एक मुसलमान खलीफा उमर ने एक आदमी को पकड़वाया, क्योंकि वह आदमी घोषणा
करता था कि मुहम्मद के बाद मैं ही दूसरा पैगंबर हूं, मुहम्मद जो नहीं कर
पाए अब मैं करूंगा। निश्चित ही कोई और देश हो तो लोग बर्दाश्त कर लें,
मुसलमान तो बर्दाश्त नहीं कर सकते। उनकी तो बर्दाश्त की कोई सीमा है ही
नहीं। उनके पास तो धैर्य है ही नहीं। फौरन पकड़ लिया गया, लोगों ने
मारा पीटा और खलीफा के पास ले चले। खलीफा भी बहुत नाराज हुआ। उसने कहा कि
एक ही ईश्वर है और उस ईश्वर का एक ही पैगंबर है और उस पैगंबर का नाम
है हजरत मुहम्मद; और कोई न पैगंबर है और न कोई ईश्वर है।
यह पकड़ तो मुसलमानों की ऐसी है कि मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन
नास्तिक हो गया था तो किसी ने पूछा कि नसरुद्दीन, अब तो तुम नास्तिक हो गए,
तुम्हारा सिद्धांत क्या है?
उसने कहा कि मेरा सिद्धांत हैः कोई ईश्वर नहीं है और उसका एक ही पैगंबर है हजरत मुहम्मद!
ऐसी पकड़ है कि ईश्वर नहीं है तो भी… मगर हजरत मुहम्मद तो पैगंबर हैं ही।
खलीफा बहुत नाराज हुआ। उसने कहा कि सात दिन के लिए इस आदमी को जेलखाने में
डाल दो जंजीरों में। सात दिन का मौका देते हैं तुझे सोचने का, समझ ले, सोच
ले, तय कर ले; अगर होश में आ गया तो ठीक, नहीं तो गर्दन काट दी जाएगी। सात
दिन का अवसर देते हैं अगर तू क्षमा मांग लेगा, छुटकारा हो जाएगा तेरा। उस
आदमी को खंभे से बांध दिया गया, कोड़े मारे गए, सात दिन सब तरह से सताया
गया।
सात दिन बाद उमर गया जेलखाने में, वह आदमी बंधा था खंभे से, लहुलुहान था। पूछा कि कहो अब क्या विचार है?
उसने कहाः ईश्वर एक और उसका नया पैगंबर मैं।
उमर ने कहाः तुझे होश नहीं आया, इतना पिटा कुटा, खून जगह जगह जम गया है,
जमीन पर खून जमा है, खंभे पर खून जमा है, चमड़ी जगह जगह कट गयी तुझे होश
नहीं आया?
उसने कहा : होश! मुझे पक्का भरोसा हो गया है कि मैं पैगंबर हूं क्योंकि
जब मैं चलने लगा तो ईश्वर ने खुद ही कहा था कि मेरे पैगंबर सदा बहुत सताए
जाते हैं। अब तो मुझे पक्का ही भरोसा आ गया।
तभी एक दूसरा आदमी जो किसी दूसरे खंभे से बंधा था, खिलखिला कर हंसने लगा। उमर ने पूछा कि तू क्यों हंस रहा है?
उस आदमी ने कहा : मैं इसलिए हंस रहा हूं कि मैं स्वयं परमात्मा हूं और
मैं तुमसे कहता हूं कि यह आदमी झूठ बोल रहा है, इसको मैंने कभी भेजा ही
नहीं; मुहम्मद के बाद मैंने किसी को भेजा ही नहीं । वे इसलिए पकड़े गए थे
सज्जन कि वे अपने ईश्वर होने की घोषणा कर रहे थे।
घोषणा तो तुम कर सकते हो आसानी से। क्या कठिनाई है? रोज सुबह से उठकर
मंत्र जपो अहं ब्रह्मास्मि… जपते ही रहो, जपते ही रहो, जपते ही रहो… छाप
पड़ती जाए, पड़ती जाए, संस्कार गहरा होता जाए, तो एक दिन नींद में भी तुम
गुर्राने लगोगे अहं ब्रह्मास्मि! मगर यह तो विचार मात्र है। नहीं, ऐसे कोई
नहीं जानता ब्रह्म होने को ।
ब्रह्म होने को जानने का उपाय दूसरा है,
बिल्कुल उल्टा है, निर्विचार हो जाओ अहं ब्रह्मास्मि दोहराना नहीं है, एक
ऐसी शांत, मौन, शून्य अवस्था जहां कोई विचार की तरंग नहीं रह जाती, वहां
अनुभव होता है कि मैं परमात्मा हूं। लेकिन उस अनुभव में “मैं” का कोई अनुभव
नहीं होता, यह तो भाषा में कहना पड़ता है इसलिए । उस अनुभव में सिर्फ
परमात्मा है ऐसा अनुभव होता है। उस “मैं” में और सब भी समाहित होते हैं ।
उस “मैं” में सब मैं समाहित होते हैं।
इसलिए जिन्होंने जाना है उन्होंने ऐसा नहीं कहा है कि मैं परमात्मा हूं
और तुम नहीं; जिन्होंने जाना है उन्होंने कहा है कि मैं परमात्मा हूं और
तुम भी। बुद्ध ने कहा है : जिस क्षण मैं बुद्ध हुआ उस दिन सारा अस्तित्व
मेरे साथ बुद्ध हो गया आदमी ही नहीं पशु पक्षी भी, पशु पक्षी ही नहीं
पौधे पत्थर भी। बुद्ध ठीक कहते हैं : जिस क्षण मैं बुद्ध हुआ उस क्षण मैंने
जाना अरे, मैं तो हूं ही नहीं, सिर्फ बुद्धत्व है; सिर्फ भगवत्ता है;
कण कण में वही व्याप्त है। जो मुझमें है वही बाहर है; जो भीतर, वही बाहर।
मगर यह विचार से नहीं होगा।
गुरु प्रताप साध की संगति
ओशो
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