Tuesday, September 22, 2015

प्रार्थना और वासना 2

अगर कोई मां अपने बच्चे को गिरने ही न दे, फिर बच्चा चलना नहीं सीख पाएगा। गिरने देना होगा। उसके घुटने भी टूटेंगे, चमड़ी भी छिलेगी, कभी खून भी गिरेगा। उसे गिरने देना होगा। ऐसे ही वह एक दिन खड़ा होगा। गिर गिरकर खड़ा होगा। खड़े होने के पीछे हजार बार गिरना जुड़ा है। घुटने के बल सरकेगा पहले। तुम यह मत कहना उससे कि यह ठीक नहीं, यह मनुष्य की गरिमा से नीचे है। घुटने के बल सरकता है मर्द बच्चा होकर? खड़ा हो! पहले दिन से तुम खड़ा करना चाहोगे, वह कभी खड़ा ही नहीं हो पाएगा। उसे घुटने के बल भी सरकने देना।

वासना ऐसी ही है जैसे प्रार्थना घुटने के बल सरक रही है। प्रार्थना ऐसी ही है जैसे बच्चा खड़ा हो गया। अब सरकना नहीं पड़ता जमीन पर। अब योग्य हो गए पैर। अब मजबूत हो गए पैर।

परमात्मा जिन अंधेरों में ले जाए, जाना। श्रद्धावान वही है। उसी को मैं श्रद्धालु कहता हूं, जो भागता ही नहीं; जो कहता है, जो दिखाओगे, देखेंगे; जहां ले जाओगे, जाएंगे, जहां गिराओगे, गिरेंगे; जो भूल करवाओगे, करेंगे। तुम जो करोगे, जो तुम्हारी मर्जी है, होने देंगे। हम सब तुम्हारी मर्जी पर छोड़ते हैं। ऐसा आदमी एक दिन पककर आता है। उसी पकान में वह माधुर्य है जिसका नाम प्रार्थना है। प्रार्थना ऊपर से उतरती है।

ओशो 

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