बुद्ध का एक शिष्य था.. उस युवक से मैंने यह कहानी कही थी, वह मैं
आपको अभी कहता हूं। उस युवक से मैंने कहा कि अब तू भय के बाहर हो गया है।
इनसिक्योरिटी को जिसने स्वीकार कर लिया है, वह भय के बाहर हो जाता है, वह अभय हो जाता है।
बुद्ध का एक शिष्य है पूर्ण। और बुद्ध ने उसकी शिक्षा पूरी कर दी
है और उससे कहा है, अब तू जा और खबर पहुंचा लोगों तक। पूर्ण ने कहा, मैं
जाना चाहता हूं सूखा नाम के एक इलाके में। बुद्ध ने कहा, वहां मत जाना, वहां के लोग बहुत बुरे हैं। मैंने सुना है,
वहां कोई भिक्षु कभी भी गया तो अपमानित होकर लौटा है, भाग आया है डरकर।
बड़े दुष्ट लोग है, वहां मत जाना। उस पूर्ण ने कहा, लेकिन वहां कोई नहीं जायेगा, तो उन दुष्टों का
क्या होगा? बड़े भले लोग हैं, सिर्फ गालियां ही देते हैं, अपमानित ही करते
हैं, मारते नहीं। मार भी सकते थे, कितने भले लोग हैं, कितने सज्जन हैं?
बुद्ध ने कहा, समझा। यह भी हो सकता है कि वे तुझे मारें भी, पीटें
भी। पीड़ा भी पहुंचाये, काटे भी छेदें, पत्थर मारें, फिर क्या होगा? तो पूर्ण ने कहा, यही होगा भगवान, कि कितने भले लोग हैं कि सिर्फ मारते हैं, मार ही नहीं डालते हैं। मार डाल सकते थे। बुद्ध ने कहा, आखिरी सवाल। वे तुझे मार भी डाल सकते हैं, तो मरते क्षण में तुझे क्या होगा? पूर्ण ने कहा, अन्तिम क्षण में धन्यवाद देते विदा हो जाऊंगा कि कितने
अच्छे लोग हैं कि इस जीवन से मुक्ति दी, जिसमें भूल चूक हो सकती थी।
बुद्ध ने कहा, अब तू जा। अब तू अभय हो गया। अब तुझे कोई भय न रहा।
तूने जीवन की सारी असुरक्षा सारे भय को स्वीकार कर लिया। तूने निर्भय बनने
की कोशिश ही छोड़ दी।
ध्यान रहे, भयभीत आदमी निर्भय बनने की कोशिश करता है। उस कोशिश से
भय कभी नहीं मिटता है। उसको उपलब्ध होता है जो भय है, ऐसी जीवन की स्थिति
है इसे जानता है, स्वीकार कर लेता है। भय के बाहर हो जाता है। और युवा
चित्त उसके भीतर पैदा होता है, जो भय के बाहर हो जाता है।
एक सूत्र युवा चित्त के जन्म के लिए, भय के बाहर हो जाने के लिए अभय है।
और दूसरा सूत्र.??
पहला सूत्र है, बूढ़े चित्त का मतलब है ‘क्रिपल्ड विद फियर’, भय से पंगु।
और दूसरा सूत्र है… बूढ़े चित्त का अर्थ है, ‘बर्डन विद नालेज’, ज्ञान से बोझिल।
जितना बूढ़ा चित्त होगा उतना ज्ञान से बोझिल होगा। उतने पांडित्य
का भारी पत्थर उसके सिर पर होगा। जितना युवा चित्त होगा, उतना ज्ञान से
मुक्त होगा।
उसने स्वयं ही जो जाना है, जानते ही उसके बाहर हो जायेगा और आगे
बढ़ जायेगा। ‘ए कास्टेंट अवेयरनेस आफ नाट नोन’। एक सतत भाव उसके मन में
रहेगा, नहीं जानता हूं। कितना ही जान ले, उस जानने को किनारे हुआ, न जानने
के भाव को सदा जिंदा रखेगा। वह अतीत में भी क्षमता रखेगा। रोज सब सीख
सकेगा, पल सीख सकेगा। कोई ऐसा क्षण नहीं होगा, जिस दिन वह कहेगा कि मैं
पहले से ही जानता हूं इसलिए सिखने की अब कोई जरूरत नहीं है। जिस आदमी ने
ऐसा कहा, वह बूढ़ा हो गया।
युवा चित्त का अर्थ है : सीखने की अनंत क्षमता।
बूढ़े चित्त का अर्थ है : सीखने की क्षमता का अंत।
और जिसको यह खयाल हो गया, मैंने जान लिया है, उसकी सीखने की क्षमता का अंत हो जाता है।
और हम सब भी जान से बोझिल हो जाते हैं। हम ज्ञान इसीलिए इकट्ठा
करते हैं कि बोझिल हो जायें। ज्ञान हम सिर पर लेकर चलते हैं। जान हमारा पंख
नहीं बनता है, ज्ञान हमारा पत्थर बन जाता है।
ज्ञान बनना चाहिए पंख। ज्ञान बनता है पत्थर।
और ज्ञान किनका पंख बनता है, जो निरंतर और और और जानने के लिए खुले हैं मुक्त हैं, द्वार जिनके बंद नहीं है।
सम्भोग से समाधी की ओर
ओशो
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