मा तो परम कृपालु है, वह तो महाकरुणावान है। सूफी कहते हैं—रहीम है, रहमान है, करुणा का स्रोत है। इस जगत की अदालतें, जिनको हम करुणा का स्रोत कह नहीं सकते, वे भी क्षमा कर देती हैं मूर्च्छित आदमी को।
मैं तुमसे कहता हूं बार—बार: तुम जागो, उसके बाद ही तुम्हारे कृत्यों का लेखा—जोखा हो सकता है। यह मैं एक अनूठी बात कह रहा हूं, जो तुमसे कभी नहीं कही गई है। मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं। मुझे चौरासी कोटि योनियों के पाप नहीं काटने पड़े और मैं उनके बाहर हो गया हूं। तुम भी हो सकते हो। तुम्हें भी काटने की झंझट में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है। और काट तुम पाओगे नहीं, वह तो सिर्फ दु:खी रहने का ढंग है। वह तो दुख को एक व्याख्या देने का ढंग है। वह तो दुख में भी अपने को राजी कर लेने की व्यवस्था, आयोजन है। क्या करें, अगर दुख है तो जन्मों—जन्मों के पापों के कारण है। जब कटेंगे पाप, जब फल मिलेगा, तब कभी सुख होगा—होगा आगे कभी।
ऐसा ही तुम पहले भी सोचते रहे, ऐसा ही तुम आज भी सोच रहे हो, ऐसा ही तुम कल भी सोचोगे, अगले जन्म में भी सोचोगे। जरा सोचो, फर्क क्या पड़ेगा? अगले जन्म में तुम कहोगे कि पिछले जन्मों के पापों का फल भोग रहा हूं। और अगले जन्म में भी तुम यही कहोगे। तुम सदा यही कहते रहोगे, तुम सदा यही कहते रहे हो। तुम दुख से बाहर कब होओगे? और तुम्हें किसी एक जन्म की याद नहीं है। तुम्हें—पिछले जन्मों की तो फिक्र छोड़ो—तुम्हें अभी भी याद नहीं है कि तुम क्या कर रहे हो। तुम अभी भी होश में कहां हो? तुम्हारे पास होश का दीया कहां है?
सिर्फ बुद्ध—पुरुष अगर पाप करें, तो उत्तरदायी हो सकते हैं। मगर वे पाप करते नहीं, क्योंकि जाग्रत व्यक्ति कैसे पाप करे? अब तुम मेरी बात समझो। जाग्रत व्यक्ति कैसे पाप करे? और सोया व्यक्ति, मैं कहता हूं, कैसे पुण्य करे? जैसे अंधा आदमी तो टटोलेगा ही, ऐसा मूर्च्छित आदमी तो गलत करेगा ही। जैसे अंधा आदमी टेबल—कुर्सी से टकराएगा ही। दरवाजे से निकलने के पहले हजार बार उसका सिर दीवारों से टकराएगा; स्वाभाविक है। आंख वाला आदमी क्यों टकराए? आंख वाला आदमी दरवाजे से निकल जाता है। आंख वाले आदमी को दीवारें बीच में आती ही नहीं, न कुर्सियां, न टेबलें, कुछ भी बीच में नहीं आता। न वह टटोलता है, न वह पूछता है कि दरवाजा कहां है? सिर्फ दरवाजे से निकल जाता है। हां, आंख वाला आदमी अगर दीवार से टकराए, तो हम दोष दे सकते हैं, कि यह तुम क्या कर रहे हो? मगर आंख वाला टकराता नहीं, और जिसको हम दोष देते हैं, वह अंधा है।
Saturday, May 8, 2021
बुद्ध ने कहा मेरी मूर्तियां मत बनाना...
