Sunday, September 2, 2018

ध्यान में रोती हूं, आपका चित्र देख कर विभोर होती हूं और आपकी याद से भी भीतर बहुत कुछ घटित होता है। क्या करूं?



पूछा है धर्मरक्षिता ने।


अगर ध्यान में रोना आता है तो इससे सुंदर और कुछ भी नहीं हो सकता। रोओ! आंसुओ से ज्यादा बहुमूल्य मनुष्य के पास कुछ भी नहीं प्रभु के चरणों में चढ़ाने को। और सब फूल फीके हैं-आंसुओ के फूल जीवंत फूल हैं; तुम्हारे प्राणों से आ रहे हैं; तुम्हारे हृदय से आ रहे हैं।


रोओ! रोने में बाधा मत डालना। ऐसा मत सोचना, संकोच मत करना। ऐसा मत सोचना कि क्या रो रही हूं ठीक नहीं। दिल खोल कर रोओ। आनंदित हो कर रोओ। मगन हो कर रोओ।


रोने का अर्थ ही यही है : हृदय बहने लगा। रोने का अर्थ क्या होता है?


साधारणत: हमने रोने के साथ बड़े गलत संबंध जोड़ लिए हैं। हम सोचते हैं, लोग दुख में ही रोते हैं। गलत बात। ही, दुख में भी रोते हैं; सुख में भी रोते हैं। और जब महासुख बरसता है तो ऐसे रोते हैं जैसे कि कभी नहीं रोये थे।


रोने का कोई संबंध सुख-दुख से नहीं है। रोने का संबंध किसी और बात से है। वह बात है : जब भी तुम्हारे हृदय में कोई भाव इतना हो जाता है कि समाता नहीं, अटता नहीं, सम्हाले नहीं सम्हलता, तब आंसुओ की धार लगती है। दुख ज्यादा हो तो भी आदमी रोता है; महासुख हो जाये तो भी रोता है। गहन शांति में भी आंसू उतर आते हैं। बड़े प्रेम में भी आंखें झरने लगती हैं, झंड़ी लग जाती है।
'ध्यान में रोती हूं। आपका चित्र देख कर विभोर होती हूं। आपकी याद से भी बहुत कुछ घटित होता है। अब क्या करूं?'


अब कुछ करने की बात ही नहीं है। करना तो उन्हीं के लिए है जो रोने में असमर्थ हैं। करना तो उन्हीं के लिए है जिनके हृदय कठोर हो गये हैं और आंसुओ के फूल नहीं लगते हैं। करना तो उन्हीं के लिए है जिनके जीवन की भक्ति सूख गई है, भाव सूख गया है, बहाव सूख गया है। जो रो सकता है उसके लिए तो परमात्मा का रास्ता खुला है।


तुम्हारे लिए तो द्वार मंदिर के खुल गये। रोओ! आनंदमग्न होकर रोओ! ऐसे भाव से रोओ कि रोना ही रह जाये। तुम्हारा अपना यह खयाल ही मिट जाये कि मेरे भीतर कोई रोने वाला है; रोना ही रोना रह जाये। बस, ध्यान पूरा हो जायेगा। वहीं से समाधि उतरेगी।


एक रास्ता है ध्यान का, एक रास्ता है प्रेम का। और प्रेम का रास्ता बड़ा रसपूर्ण है। ध्यान का रास्ता बड़ा सूखासूखा है। जिसे प्रेम का रास्ता मिल जाये, वह भूले ध्यान की बात, भूले। बिसारो यह बात। प्रेम ही तुम्‍हारे लिए पर्यात है।

अष्टावक्र महागीता

ओशो



No comments:

Post a Comment