झेन फकीर कहते हैं कि जब उनका कोई शिष्य ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है, तो
उसे आकर बताने की जरूरत नहीं रहती। गुरु खुद ही उसके पास जाकर उसे. कहता
है कि अब क्या कर रहा है बैठा हुआ! आकर बताया नहीं; खबर नहीं दी?
बोकोजू अपने गुरु के पास था वर्षों तक। अनेक बार कुछ छोटे मोटे अनुभव
होते कभी कुंडलिनी जगती लगती, कभी भीतर प्रकाश होता, कभी कोई कमल खिलता
मालूम होता; वह आ आकर खबर देता। गुरु कहता, यह कुछ भी नहीं है। सब मन का खेल
है। थक गया। वर्षों आना, बार बार कहना, और गुरु यही कहे, मन का खेल है। यह
कुछ भी नहीं। यह बच्चों की बातें छोड़। यह नासमझों की बातें छोड़। सभी अनुभव
सांसारिक हैं। उस अवस्था को पाना है, जहां कोई अनुभव नहीं रह जाता, केवल
साक्षी बचता है, देखने वाला बचता है, दृश्य कोई भी नहीं।
फिर एक दिन बोकोजू आया, वह द्वार के भीतर प्रविष्ट ही हुआ था कि गुरु
खड़ा हो गया और उसने कहा, तो आज हो गया बोकोजू। बोकोजू ने कहा, लेकिन आज तो
मैंने कुछ कहा ही नहीं। और हर बार मैं आकर कुछ कहता था, तुम इनकार करते
रहे। और आज मेरे बिना कहे!
गुरु ने कहा, जब हो जाता है, तो तुझसे पहले हमें पता चलता है। आज तेरी
चाल और है, आज तेरे चारों तरफ की हवा और। आज तेरे भीतर जो नाद गज रहा है,
जिन्होंने अपना नाद सुन’ लिया है, वे उसे सुनने में तत्क्षण समर्थ हो
जाएंगे।
कृष्ण को पता तो चल गया है, इसीलिए माहात्म्य कहा है। नहीं तो माहात्म्य
कहने की कोई जरूरत न थी। अब तक नहीं कहा; अठारह अध्याय बीत गए। अचानक
माहात्म्य कहा है। अचानक यह बताया कि कौन पात्र है, किसको कहना। अचानक यह
कहा है कि कहने का कितना मूल्य है। बिन कहे मत रह जाना।
पता चल गया है, लेकिन पूछते हैं माहात्म्य कहकर, हे पार्थ, क्या यह मेरा
वचन तूने एकाग्र चित्त से श्रवण किया? तूने सुना, क्या कहा मैंने? ले
समझा, क्या कहा मैंने? तू जागा? तूने देखा, कौन हूं मैं? और हे धनंजय, क्या
तेरा अज्ञान से उत्पन्न हुआ मोह नष्ट हुआ?
वे यह कह रहे हैं, अब भीतर जरा टटोलकर देख, कहां है तेरा मोह? कहा हैं
वे बातें तेरे भीतर कि ये मेरे अपने प्रियजन खड़े हैं, इनको मैं कैसे काटू?
अब जरा पीछे मुड़, खोज। कहां गए वे प्रश्न, संदेह शंकाएं? वे सारी चित्त की
विचलित दशाएं कहां हैं अब? तेरा अज्ञान से उत्पन्न हुआ मोह नष्ट हुआ?
भगवान के ऐसा पूछने पर अर्जुन बोला, हे अच्यूत, आपकी कृपा से मेरा मोह
नष्ट हो गया है और मुझे स्मृति प्राप्त हुई है, इसलिए मैं संशयरहित हुआ
स्थित हूं और आपकी आज्ञा पालन करूंगा।
एक एक शब्द बहुमूल्य है। सारी गीता की चेष्टा इन थोड़े से शब्दों के
लिए थी कि अर्जुन के भीतर ये थोड़ेसे शब्द प्रकट हो सकें। यह कृष्ण का पूरा
आयोजन, इतनी इतनी बार अर्जुन को समझाना, बार बार अर्जुन का छिटक छिटक
जाना, कृष्ण का फिर फिर उठाना, यह इन थोड़ेसे शब्दों को सुनने के लिए था।
सारे गुरुओं की चेष्टाएं शिष्य से इन थोड़ेसे शब्दों को सुनने के लिए
हैं, कि किसी दिन वह घड़ी आएगी सौभाग्य की और शिष्य का हृदय अहोभाव से भरकर
कहेगा, आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया, मुझे स्मृति प्राप्त हुई,
संशयरहित हुआ मैं स्थित हूं और आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा है।
गीता दर्शन
ओशो
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