.... तो जिन्होंने मूर्तियां
बनायीं उन्होंने बुद्ध
की आज्ञा तोड़ी।
लेकिन बुद्ध ने
यह भी कहा कि जो
ध्यान को उपलब्ध
होगा, समाधि जिसके
जीवन में खिलेगी,
उसके जीवन में
करुणा की वर्षा
भी होगी।
तो
जिन्होंने मूर्तियां बनायीं उन्होंने
करुणा के कारण बनायीं। बुद्ध के
चरण-चिह्न खो
न जाएं, और
बुद्ध के चरण-चिह्नों की छाया अनंत काल
तक बनी रहे।
कुछ
बात ही ऐसी थी कि
जिस आदमी ने कहा मेरी
मूर्तियां मत बनाना,
हमने अगर उसकी मूर्तियां
न बनाई होतीं
तो बड़ी भूल हो जाती।
जिन्होंने कहा था
हमारी मूर्तियां बनाना,
उनकी हम छोड़ भी देते,
न बनाते, चलता।
बुद्ध ने कहा था मेरी
पूजा मत करना,
अगर हमने बुद्ध
की पूजा न की होती,
तो हम बड़े चूक जाते।
यह
सौभाग्य की घड़ी कभी-कभी,
सदियों में आती है, जब
कोई ऐसा आदमी
पैदा होता है जो कहे
मेरी पूजा मत करना। यही
पूजा के योग्य
है। जो कहता है मेरी
मूर्ति मत बनाना,
यही मूर्ति बनाने
के योग्य है।
सारे जगत के मंदिर इसी
को समर्पित हो
जाने चाहिए। .
बुद्ध
ने कहा मेरे
वचनों को मत पकड़ना, क्योंकि
जो मैंने कहा
है उसे जीवन
में उतार लो।
दीये की चर्चा
से क्या होगा,
दीये को सम्हालो।
शास्त्र मत बनाना,
अपने को जगाना।
लेकिन जिस आदमी
ने ऐसी बात कही, अगर
इसका एक-एक वचन लिख
न लिया गया
होता, तो मनुष्यता
सदा के लिए दरिद्र रह
जाती। कौन तुम्हें
याद दिलाता ' कौन
तुम्हें बताता कि
कभी कोई ऐसा भी आदमी
हुआ था, जिसने
कहा था मेरे शब्दों को
अग्नि में डाल देना, और
मेरे शास्त्रों को
जलाकर राख कर देना, क्योंकि
मैं चाहता हूं
जो मैंने कहा
है वह तुम्हारे
भीतर जीए, किताबों
में नहीं? लेकिन
यह कौन लिखता?
तो
निश्चित ही जिन्होंने
मूर्तियां बनायीं, बुद्ध की
आज्ञा तोड़ी। लेकिन
मैं तुमसे कहता
हूं उन्होंने ठीक
ही किया। बुद्ध
की आज्ञा तोड़
देने जैसी थी।
नहीं कि बुद्ध
ने जो कहा था, वह
गलत था। बुद्ध
ने जो कहा था, बिलकुल
सही कहा था। बुद्ध से
गलत कहा कैसे
जा सकता है २ बुद्ध
ने बिलकुल सही
कहा था, मेरी
मूर्तियां मत बनाना,
क्योंकि कहीं मूर्तियों
में तुम मुझे
न भूल जाओ,
कहीं मूर्तियों में
मैं खो न जाऊं, कहीं
मूर्तियां इतनी ज्यादा
न हो जाएं कि मैं
दब जाऊं। तुम
सीधे ही मुझे देखना।
लेकिन
हम इतने अंधे
हैं कि सीधे तो हम
देख ही न पाएंगे। हम तो टटोलेंगे। टटोलकर ही
शायद हमें थोड़ा
स्पर्श हो जाए। टटोलने के
लिए मूर्तियां जरूरी
हैं। मूर्तियों से
ही हम रास्ता
बनाएंगे। हम उस
परम शिखर को तो देख
ही न सकेंगे
जो बुद्ध के
जीवन में प्रगट
हुआ। वह तो बहुत दूर
है हमसे। आकाश
के बादलों में
खोया है वह शिखर। उस
तक हमारी आंखें
न उठ पाएंगी।
हम तो बुद्ध
के चरण भी देख लें,
जो जमीन पर हैं, तो
भी बहुत। उन्हीं
के सहारे शायद
हम बुद्ध के
शिखर पर भी कभी पहुंच
जाएं, इसकी आशा
हो सकती है।
तो
मैं तुमसे कहता
हूं जिन्होंने आशा
तोड़ी उन्होंने ही
आज्ञा मानी। जिन्होंने
वचनों को सम्हालकर
रखा, उन्होंने ही
बुद्ध को समझा।
लेकिन तुम्हें बहुत
जटिलता होगी, क्योंकि
तर्क बुद्धि तो
बड़ी नासमझ है।
ऐसा
हुआ। एक युवक मेरे पास
आता था। किसी
विश्वविद्यालय में अध्यापक
था। बहुत दिन
मेरी बातें सुनीं,
बहुत दिन मेरे
सत्संग में रहा।
एक रात आधी रात आया
और कहा, जो तुमने कहा
था वह मैं पूरा कर
चुका। मैंने अपने
सब वेद, उपनिषद,
गीता कुएं में
डाल दीं। मैंने
उससे कहा, पागल!
