अपनी तरफ देखो और जहां जहां तुम्हें दुख पैदा होता है,
खोजो गौर से, तुम्हारे भीतर ही उसके कारण मिलेंगे। उन कारणों को छोड़ दो;
क्योंकि जिनसे दुख पैदा होता है, उन कारणों को किये जाने का प्रयोजन क्या
है? जिनसे सिर्फ जहर के फल लगते हों, उन बीजों को तुम क्यों बोये. चले जाते
हो? हर वर्ष क्यों फसल काट लेते हो उनकी? बेहतर तो यह होगा कि तुम फसल ही न
बोओ, तो भी ठीक रहेगा। खाली पडा रहे खेत तो भी बुरा नहीं है। और अच्छा यह
होगा कि कुछ दिन खाली ही पड़ा रहे, ताकि पुराने सब बीज दग्ध हो जाए ताकि तुम
नये बीज बो सको।
खाली पड़े रहने से तुम डरते क्यों हो? ध्यान बीच की खाली अवस्था है।
ध्यान, जैसे कोई किसान साल दो साल के लिए खेत को खाली छोड़ दे, कुछ भी न
बोए, ऐसा ध्यान बीच की अवस्था है; नरक के बीच और स्वर्ग के बीच खाली स्थान
है। कुछ दिन के लिए छोड़ दो, कुछ मत बोओ। एक बात ध्यान रखो—गलत करने से न
करना बेहतर है। कुछ देर के लिए रुक ही जाओ, कुछ मत करो। जब तक कि ठीक करना न
आ जाए, तब तक न करना ही बेहतर है; क्योंकि हर कृत्य, गलत कृत्य, गलत
कृत्यों की शृंखला पैदा करता है। उसको ही हम कर्मों का जाल कहते है।
तुम कुछ न कुछ किए ही चले जा रहे हो। तुम, बस खाली नहीं बैठ सकते,
कुछ न कुछ करोगे ही। तुम खाली बैठ जाओ वही ध्यान है, ताकि पुरानी आदत छूट
जाए और उस खाली बैठने में तुम्हें साफ साफ दिखाई पड़ने लगे। क्योंकि तुम
इतने व्यस्त हो कि देखने की फुर्सत और शुविधा नहीं है, समय नहीं है।
ध्यान का इतना ही अर्थ है कि तुम चुप एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा जितनी
देर तुम्हें मिल जाए, खाली बैठ जाओ, कुछ मत करो। सिर्फ देखते रही, ताकि
धीरे धीरे तुम्हारी आंख पैनी और गहरी हो जाए और तुम्हें यह दिखाई पड़ने लगे
कि सभी जो हुआ मेरे जीवन में, मैं ही उसका कारण था। यह प्रतीति आते ही
व्यर्थ का बोना बंद हो जाएगा। तब एक सार्थक नृत्य पैदा होता है।
धर्म परम आनंद है; वह त्याग की उदासी नहीं, वह अस्तित्व का भोग है। वह
महाभोग में सम्मिलित होना है। वह अस्तित्व के नृत्य के साथ एक हो जाना है।
धर्म को तुम त्याग और उदासी की भाषा में सोचना ही मत। वह गलत धर्म है, जो
त्याग और उदासी की भाषा में सोचता है। सही धर्म हमेशा नृत्य है। वह आनंद का
है। सही धर्म हमेशा बजती हुई बांसुरी है।
शिव सूत्र
ओशो
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