तुम्हारे कारण ही उपनिषद बार बार पुनरुक्ति करते हैं। इसके अलावा कोई
मतलब नहीं है। सारी बात एक वाक्य में कही जा सकती है कि इंद्रियां उस
आत्यंतिक तक नहीं पहुंचा सकेगी। किंतु उपनिषद कहे चले जाते हैं कि दृष्टि
उस तरफ नहीं ले जाएगी, श्रवण भी नहीं ले जाएगा, हाथ भी वहां तक नहीं
पहुचायेंगे।
एक ही बात को तुम्हारी खातिर दोहराना पड़ता है और फिर भी तुम नहीं समझते
हो, यही रहस्य है। तुम सुनते हो, और तुम केवल सुनते ही नहीं, तुम्हें ऐसा
भी लगता है कि यह पुनरुक्ति है। लेकिन फिर भी समझ पैदा नहीं होती है। समझने
की कोशिश करो, विश्लेषण मत करो। ऋषि के मन को समझने का प्रयत्न मत करो कि
वह क्यों दोहरा रहा है। अपने मन को समझो और सजग हो जाओ ताकि ऋषि को दोहराना
न पड़े।
मैंने सुना है कि एक बार ऐसा हुआ:
एक झेन फकीर ने अपना पहला प्रवचन दिया, और फिर दूसरे सप्ताह भी उसने वही
प्रवचन दिया, और फिर तीसरे सप्ताह भी उसने उसी प्रवचन को पुनरुक्त किया,
ज्यों का त्यों दोहरा दिया। सभा के लोग बड़े बेचैन हो गये, यह तो बात कुछ
ज्यादा हो गई। धार्मिक प्रवचन तो पहले ही काफी उबाने वाले होते हैं, किंतु
उसने फिर दूसरी बार भी वही दोहरा दिया और तीसरी बार भी वही दोहरा दिया,
उन्हीं शब्दों को ज्यों का त्यों रख दिया। यह तो हद हो गई, अत: सभा ने सोचा
कि कुछ करना चाहिए।
एक आदमी को चुना गया कि वह उनकी ओर से बोले। वह उस फकीर के पास गया और बोला, ”बात क्या है? क्या तुम्हारे पास एक ही प्रवचन है?”
उस फकीर ने कहा, ”नहीं, मेरे पास और भी हैं।”
तो उस प्रतिनिधि ने कहा, ”फिर आपने वही वही प्रवचन तीन बार क्यों दोहराया? हम तो उससे तंग चुके हैं। ”
उस झेन फकीर ने कहा, ”लेकिन तुमने अभी पहले के संबंध में कुछ भी नहीं
किया है। जब तक तुम उसके लिए कुछ करते नहीं, मैं दूसरे पर नहीं जा सकता।
मेरे पास बहुत सारे प्रवचन हैं, लेकिन तुमने पहले के विषय में क्या किया अब
तक? मैं तीन बार उसे दे चुका हूं। तुमने क्या किया? तुमने कुछ भी तो नहीं
किया। और जब तक तुम पहले प्रवचन के लिए कुछ न करो, मैं दूसरे पर नहीं जा
सकता।”
कहते हैं लोग सभा में धीरे धीरे आना बंद हो गये। और यह भी कहते हैं कि
वह फकीर वही उपदेश देता रहा। जबकि वहां कोई भी नहीं होता, फिर भी वह वही
उपदेश सूने मंदिर में पुन: दोहराता। तब तो लोगों ने उस रास्ते से गुजरना भी
छोड़ दिया, क्योंकि उधर से गुजरते वक्त वे लोग वही प्रवचन फिर। फिर सुनते
तो लोग उससे डरने लगे, दूर भागने लगे। वे उस फकीर से सड़क पर या कहीं भी
मिलने से बचने लगे। क्योंकि वह कहीं मिल जाए और पूछे कि तुमने इस प्रवचन का
क्या किया? वह फकीर सारे गांव के खयालों में मंडराने लगा।
इसलिए उपनिषद बार बार दोहराये चले जाते हैं क्योंकि तुमने अभी पहली बात
के लिए ही कुछ भी नहीं किया है। तुमने पहली बात के बारे में ही कुछ नहीं
किया है, इसलिए वे उसे दूसरी बार, तीसरी बार दोहरते हैं। एक सौ आठ उपनिषद
हैं; और वे कोई नई बात नहीं कहते, वे उसी बात को’ बार बार दोहराते रहते
हैं। एक ही उपनिषद एक सौ आठ बार पुनरुक्त किया गया है। लेकिन फिर भी उसके
बारे में कुछ नहीं किया जाता। तुम्हें और और उपनिषदों की आवश्यकता है।
केनोउपनिषद
ओशो
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