मैंने वेद-उपनिषद
को पकड़ना मत,
इतना ही कहा था। कुएं
में डाल आना,
यह मैंने न कहा था।
यह तूने क्या
किया?
वेद-उपनिषद को
न पकड़ो तो ही वेद-उपनिषद समझ
में आते हैं।
वेद- उपनिषद को
समझने की कला यही है
कि उनको पकड़
मत लेना, उनको
सिर पर मत ढो लेना।
उनको समझना। समझ
मुक्त करती है।
समझ उससे भी मुक्त कर
देती है जिसको
तुमने समझा। कुएं
में क्यों फेंक
आया? और तू सोचता है
कि तूने कोई
बड़ी क्रांति की,
मैं नहीं सोचता।
क्योंकि अगर वेद-उपनिषद व्यर्थ
थे, तो आधी रात में
कुएं तक ढोने की भी
क्या जरूरत थी
2 जहां पड़े थे पड़े रहने
देता। कुएं में
फेंकने वही जाता
है, जिसने सिर
पर बहुत दिन
तक सम्हालकर रखा
हो। कुएं में
फेंकने में भी आसक्ति का
ही पता चलता
है। तुम उसी से घृणा
करते हो जिस से तुमने
प्रेम किया हो।
तुम उसी को छोड़कर भागते
हो जिससे तुम
बंधे थे।
एक
संन्यासी मेरे पास
आया और उसने कहा, मैंने
पत्नी-बच्चे सबका
त्याग कर दिया।
मैंने उससे पूछा,
वे तेरे थे कब? त्याग
तो उसका होता
है जो अपना हो। पत्नी
तेरी थी? सात चक्कर लगा
लिए थे आग के आसपास,
उससे तेरी हो गई थी?
बच्चे तेरे थे?
पहली तो भूल वहीं हो
गई कि तूने उन्हें अपना
माना। और फिर दूसरी भूल
यह हो गई कि उनको
छोड़कर भागा। छोड़ा
वही जा सकता है जो
अपना मान लिया
गया हो। बात कुल इतनी
है, इतना ही जान लेना
है कि अपना कोई भी
नहीं है, छोड़कर
क्या भागना है!
छोड़कर भागना तो
भूल की ही पुनरुक्ति है।
जिन्होंने
जाना, उन्होंने कुछ
भी छोड़ा नहीं।
जिन्होंने जाना, उन्होंने
कुछ भी पकड़ा नहीं। जिन्होंने
जाना, उन्हें छोड़ना
नहीं पड़ता, छूट
जाता है। क्योंकि
जब दिखाई पड़ता
है कि पकड़ने
को यहां कुछ
भी नहीं है,
तो मुट्ठी खुल
जाती है।
बुद्ध
की मृत्यु हुई-तब तक
तो किसी ने बुद्ध का
शास्त्र लिखा न था, ये
धम्मपद के वचन तब तक
लिखे न गये थे-तो
बौद्ध भिक्षुओं का
संघ इकट्ठा हुआ।
जिनको याद हो, वे उसे
दोहरा दें, ताकि
लिख लिया जाए।
.
