Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, July 1, 2020

तंत्र तुम्हें तुम्हारे भोग में सहारा देने के लिए नहीं है, वह तुम्हें रूपांतरित करने के लिए है।

अपने को धोखा मत दो। तंत्र के द्वारा तुम अपने को आसानी से धोखा दे सकते हो। और आत्मवचना की इसी संभावना के कारण महावीर तंत्र की बात नहीं करते। यह संभावना, यह खतरा सदा है। आदमी इतना आत्मवचक है कि वह कहेगा कुछ और करेगा कुछ और ही। वह आत्मवचना को भी तर्कसंगत बना सकता है।


उदाहरण के लिए, पुराने चीन में तंत्र जैसा ही एक गुह्य वितान था, जिसे ताओ कहते हैं। ताओ तंत्र से मिलता—जुलता है। उदाहरण के लिए, ताओ कहता है कि अगर तुम कामवासना से मुक्त होना चाहते हो तो अच्छा है कि तुम एक ही व्यक्ति से, एक पुरुष या एक स्त्री से मत चिपके रहो। अगर तुम काम से मुक्ति चाहते हो तो एक ही व्यक्ति के साथ मत रहो, अपने साथी सदा बदलते रहो।


यह बिलकुल सही है। लेकिन तुम इसकी आडू लेकर अपने को धोखा दे सकते हो। हो सकता है कि तुम मात्र काम—विक्षिप्त हो, तुम पर वासना का भूत सवार हो और तुम तर्क कर सकते हो कि मैं तंत्र—साधना कर रहा हूं इसलिए मुझे एक ही स्त्री से नहीं चिपके रहना है, अनेक का साथ चाहिए। चीन में अनेक सम्राट इस साधना की आड़ में बडे—बडे हरम और जनान खाने रखते थे।


लेकिन अगर तुम मनुष्य के मनोविज्ञान को गहराई में देखोगे तो तुम्हें ताओ की अर्थवत्ता समझ में आ जाएगी। इसमें अर्थ है। अगर तुम एक ही स्त्री से संबंधित रहते हो तो देर—अबेर उस स्‍त्री के लिए तुम्‍हारा आकर्षण क्षीण हो जाएगा, लेकिन स्‍त्रियों के प्रति तुम्हारा आकर्षण बना रहेगा। विपरीत यौन के लिए तुम्हारा खिंचाव कायम रहेगा। यह स्त्री, जो तुम्हारी पत्नी है, तुम्हारे लिए विपरीत यौन की नहीं रह जाएगी, वह तुम्हें आकर्षित नहीं करेगी, मोहित नहीं करेगी। तुम उसके आदी हो जाओगे।


ताओ कहता है कि अगर कोई पुरुष अनेक स्त्रियों का सहवास करे तो वह एक ही स्त्री से नहीं, स्त्री मात्र से ही मुक्त हो जाएगा, उसका अतिक्रमण कर जाएगा। अनेक स्त्रियों का शान उसे अतिक्रमण करने में सहयोगी होगा। और यह ठीक है, लेकिन खतरनाक भी है। खतरनाक इसलिए है कि तुम इसे सही होने के कारण नहीं, बल्कि इसलिए पसंद करोगे क्योंकि यह तुम्हें उच्छृंखल होने की अनुमति देता है।


तंत्र के साथ यही समस्या है। इसीलिए चीन में उस विद्या को दबा दिया गया, दमन जरूरी हो गया। भारत में भी तंत्र को दबाया गया, क्योंकि वह बहुत खतरनाक बातें कहता था। वे बातें खतरनाक इसलिए थीं क्योंकि तुम बड़े धोखेबाज हो। अन्यथा वे अदभुत हैं। तंत्र से ज्यादा अदभुत और रहस्यपूर्ण घटना मनुष्य की चेतना में दूसरी नहीं घटी है। अन्य कोई विद्या इतनी गहरी नहीं गई है।



लेकिन ज्ञान के खतरे हैं, सदा से हैं। उदाहरण के लिए, अब विज्ञान खतरा बन रहा है, क्योंकि उसे अनेक गहरे रहस्यों का पता चल गया है। अब उसे मालूम है कि परमाणु—ऊर्जा का सृजन कैसे किया जाता है। आइंस्टीन ने कहा है कि अगर मुझे फिर से जीवन मिले तो मैं वैज्ञानिक होने की बजाय प्लंबर होना पसंद करूंगा। क्योंकि उसने कहा कि जब मैं पीछे लौटकर देखता हूं तो मुझे अपना पूरा जीवन व्यर्थ मालूम पड़ता है। व्यर्थ ही नहीं, मनुष्यता के लिए खतरनाक मालूम पड़ता है। और आइंस्टीन ने मनुष्य को एक गहनतम रहस्य का पता दिया है। लेकिन ऐसे मनुष्य को जो आत्म—वंचक है।


