कबीर का प्रसिद्ध वचन है भला हुआ हरि बिसरियो सर से टली बलाय, जैसे थे वैसे भये अब कछु कहा न जाय। बड़ा अदभुत वचन है। ठीक बुद्ध का वचन है। भला हुआ हरि बिसरियो, झंझट मिटी, यह हरि भी मिटे और भूले, यह झंझट भी मिटी। भला हुआ हरि बिसरियो, सर से टली बलाय। तुम चौकोगे थोड़ा कि हरि और सर की बलाय! शांडिल्य तो कह रहे हैं कि भजो, हरिनाम संकीर्तन, डूबो;और कबीर का दिमाग खराब हुआ है कि कहते है भला हुआ हरि बिसरियो, सर से टली बलाय। बलाय! हरि का नाम! यही तो, हरि का नाम ही तो साधन है; इसको बला कहते हो!
एक दिन बला हो जाती है।
जो विधि एक दिन सहयोगी होती है, वही विधि एक दिन बाधक हो जाती है। तुम बीमार हो, तुम्हें औषधि देते हैं। फिर बीमारी चली गयी, फिर औषधि लेते रहोगे तो बलाय हो जाएगी। जिस दिन बीमारी गयी, उसी दिन बोतल फेंक देना और नहीं तो लाइंस क्लब में जाकर भेंट कर आना, मगर छुटकारा पा लेना उस से। फिर बोतल को लिए मत घूमना। और यह मत कहना कि इससे इतना लाभ हुआ, अब कैसे छोडूं? ऐसा कृतझ कैसे हो जाऊं? इसी बोतल ने तो सब दिया, स्वास्थ्य दिया, बीमारी गयी, अब तो पीता ही रहूंगा, अब छोड़ने वाला नहीं हूं। अब तो इस पर मेरी श्रद्धा बड़ी सघन हो गयी। शांडिल्य कह रहे हैं डूबो हरि भक्ति में;यह कृष्ण की शुरुआत। और कबीर बुद्ध के तल से कह रहे है भला हुआ हरि बिसरियो सर से टली बलाय, जैसे थे वैसे भये अब कछु कहा न जाए। अब क्या कहना है? कैसा राम भजन किस का भजन कौन करे! किसलिए करे! अब शब्द का कोई संबंध न रहा। अब तो मौन है, सन्नाटा है।
हद टप्पै सो औलिया, बेहद टप्पै सो पीर
हद बेहद दोनों टपै, ताका नाम फकीर
हद टप्पै सो औलिया जो हद के बाहर चला जाए उस को कहते है औलिया। बेहद टप्पै सो पीर जो बेहद के भी आगे चला जाए सीमा के पार जाए, औलिया;असीम के भी पार चला जाए, उस का नाम पीर। हद बेहद दोनो टप्पै सब के पार चला जाए, वही फकीर है। उसे ही मैं संन्यासी कहता हूं।
पकड़ना छोड़ने के लिए। विधियों का उपयोग कर लेना, ले लेना जितना रस उनमे हो, फिर जब रस उन का पी चुके तो उस थोथी विधि का ढोते मत रहना, फिर वह बला हो जाएगी।
गुरु के सहारे दूसरे किनारे तक पहुंच जाओगे, फिर गुरु को भी विदा दे देनी होगी। संसार से गुरु छुड़ा लेता, फिर गुरु अपने से छुड़ाता है, तभी परमात्मा का मिलन है।
अथतो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
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