बड़े शानी भिक्षु
थे, समाधिस्थ भिक्षु
थे। लेकिन उन्होंने
तो कुछ भी याद न
रखा था। जरूरत
ही न थी। समझ लिया,
बात पूरी हो गई थी।
जो समझ लिया,
उसको याद थोड़े
ही रखना पड़ता
है। तो उन्होंने
कहा कि हम कुछ कह
तो सकते हैं,
लेकिन वह बड़ी दूर की
ध्वनि होगी। वे
ठीक-ठीक वही शब्द न
होंगे जो बुद्ध
के थे। उसमें
हम भी मिल गये हैं।
वह हमारे साथ
इतना एक हो गया है
कि कहां हम,
कहां बुद्ध, फासला
करना मुश्किल है।
तो
अज्ञानियों से पूछा
कि तुम कुछ कहो, इतनी
तो कहते हैं
कि मुश्किल है
तय करना। हमारी
समाधि के सागर में बुद्ध
के वचन खो गये। अब
हमने सुना, हमने
कहा कि उन्होंने
कहा, इसकी भेद-रेखा नहीं
रही। जब कोई स्वयं ही
बुद्ध हो जाता है, तो
भेद-रेखा मुश्किल
हो जाती है।
क्या अपना, क्या
बुद्ध का ' अज्ञानियों
से पूछो।
अज्ञानियों
ने कहा, हमने
सुना तो था, लेकिन समझा
नहीं। सुना तो था, लेकिन
बात इतनी बड़ी
थी कि हम सम्हाल न
सके। सुना तो था, लेकिन
हम से बड़ी थी घटना,
हमारी स्मृति में
न समाई, हम
अवाक और चौंके
रह गये। घड़ी
आई और बीत गई, और
हम खाली हाथ
के खाली हाथ
रहे। तो कुछ हम दोहरा
तो सकते हैं,
लेकिन हम पक्का
नहीं कह सकते कि बुद्ध
ने ऐसा ही कहा था।
बहुत कुछ छूट गया होगा।
और जो हमने समझा था,
वही हम कहेंगे।
जो उन्होंने कहा
था, वह हम कैसे कहेंगे?
तो
बड़ी कठिनाई खड़ी
हो गई। अज्ञानी
कह नहीं सकते,
क्योंकि उन्हें भरोसा
नहीं। ज्ञानियों को
भरोसा है, लेकिन
सीमा-रेखाएं खो
गई हैं।
फिर
किसी ने सुझाया,
किसी ऐसे आदमी
को खोजो जो दोनों के
बीच में हो। बुद्ध के
साथ बुद्ध का
निकटतम शिष्य आनंद
चालीस वर्षों तक
रहा था। लोगों
ने कहा, आनंद
को पूछो! क्योंकि
न तो वह अभी बुद्धत्व
को उपलब्ध हुआ
है और न वह अज्ञानी
है। वह द्वार
पर खड़ा है। इस पार
संसार, उस पार बुद्धत्व, चौखट पर खड़ा है,
देहली पर खड़ा है। और
जल्दी करो, अगर
वह देहली के
पार हो गया, तो उसकी
भी सीमा-रेखाएं
खो जाएंगी।
आनंद
ने जो दोहराया,
वही संगृहीत हुआ।
आनंद की बड़ी करुणा है
जगत पर। अगर आनंद न
होता, बुद्ध के
वचन खो गये होते। और
बुद्ध के वचन खो गये
होते, तो बुद्ध
का नाम भी खो गया
होता।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
Popular Posts
-
यह प्रश्न उन्होंने इतनी बार पूछा है कि मुझे शक है , तुम्हें अपनी मां से यौन-संबंध करना है कि अपनी बेटी से , किससे करना है ? यह प्रश्न ...
-
To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...
-
Mullah Nasruddin married a very ugly woman, the ugliest possible. Naturally the friends were puzzled and they asked Mullah, ’You have mone...
-
The first thing: for a patient to go to the doctor, you must make him realize that he is sick; otherwise there is no need to go to the doc...
-
I am not teaching a doctrine. Teaching a doctrine is rather meaningless. I am not a philosopher; my mind is anti philosophical. Philosophy...
-
[The therapist who conducts the Soma group, said she had allowed a couple of participants to conduct a few sessions in the group, and it t...
-
I have not said that that all women are really soft, feminine and loving. Neither are all men aggressive, violent, ambitious, hard. Becaus...
-
YOUR MIND IS MIGHTY SLOW. Five hundred miles per hour, only?! And do you think this is speed? Mighty slow you are. Mind knows no speed it ...
-
Osho: No, there is no question of good purpose or bad purpose. Mind constantly deludes you. Question: Maybe we can give it something ver...
-
Never act out of fear. Don’t be worried about my body, it is okay. Don’t listen to my body but to me. My body is always a little strange......