मुझे लगता है कि वह दिन शीघ्र आने वाला है जब हमें विज्ञान को भी दबा देना पड़े। खबर है कि वैज्ञानिकों के बीच गुप्त विचार—विमर्श चल रहा है कि दुनिया को और अधिक जानकारी न दी जाए। वे विचार कर रहे हैं कि वैज्ञानिक शोध को और आगे बढ़ाए या नहीं, क्योंकि अब वह खतरनाक होती जा रही है।


सब ज्ञान खतरनाक है, केवल अज्ञान निरापद है। अज्ञान को लेकर तुम बहुत कुछ नहीं कर सकते। अंधविश्वास सदा निरापद होते हैं। उनसे कोई बड़ा खतरा नहीं हो सकता। वे होमियोपैथी की दवा जैसे हैं। होमियोपैथी की दवा कोई नुकसान नहीं करती है। उससे लाभ होगा या नहीं, यह तुम्हारी निर्दोषता पर निर्भर है, लेकिन एक बात निश्चित है, उससे कुछ नुकसान नहीं होने वाला है। होमियोपैथी निरापद है, वह एक गहन अंधविश्वास है। अगर वह काम करे तो उससे लाभ ही होगा।


और ध्यान रहे, यदि किसी चीज से लाभ ही होता हो तो वह गहरा अंधविश्वास है। अगर उससे लाभ और हानि दोनों होते हों तो ही वह ज्ञान है। सच्ची चीज दोनों करती है, वह लाभ और हानि दोनों करती है। केवल नकली चीज से लाभ ही होता है। लेकिन वह लाभ दरअसल उस चीज से नहीं आता है, वह तुम्हारे मन का प्रक्षेपण होता है। एक अर्थ में केवल भ्रामक चीजें ही अच्छी होती हैं, वे तुम्हें कभी नुकसान नहीं पहुंचाती।


तंत्र विज्ञान है और वह परमाणु—विज्ञान से भी अधिक गहन विज्ञान है। परमाणु—विज्ञान पदार्थ से संबंधित है, तंत्र तुमसे संबंधित है। और तुम सदा ही किसी भी परमाणु—ऊर्जा से ज्यादा खतरनाक हो। तंत्र जैविक परमाणु से, तुमसे, जीवंत कोशिका से, स्वयं जीवन—चेतना से संबंधित है, उसकी आंतरिक व्यवस्था से संबंधित है।

तंत्र सूत्र

ओशो

निर्बल के बल राम

लाओत्से गुजर रहा है एक बाजार से। मेला भरा है। एक बैलगाड़ी उलट गई है; दुर्घटना हो गई है। मालिक था, हड्डी-पसलियां टूट गई हैं। बैल तक बुरी तरह आहत हुए हैं। गाड़ी तक चकनाचूर हो गई है। एक छोटा बच्चा भी गाड़ी में था; दुर्घटना जैसे उसे छुई ही नहीं।

तुमने अक्सर देखा होगा, कभी किसी मकान में आग लग गई है, सब जल गया, और एक छोटा बच्चा बच गया। कभी कोई छोटा बच्चा दस मंजिल ऊपर से गिर जाता है, और खिलखिला कर खड़ा हो जाता है, और चोट नहीं लगती। लोगों में कहावत है, जाको राखे साइयां मार सके न कोए। इसमें परमात्मा का कोई सवाल नहीं है। क्योंकि परमात्मा को क्या भेद है--कौन छोटा, कौन बड़ा!


