Thursday, March 31, 2016

जो जैसा है वहीं से उपाय

मैंने सुना है, एक शराबी बैठा था राह के किनारे और एक आदमी ने कार रोकी और उसने कहा कि मुझे स्टेशन जाना है, कहां से जाऊं। रास्ता भूल गया हूं। अजनबी हूं यहां।

शराबी ने झकझोर कर अपने को जरा सजग किया। और उसने कहा, ऐसा करो, पहले बायें जाओ–दो फर्लांग। फिर चौरस्ता पड़ेगा। फिर तुम उससे दायें मुड़ जाना–दो फर्लांग। फिर उसने कहा कि नहीं-नहीं, यह तो गलत हो गया। तुम यहां से दायें जाओ। चार फर्लांग के बाद मस्जिद पड़ेगी। बस मस्जिद के पास से तुम बायें मुड़ जाना। उसने कहा कि नहीं-नहीं, यह फिर गलत हो गया। अब तो वह अजनबी भी थोड़ा मुश्किल में पड़ा कि यह मामला क्या है। उसने फिर कहा कि तुम ऐसा करो कि जहां से तुम आये हो उसी तरफ लौट जाओ। आठ फर्लांग के बाद नदी पड़ेगी, पुल आयेगा। उसने कहा, कि नहीं-नहीं फिर गलत हो गया।


उस ड्राइवर ने कहा, “महानुभाव! मैं किसी और से पूछ लूंगा।’ उसने कहा कि तुम किसी और से ही पूछ लो तो अच्छा, क्योंकि जहां तक मैं समझता हूं, यहां से स्टेशन पहुंचने का कोई उपाय ही नहीं है।


जो जैसा है वहीं से उपाय है। जो जहां है वहीं से उपाय है। निराश मत होना। संकल्प सधे, संकल्प; न सधे, चिंता मत करना। साधनों की बहुत फिक्र मत करना, साध्य को स्मरण रखना। राह की कौन चिंता करता है, वाहन की कौन फिक्र करता है, बैलगाड़ी से पहुंचे कि हवाई जहाज से पहुंचे–पहुंच गये। हवाई जहाज के भी मजे हैं, बैलगाड़ी के भी मजे हैं। हवाई जहाज में समय बच जाता है, लेकिन बैलगाड़ी में जो सौंदर्य का, दोनों तरफ के रास्तों का अनुभव होता है, वह नहीं हो पाता। बैलगाड़ी में थोड़ा समय लगता है, लेकिन दोनों तरफ पृथ्वी के सुहावने दृश्य उभरते हैं।


 जिन सूत्र 

ओशो

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