Tuesday, February 2, 2016

जीसस कहते है, ‘श्रद्धा पहाड़ों को भी हिला सकती है

श्रद्धा पहाड़ों को हिला सकती है। और यदि न हिला सके तो उसका अर्थ है कि तुम्‍हें श्रद्धा नहीं है ऐसा नहीं कि श्रद्धा पहाड़ों को नहीं हिला सकती। तुम्‍हारी श्रद्धा पहाड़ों को नहीं हिला सकती, क्‍योंकि तुम्‍हें श्रद्धा ही नहीं है।

विश्‍वास की घटना पर बड़ी शोध चली है। और विज्ञान बहुत से अविश्‍वसनीय निष्‍कर्षों पर पहुंच रहा हे। धर्म ने तो सदा से ही उन्‍हें माना है। लेकिन विज्ञान भी अंतत: उन्‍हीं निष्‍कर्षों पर पहुंच रहा है। और उन निष्‍कर्षों पर उसे पहुंचना ही होगा, क्‍योंकि बहुत सी घटनाओं पर पहली बार खोज हो रही है।

जैसे, तुमने प्‍लैसिबो दवाइयों के बारे में सुना होगा। सैकड़ों ‘पैथियां’ संसार में चलती है एलोपैथी, आयुर्वेदिक, युनानी, होम्‍योपैथी, नेचरोपैथी सैकड़ों। और सभी का दावा है कि वे रोग को ठीक कर सकते है। और वह ठीक करते भी है। उनके दावे गलत नहीं है। यह बड़ी अद्भुत बात है उनके निदान अलग-अलग है, उनके विचार अलग-अलग हे। एक ही रोग है और उसके सैकड़ों निदान है और सैकड़ों उपचार है, और हर उपचार काम देता है। वि यह प्रश्‍न उठना स्‍वभाविक है कि वास्‍तव में उपचार काम करता है या फिर रोगी का विश्‍वास काम करता है। और यह संभव है।


कई देशों में, कई विश्‍वविद्यालयों में, कई अस्‍पतालों में बहुत ढंगों से वे काम कर रह है। वे रोगी को पानी या कुछ और दे देते है। और रोगी यह मानता है कि उसे दवा दी गई हे। और केवल रोगी ही नहीं डाक्‍टर भी यह मानता है, क्‍योंकि उसे भी पता नहीं है। अगर डाक्‍टर को पता हो कि यह दवा है या नहीं तो उसका प्रभाव पड़ेगा। क्‍योंकि दवा से ज्‍यादा वह रोगी को विश्‍वास देता है।


तो जब तुम बड़े डाक्‍टर के पास जाते हो और ज्‍यादा पैसे देते हो तो जल्‍दी ठीक हो जाते हो। यह प्रश्‍न विश्‍वास का है। डाक्‍टर अगर तुम्‍हें चार पैसे की,सिर्फ चार पैसे की दवाई दे तो तुम्‍हें पूरा विश्‍वास होता हे। कि उसके कुछ होने वाला नहीं है। इतनी बड़ी बीमारी वाला इतना बड़ा रोग चार पैसे से कैसे ठीक हो सकता है। असंभव, इसके लिए विश्‍वास पैदा नहीं किया जा सकता। तो हर डाक्‍टर को अपने आस-पास विश्‍वास का एक वातावरण बनाना पड़ता है। वह वातावरण सहयोगी होता है।

तो अगर डाक्‍टर को पता हो कि वह जो दे रहा है वह सिर्फ पानी ही है तो वह भरोसे के साथ आश्‍वासन नही दे पाएगा। उसके चेहरे से पता चल जायेगा। उसके हाथों से पता चल जायेगा। उसके पूरे आचार-व्‍यवहार से पता चल जायेगा। और रोगी का अचेतन उससे प्रभावित होगा। डाक्‍टर का विश्‍वास जरूरी है। वह जितना आश्‍वस्‍त होगा उतना ही अच्‍छा है। क्‍योंकि उसका विश्‍वास संक्रामक होता है।


अब वे कहते है कि तुम कुछ दवा उपयोग करो तीस प्रतिशत रोगी तो करीब-करीब तत्‍क्षण ठीक हो जाएंगे। कुछ भी उपयोग करो। एलोपैथी, नेचरोपैथी, होम्‍योपैथी, या कोई भी पैथी—कुछ भी उपयोग करो, तीस प्रतिशत रोगी तत्‍क्षण ठीक हो जाएंगे।


वे तीस प्रतिशत विश्‍वास करने वाले लोग है। यही अनुपात हर जगह है। अगर मैं तुम्‍हारी और देखू तो तुममें से तीस प्रतिशत लोग ऐसे होंगे जो तत्‍क्षण रूपांतरित हो जाएंगे। एक बार विश्‍वास उनमें बैठ जाए तो वह उसी समय काम करना शुरू कर देता है। तीस प्रतिशत मनुष्‍यता को बिना किसी कठिनाई के तत्‍क्षण चेतना के नए तलों पर रूपांतरित किया जा सकता है। बदला जा सकता है। सवाल सिर्फ इतना है कि उनमें विश्‍वास कैसे जगाया जाये। एक बार विश्‍वास जग जाए तो कुछ भी उन्‍हें नहीं रोग सकता। हो सकता है कि तुम भी उन सौभाग्‍यशालियों में से, उन तीस प्रतिशत में से ही होओ। लेकिन मनुष्‍यता के साथ एक बड़ा दुर्भाग्‍य घटा है। और वह यह कि तीस प्रतिशत लोग निंदित हो गए है। समाज, शिक्षा,संस्‍कृति, सब उनकी निंदा करते है। उनको मूर्ख समझा जाता है।


नहीं, वे बड़ी संभावना वाले लोग है। उनके पास एक बड़ी ताकत है। लेकिन वे निंदित है। और थोथे बुद्धिजीवियों की प्रशंसा होती है। क्‍योंकि वे भाषा, शब्‍दों और तर्क के साथ खेल सकते है। इसलिए उनकी प्रशंसा की जाती है। वास्‍तव में वे नापुंसग है। अंतस के वास्‍तविक जगत में वे कुछ नहीं कर सकते। वे बस अपना दिमाग चला सकते हे। लेकिन युनिवर्सिटी उनके पास है। न्‍यूज मीडिया उनके पास है। एक तरह से वे लोग मालिक है। और निंदा करने में वे कुशल है। वे किसी भी चीज की निंदा कर सकते है। और मनुष्‍यता का यह तीस प्रतिशत हिस्‍सा जिसमें संभावना है, वे लोग जो विश्‍वास कर सकते है और रूपांतरित हो सकते है, वे शब्‍दों में इतने कुशल नहीं होते वे हो भी नहीं सकते। वे तर्क नहीं कर सकते,विवाद नहीं कर सकते। इसी कारण तो वह विश्‍वास कर सकते है।


लेकिन क्‍योंकि वे स्‍वयं के लिए तर्क नहीं दे सकते इसलिए वे खुद ही आत्‍म-निंदक बन गए है। वे सोचते है कि उनमें कुछ गलत है। अगर तुम विश्‍वास कर सको तो तुम्‍हें लगता है कि तुम्‍हारे साथ कुछ गलत है; अगर तुम संदेह कर सको तो तुम सोचते हो कि तुम महान हो। लेकिन संदेह की कोई ताकत नहीं है। संदेह के द्वारा कभी भी कोई अंतरतम तक, परम आनंद तक नहीं पहुंच सकता।

विज्ञान भैरव तंत्र 

ओशो 

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