नहीं, राज कुछ और है। वह लाओत्से जानता है। बच्चा कमजोर है। अभी बच्चा सख्त नहीं हुआ। अभी उसकी हड्डियां पथरीली नहीं हुईं। अभी उसकी जीवन-धार तरल है। जितनी हड्डियां मजबूत हो जाएंगी उतनी ही ज्यादा चोट लगेगी। बैलगाड़ी उलटेगी, तो बूढ़े को ज्यादा चोट लगेगी, बच्चे को न के बराबर। क्योंकि बच्चा इतना कोमल है; जब गिरता है जमीन पर तो उसका कोई प्रतिरोध नहीं होता जमीन से। वह जमीन के खिलाफ अपने को बचाता नहीं। उसके भीतर बचाव का कोई सवाल ही नहीं होता; वह जमीन के साथ हो जाता है। वह गिरने में साथ हो जाता है। वह समर्पण कर देता है, संघर्ष नहीं। कठोरता में संघर्ष है।


जब तुम गिरते हो तो तुम लड़ते हुए गिरते हो, तुम गिरने के विपरीत जाते हुए गिरते हो, तुम अपने को बचाते हुए गिरते हो, तुम मजबूरी में गिरते हो। तुम्हारी चेष्टा पूरी होती है कि न गिरें, बच जाएं, आखिरी दम तक बच जाएं। तो तुम्हारी हड्डी-हड्डी, रोएं-रोएं में सख्ती होती है कि किसी तरह बच जाएं। और जब बचने का भाव होता है तो सब चीजें सख्त हो जाती हैं। बच्चे को पता ही नहीं होता क्या हो रहा है। वह ऐसे गिरता है जैसे कोई नदी की धार में धार के साथ बहता हो। तुम धार के विपरीत तैरते हुए गिरते हो। तुम्हारी विपरीतता में, तुम्हारी सख्ती में ही तुम्हारी चोट छिपी है। बच्चा बच जाता है।


लाओत्से खड़ा है नदी के किनारे। एक आदमी डूब गया है। लोग उसकी लाश को खोज रहे हैं। आखिर में लाश खुद ही पानी के ऊपर तैर आई है। और लाओत्से बड़ा चकित होता है: जिंदा आदमी तो डूब गया और मुर्दा ऊपर तैर आया, मामला क्या है? क्या नदी जिंदा को मारना चाहती थी और मुर्दे को बचाना चाहती है? जिंदा आदमी डूब जाते हैं और मुर्दा तैर आते हैं।


नहीं, लाओत्से समझ गया राज को। मुर्दा ऊपर तैर आता है, क्योंकि मुर्दे से ज्यादा और कमजोर क्या? मर ही गया, अब उसका कोई विरोध न रहा। जिंदा आदमी डूबता है, क्योंकि नदी से लड़ता है। अगर जिंदा भी मुर्दावत हो जाए तो नदी उसे भी ऊपर उठा देगी। तैरने की सारी कला ही इतनी है कि तुम नदी में मुर्दे की भांति हो जाओ। तो जो लोग तैरने में कुशल हो जाते हैं वे नदी में बिना हाथ-पैर तड़फड़ाए भी पड़े रहते हैं मुर्दे की तरह। नदी उनको सम्हाले रहती है। उन्होंने नदी पर ही छोड़ दिया सब। कमजोर का अर्थ यह है कि अपना बल क्या? इसलिए अपने पर भरोसा क्या? छोड़ देते हैं।



ऐसा लाओत्से जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से सारभूत को चुनता रहा है। उसने किसी वेद से और उपनिषद से ज्ञान नहीं पाया है। उसने जीवन का शास्त्र सीधा समझा है; जीवन के पन्ने, जीवन के पृष्ठ पढ़े हैं। और उनमें से उसने जो सबसे सारभूत सूत्र निकाला है वह है कि इस संसार में अगर तुमने शक्तिशाली होने की कोशिश की तो तुम टूट जाओगे, और अगर तुमने निर्बल होने की कला सीख ली तो तुम बच जाओगे।



भक्त गाते हैं: निर्बल के बल राम। जो बात स्वभावतः घटती है वह राम पर आरोपित कर रहे हैं। भक्त की भाषा में राम का अर्थ सारा अस्तित्व है।



लाओत्से कोई भक्त नहीं है। वह राम और परमात्मा जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करता। पर बात वह भी यही कह रहा है: निर्बल के बल राम। जितना जो निर्बल है उतना ही राम का बल उसे मिल जाता है। लाओत्से भी यही कह रहा है कि जो जितना कमजोर है, अस्तित्व उसे उतनी ही ज्यादा शक्ति दे देता है। और जो अकड़ा हुआ है अपनी शक्ति से, अस्तित्व उससे उतना ही विमुख हो जाता है। जब तुम अकड़े तब तुम अकेले; जब तुम विनम्र तब सारा अस्तित्व तुम्हारे साथ।


ताओ उपनिषद


ओशो

Popular Posts