Tuesday, February 2, 2016

सर्वज्ञ

ईसाई मानते है कि जीसस सर्वज्ञ है। लेकिन आधुनिक मन हंसेगा। क्‍योंकि वह सर्वज्ञ नहीं थे संसार के तथ्‍यों को जानने के अर्थ में वह सर्वज्ञ नहीं थे। वह नहीं जानते थे कि पृथ्‍वी गोल है वह नहीं जानते थे। वह तो यही मानते थे कि पृथ्‍वी चपटी है। सह नहीं जानते थे कि पृथ्‍वी लाखों वर्षों से अस्‍तित्‍व में है। वह तो यही मानते थे कि परमात्‍मा ने पृथ्‍वी को उनसे केवल चार हजार वर्ष पहले निर्मित किया है। जहां तक तथ्‍यों का, विषयगत तथ्‍यों का संबंध है, वह सर्वज्ञ नहीं थे।


लेकिन यह शब्‍द ‘सर्वज्ञ’ बिलकुल भिन्‍न है। जब पूरब के ऋषि ‘सर्वज्ञ’ कहते है तो उनका अर्थ तथ्‍यों को जानने से नहीं है उनका अर्थ है परिपूर्ण चेतन, परिपूर्ण जाग्रत, पूर्णत: अंतरस्‍थ, पूर्णत: संबुद्ध। तथ्‍यात्‍मक जानकारी से उनका कुछ लेना-देना नहीं है। उनका रस जानने की विशुद्ध घटना में है जानकरी में नहीं, जानने की गुणवत्‍ता में।

 
जब हम कहते है कि बुद्ध ज्ञानी है। तो हमारा अर्थ यह नहीं होता कि वे सब भी जानते है जो आईस्‍टीन जानता है। यह तो वे नहीं जानते। लेकिन फिर भी वे ज्ञानी है। वे अपनी अंतस चेतना को जानते है। और अंतस चेतना सर्वव्‍यापी है। तथाता का वह भाव सर्वव्‍यापी है। और उस जानने में फिर कुछ भी जानने को नहीं बचता असली बता यह है। अब कुछ जानने की उत्‍सुकता नहीं रहती है। सब प्रश्‍न गिर जाते है। ऐसा नहीं कि सब उत्‍तर मिल गये। सब प्रश्‍न गिर जाते है। अब पूछने के लिए कोई प्रश्‍न न रहा। सारी उत्‍सुकता जाती रही है। सर्वज्ञता है। सर्वज्ञा का यही अर्थ है। यह आत्‍मगत जागरण है।


यह तुम कर सकते हो। लेकिन अगर तुम अपनी खोपड़ी में और जानकारी इकट्ठी करते चले जाओ। तो फिर यह नहीं होगा। तुम जन्‍मों-जन्‍मों तक जानकारी इकट्ठी करते चले जा सकते है। तुम बहुत कुछ जान लोगे। लेकिन सर्व को नहीं जानोंगे। सर्व तो अनंत है; वह इस प्रकार नहीं जाना जा सकता। विज्ञान हमेशा अधूरा रहेगा। वह कभी पूरा नहीं हो सकता। वह असंभव है। यह अकल्‍पनीय है कि विज्ञान कभी पूरा हो जाएगा। वास्‍तव में, जितना अधिक विज्ञान जानता जाता है। उतना ही पाता है कि जानने को अभी बहुत शेष है।


तो यह सर्वज्ञता जागरण का एक आंतरिक गुण है। ध्‍यान करो,और अपने विचारों को गिरा दो। जब तुममें कोई विचार नहीं होंगे। तब तुम महसूस करोगे। कि यह सर्वज्ञता क्‍या है, यह सब जान लेना क्‍या है। जब कोई विचार नहीं होते तो चेतना शुद्ध हो जाती है। विशुद्ध हो जाती है। उस विशुद्ध चेतना में तुम्‍हें कोई समस्‍या नहीं रहती। सब प्रश्न गिर गये। तुम स्‍वयं को जानते हो, अपनी आत्‍मा को जानते हो। और जब तुमने अपनी आत्‍मा को जान लिया तो सब जान लिया। क्‍योंकि तुम्‍हारी आत्‍मा हर किसी की आत्‍मा का केंद्र है। 


वास्‍तव में तुम्‍हारी आत्‍मा ही सबकी आत्‍मा है। तुम्‍हारा केंद्र पूरे जगत का केंद्र है। इन्‍हीं अर्थों में उपनिषदों ने अहं ब्रह्मास्मिः की घोषणा की है कि ‘मैं ब्रह्म हूं,मैं पूर्ण हूं।’ एक बार तुमने अपनी आत्‍मा की यह छोटी सी घटना जान ली तो तुमने अनंत को जान लिया। तुम बिलकुल सागर की बूंद जैसे हो: अगर एक बूंद को भी जान लिया तो पूरे सागर के राज खुल गए।

विज्ञान भैरव तंत्र 

ओशो 


 

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