बुद्ध का एक शिष्य हुआ पूर्ण कश्यप। वह निश्चित ही पूर्ण हो गया
था, इसलिए उसे बुद्ध पूर्ण कहते हैं। फिर एक दिन बुद्ध ने उससे कहा कि
पूर्ण, अब तू पूर्ण सच में ही हो गया। अब मेरे साथ-साथ डोलने की कोई जरूरत न
रही। अब तू जा। अब तू गांव-गाव, नगर-नगर घूम और डोल। मेरी खबर ले जा। मेरे
पास तूने जो पाया है, उसे लुटा।
पूर्ण ने कहा : भगवान, किस दिशा में जाऊं? आप इशारा कर दें। बुद्ध ने कहा : तू खुद ही चुन ले। अब तू खुद ही समर्थ है। अब मेरे इशारे की भी कोई जरूरत न रही।
तो पूर्ण ने कहा कि जाऊंगा–‘सूखा’ नाम का एक इलाका था बिहार
में-वहां जाऊंगा। बुद्ध ने कहा, तू खतरा मोल ले रहा है। वह जगह भली नहीं।
लोग सज्जन नहीं। लोग बड़े दुष्ट हैं और लोग सताने में रस लेते हैं। लोग तुझे
परेशान करेंगे। इन पीत-वस्त्रों में उन्होंने भिक्षु कभी देखा नहीं। वे
बड़े जंगली हैं। तू वहा मत जा।
पर पूर्ण ने कहा, इसीलिए तो उनको मेरी जरूरत है। किसी को तो जाना
ही होगा। कब तक वे जंगली रहें? कब तक उनको पशुओं की तरह रहने दिया जाए?
मुझे जाना होगा। आज्ञा दें।
बुद्ध ने कहा, जा; मगर मेरे दो-तीन सवालों के जवाब दे दे। पहला
अगर वे तुझे गालियां दें, अपमान करें, तो तुझे क्या होगा ‘ तो पूर्ण ने
कहा, यह भी आप मुझसे पूछते हैं, क्या होगा? आप भलीभांति जानते हैं कि मैं
प्रसन्न होऊंगा। क्योंकि मेरे मन में यह भाव उठेगा, कितने भले लोग हैं,
सिर्फ गालियां देते हैं, मारते नहीं। मार भी सकते थे।
बुद्ध ने कहा, ठीक। मगर अगर मारे न, मारने ही लगें, तो तेरे मन में
क्या होगा? पूर्ण ने कहा, आप पूछते हैं? आप भलीभांति जानते हैं कि पूर्ण
प्रसन्न होगा, कि धन्यभाग कि मारते हैं, मार ही नहीं डालते। मार भी डाल
सकते थे।
बुद्ध ने कहा, आखिरी सवाल, पूर्ण। अगर मार ही डालें, तो मरते वक्त
तेरे मन में क्या होगा? पूर्ण ने कहा, आप, और पूछते हैं? आपको भलीभांति
मालूम है कि जब मैं मर रहा होऊंगा तो मेरे मन में होगा, धन्यभाग, उस जीवन
से छुटकारा दिला दिया जिसमें कोई भूल-चूक हो सकती थी।
बुद्ध ने कहा, अब तू जा। अब तुझे जहां जाना है, तू जा। अब तुझे कोई
गाली नहीं दे सकता। अब तुझे कोई मार नहीं सकता। अब तुझे कोई मार डाल नहीं
सकता। ऐसा नहीं कि वे तुझे गाली न देंगे; गाली तो वे देंगे, लेकिन तुझे अब
कोई गाली नहीं दे सकता। ऐसा नहीं कि वे तुझे मारेंगे नहीं; मारेंगे, लेकिन
तुझे अब कोई मार नहीं सकता। और कौन जाने, कोई तुझे मार भी डाले; लेकिन अब
तू अमृत है। अब तेरी मृत्यु संभव नहीं।
‘उसने मुझे डांटा, उसने मुझे मारा, मुझे जीत लिया, मेरा लूट
लिया-जो ऐसी गांठें मन में नहीं बनाए रखते हैं, उनका वैर शात हो जाता है।’
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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