तुम्हारे जीवन में कुछ ऐसा अनुभव होना चाहिए जो बुद्धि से अतीत अनुभव
है। जो बाहर से नहीं आया है। बुद्धि में तो जो भी आया है बाहर से आया है।
किताब पढ़ी, किसी को सुना, किसी से बात की, स्कूल विश्वविद्यालय सीखा, वही
सब तुम्हारी बुद्धि में भरा है। बुद्धि तो एक कंप्यूटर है जिसमें बाहर से
सूचनाएं डाली जाती हैं। बुद्धि तो एक टेपरिकॉर्ड है, एक ग्रामोफोन रेकॉर्ड
है, जिसमें बाहर से सूचनाएं भर दी जाती हैं फिर बुद्धि उसे दोहराती रहती
है।
और बड़ा मजा है। हम इसी को बड़ा मूल्य देते हैं। जो जितना अच्छा ग्रामोफोन
रेकॉर्ड है उसको हम कहते हैं उतना ही बुद्धिमान। विश्वविद्यालय उसे
स्वर्णपदक देते हैं। और उसने प्रमाण क्या दिया है बुद्धि का? एक ही प्रमाण
दिया है कि जो भी साल भर शिक्षकों ने उसकी खोपड़ी में भरा था, उसने परीक्षा
की कॉपी पर उसका वमन कर दिया, उल्टी कर दी। परीक्षा की कॉपी पर ठीक उसने
वैसा ही का वैसा, बिना पचा । पच जाता तो वमन कैसे करता? सम्हाले रहा,
सम्हाले रहा, सम्हाले रहा, फिर सारी परीक्षा की कॉपी गंदी कर दी। स्वर्णपदक
मिल गया उसको। उसका बड़ा सम्मान है।
उसने कौन सी कुशलता दिखाई? यह कोई बुद्धि की कुशलता है? हां, इतना कहा
जा सकता है, उसके पास अच्छी स्मृति है। मगर स्मृति और बुद्धि बड़ी भिन्न
बातें हैं। मनोवैज्ञानिक जिसको बुद्धि का माप कहते हैं, इंटेलिजंस कोशिएंट
कहते हैं, वह वस्तुतः बुद्धि का माप नहीं है, केवल स्मृति का माप है। और
याददाश्त का अच्छा होना और बुद्धि का अच्छा होना पर्यायवाची नहीं हैं।
अक्सर ऐसा होता है कि जिनकी याददाश्त बहुत अच्छी होती है उनके पास बुद्धि
जैसी चीज नहीं होती। और जिनके पास बुद्धि जैसी चीज होती है उनकी याददाश्त
बहुत अच्छी नहीं होती।
तुमने बहुत कहानियां सुनी होंगी कि बड़े बड़े बुद्धिमान और याददाश्त उनकी
बड़ी कमजोर। इमेन्युअल कांट की याददाश्त इतनी कमजोर कि एक सांझ अपने घर आया,
द्वार पर दस्तक दिया। सांझ है, सूरज ढल गया है, घूमकर लौटा है अपने ही घर।
नौकर ने छज्जे से झांका, समझा कि कोई आया होगा मालिक को मिलने। तो उसने
कहा, मालिक घूमने गए हैं, थोड़ी देर बाद आना तो वह वापिस लौट आया। कोई
मील—भर चलने के बाद उसे याद आया कि हद हो गई! मालिक तो मैं ही हूं!
नाम सुमिर मन बाँवरे
ओशो
No comments:
Post a Comment