Monday, November 2, 2015

संतत्व का जन्म

एक आदमी हवाई जहाज का पायलट है। हवाई जहाज पर अपने एक मित्र को घुमाने ले गया। केलीफोर्निया की सुंदर घाटी के ऊपर वे उड़ रहे हैं। नीचे एक झील आती है। और वह पायलट अपने मित्र से कहता है, ‘बड़ी अजीब बात है। जब मैं छोटा बच्चा था, तो इस झील पर मैं मछलियां पकड़ता था। और जब मैं कांटा डालकर बैठा रहता, मछलियां पकड़ता, ऊपर हवाई जहाज उड़ते तो मेरा मन कहता था, कब वह सौभाग्य मिलेगा, जब मैं पायलट हो जाऊंगा! अब मैं पायलट हो गया। अब मैं इस झील पर से जब भी निकलता हूं, सोचता हूं कब रिटायर्ड हो जाऊंगा कि फिर मछलियां मारूं?’

मन ऐसा है! अब वह कहता है, बस एक ही सुख मालूम पड़ता है कि कब छुटकारा मिले इस सबसे, और बैठूं झील पर, मछलियां मारूं! कोई चिंता नहीं मछलियां मारने में। और पहले मैं मछलियां मारता ही था, लेकिन तब पायलट होना चाहता था।

तुम्हारा मन, जब तुम दुकान में हो तो मंदिर में जाएगा। जब तुम मंदिर में हो तब दुकान ले जाएगा। तुम्हारा मन तुम्हें सदा विपरीत में बुलाता रहेगा। जब तुम जागोगे और दोनों को छोड़ दोगे, तब संतत्व का जन्म है।

 बिन बाती बिन तेल

ओशो 

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