Thursday, March 31, 2016

अपने-अपने हिसाब - अपने-अपने मतलब

एक रोगी ने अपने डाक्टर से आकर कहा कि बड़ी कठिनाई है; जो आपने कहा था, हो नहीं पाता। डाक्टर ने कहा कि मैंने ऐसी कोई कठिन बात तुमसे कही न थी। इतना ही तो कहा था कि जो तुम्हारा बच्चा खाता है, वही भोजन तुम लो। इसमें क्या अड़चन है? कुछ दिन तक जो तुम्हारा बच्चा लेता है, वही भोजन तुम लो, तो तुम्हारा शरीर ठीक रास्ते पर आ जायेगा।


उसने कहा कि मैंने प्रयत्न तो किया, पर सफल न हो सका। डाक्टर ने कहा, “क्या बेवकूफी है? इतनी-सी बात तुमसे न हो सकी कि तुम्हारा बच्चा जो खाता है वही तुम खाओ? दूध पीता है तो दूध पीओ। खिचड़ी खाता है तो खिचड़ी खाओ। और जितनी थोड़ी मात्रा में खाता है उतनी ही मात्रा में खाओ। यह भी तुमसे न हो सका?’


उसने कहा कि महाराज, मेरा बच्चा मोमबत्ती, कोयला, मिट्टी, जूते के फीते, ऐसी कौन-सी चीज है जो नहीं खाता! वही तो मैं मरा जा रहा हूं खा-खाकर। मेरी हालत और खराब हो गई है।


थोड़ी सावधानी चाहिए। अर्थ तो तुम डालोगे!

महावीर कहते हैं, उपवास; तुम पढ़ोगे, अनशन। महावीर कहते हैं, सत्य में संयम छिपा है; तुम पढ़ोगे, संयम में सत्य छिपा है। ऐसे चूकते चले जाओगे। फिर तुम अपनी मतलब की बात सदा निकाल लोगे। आदमी अपनी मतलब की बात निकाल लेता है।


मैं जबलपुर बहुत वर्षों तक रहा। एक बूढ़े सिंधी की दुकान थी। पुरानी किताबें, पुराना कागज, खरीदता और बेचता। मैं भी उसकी दुकान पर पुरानी किताबों की तलाश में जाता था। कभी-कभी बड़े महत्वपूर्ण शास्त्र उसकी किताब की दुकान पर से मिल गये। उस सिंधी को…सिंधियों में ऐसी मान्यता थी कि वह कुछ धार्मिक है, वे उसको साईं कहते थे। मैं भी किताबें पुरानी ढूंढ़ते-ढूंढ़ते, सुनता रहता था उसकी बातें; उसके कुछ शिष्य-शागिर्द भी कभी-कभी बैठे रहते थे। एक दिन एक आदमी आया जो फाउन्टेनपेन खरीदकर ले गया था। पुरानी और चीजें भी वह खरीदता-बेचता था। वह आदमी बड़ा नाराज था। उसने कहा कि यह तुमने धोखा दिया। यह तो फाउन्टेनपेन चार आने का भी नहीं है और लिखा है इस पर “मेड इन यू. एस. ए.।’ यह है नहीं “अमरीका का बना।’


वह सिंधी नाराज हुआ। उसने कहा, “कहा किसने कि यह अमरीका का बना है?’ पर उसने कहा, “इस पर लिखा हुआ है: मेड इन यू. एस. ए.। तो वह सिंधी नाराज हुआ। उसने कहा, “कोई यू. एस. ए. ने यू. एस. ए. लिखने का ठेका ले रखा है? अरे, यू. एस. ए. का मतलब होता है: उल्हासनगर सिंधी एसोसिएशन।’


अपने-अपने हिसाब हैं, अपने-अपने मतलब हैं। यू. एस. ए. की चीज खरीदते वक्त उल्हासनगर के सिंधियों को याद रखना। तुम ही तो अर्थ डाल लोगे। शब्द तो बेचारा क्या करेगा! अर्थ तो तुम जोड़ोगे! अर्थ तो तुम निकालोगे!

जिन सूत्र 

ओशो 

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