कहा जाता है कि एक बार ऐसा हुआ कि शैतान बहुत परेशान हो गया, क्योंकि एक
आदमी जमींन पर बुद्धत्व को उपलब्ध हो गया था। उसने अपने मंत्रियों को
बुलाया और पूछा, ” अब क्या किया जाए? एक आदमी ने फिर सत्य को पा लिया है,
वह बुद्धत्व को उपलब्ध हो गया है, और हमारा धंधा खतरे में है। क्या करें?
लोगों को उसके पास जाने से कैसे रोकें? ”
शैतान के एक पुराने से पुराने अनुयायी ने कहा, ”कोई चिंता न करें। हम
जाते हैं और हम उसके चारों ओर एक चर्च संगठित कर देंगे। आप चिंता न करें।
तब चर्च बाधा हो जाएगा, और लोग उसके पास सीधे नहीं पहुंच सकेंगे। चर्च बीच
में होगा, तब जो भी वह कहेगा वह नहीं सुना जाएगा, लोग उसको सीधे नहीं
सुनेंगे। चर्च पहले उसकी व्याख्या करेगा, और व्याख्या से तुम जो चाहो नष्ट
कर सकते हो।”
सत्य को बहुत आसानी से नष्ट किया जा सकता है यदि तुम उसे एक व्यवस्था दे
दो, एक संगठन प्रदान कर दो। जब धर्म एक संप्रदाय हो जाता है तो वह समाज का
हिस्सा हो जाता है। जब कभी धर्म जीवंत होता है, और संप्रदाय नहीं होता तो
वह समाज का विरोधी होता है। जीसस समाज के विरोध में है, महावीर समाज के
विरोध में हैं, बुद्ध समाज के विरोध में हैं। किंतु बौद्ध धर्म, जैन धर्म
तथा ईसाई धर्म ये सब समाज के हिस्से हैं। ये सब धर्म नहीं हैं।
धर्म तो विद्रोही होता है, और विद्रोह यही होता है कि धर्म यात्रिकता को
तोड़ने की कोशिश करता है, क्योंकि यांत्रिकता ही तुम्हारा नर्क है। सहजता
ही तुम्हारा स्वर्ग है, यांत्रिकता ही नर्क है।
मैं तुम्हें कोई नया ढांचा नहीं दे रहा हूं: न तो नया और न पुराना। मैं
तो सिर्फ ढांचे को नष्ट कर रहा हूं और तुम्हें अकेला छोड़ देना चाहता हूं
बिना किसी ढाचें के। बिना किसी ढांचे का जीवन ही धार्मिक जीवन होता है।
बिना किसी आरोपित व्यवस्था का जीवन ही धार्मिक जीवन होता है। बिना किसी
अनुशासन का, किंतु एक आंतरिक जागरूकता का जीवन ही धार्मिक जीवन होता है।
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