जो मुझमें भाग लेने को तैयार नहीं, उसमें मैं भी भाग लेने को तैयार
नहीं। धीरे धीरे हिम्मत करो। तुम अपने हृदय का द्वार मेरे लिए खोलोगे, तो
ही मेरा हृदय का द्वारा तुम्हारे लिए खुल सकता है। नहीं कि तुम्हारे लिए
बंद है, लेकिन खुल न सकेगा। मेरे हृदय के खुलने की कुंजी भी तुम्हारे हृदय
के खुलने में छिपी है।
तो धीरे धीरे तो मैं उनके लिए ही रहूंगा, जो डूबे हैं। डूबोगे तो ही
मेरे साथ चल सकोगे। भीड़ भाड़ में मुझे रस नहीं है। मैं कोई राजनेता नहीं
हूं कि भीड़ भाड़ में मेरी उत्सुकता हो। मेरी उत्सुकता उन थोड़े से लोगों में
है जो सच में ही खोजने को तत्पर हैं। और कुछ दाव पर लगाने की भी हिम्मत
रखते हैं।
संन्यासी का क्या अर्थ होता है? जिसने कुछ दाव पर लगाया। तुम दाव पर तो
कुछ भी नहीं लगाना चाहते हो, पाना तुम सब चाहते हो। ऐसी होशियारी से काम न
चलेगा।
तो धीरे धीरे और तरह से भी संन्यासी में ही मैं उत्सुक रह जाऊंगा।
क्योंकि संन्यासी का अर्थ इतना है कि वह मेरे साथ डूबने को तैयार है। ले
जाऊं अंधेरे में तो अंधेरे में जाने को तैयार है। संन्यासी का अर्थ है, उसे
मुझ पर भरोसा आया।
गैर संन्यासी संन्यासियों की तरंग में थोड़ी सी बाधा डालता है। इसलिए
नाचने से मना कर दिया। गैर संन्यासी नाचते हुए संन्यासियों के बीच में उनकी
भावसमाधि में बाधा बनता है। क्योंकि वह तो उतना खुला नहीं, वह तो बंद है।
जो संन्यास लेने की हिम्मत नहीं कर सका, वह नाच भी सकेगा? और जो नाच सकता
है, उसे संन्यास लेने में अड़चन क्या होगी? ये दोनों ही पागलपन के काम हैं।
तो इसके पीछे एक सरणी है। अब मैं चाहूंगा कि यहां एक तरंग हो। इस तरंग
में जो लोग जीने को राजी हैं, वे ही उसमें डूबे। जो नहीं हैं राजी, उनके
लिए बोलता रहूंगा, ताकि आज नहीं कल वे राजी हो जाएं। तो बोलने के लिए मैं
तैयार हूं गैरसंन्यासी से भी। लेकिन धीरे धीरे जो गहरे तल की बातें हैं,
जो भीतर घटती हैं, उनके लिए संन्यासी के अतिरिक्त दूसरे के लिए उपाय नहीं
होगा।
मुझे फर्क करने ही होंगे। नहीं तो तुम्हें तो कुछ लाभ नहीं होता है,
संन्यासी को नुकसान होता है। तुम सोचते हो, पूछने वाले ने इसीलिए पूछा है
कि जैसे उसको कुछ हानि हुई। उसको कुछ हानि नहीं होने वाली। तुम्हारे पास
कुछ है नहीं, हानि क्या होगी! तकलीफ तुम्हें सिर्फ यही हुई होगी कि कोई बात
ऐसी थी जिसमें तुम्हें प्रवेश का अधिकार न मिला। तुम्हारे अहंकार को चोट
लगी होगी। इस अहंकार को लेकर तुम सम्मिलित भी हो जाते तो तुम्हारे कारण
केवल एक व्याघात पैदा होता। तुम बेसुरे होते। तुम उन पागलों की भीड़ में
समझदार होते। तुम एक पत्थर की तरह होते उस धारा में।
तुम्हारे कारण धारा को बहने में सहायता न मिलती, बाधा पड़ती। तुम्हारा
कुछ नहीं खोया है। ही, अगर तुम सम्मिलित होते तो जो संन्यासी नाच रहे थे,
उनका कुछ खो जाता। नाचकर वे मेरे साथ किसी गहरी छंदोबद्धता में गिर रहे थे।
उसका तुम्हें पता भी नहीं है। इसलिए जिनको हुआ, वही जानते हैं। जिनको नहीं
हुआ, उनको तो बाहर से ऐसा लगा कि संन्यासियों को नाचने मिला, हमें नाचने न
मिला। तुम्हारे नाचने की आकांक्षा बलवती नहीं है, अन्यथा तुम संन्यासी
होने की हिम्मत करोगे, तुम कहोगे कि ठीक है, अगर नाचना है तो यह शर्त भी
स्वीकार करेंगे। अगर तुमने कुछ खोया है, तो तुम संन्यास की हिम्मत जुटाओगे।
क्योंकि तुम दुबारा वैसा न खोना चाहोगे।
लेकिन नहीं, तुम्हें कुछ अड़चन दूसरी है। तुम्हारी अड़चन यह है कि
तुम्हारे साथ कुछ पक्षपात किया गया। तुम्हारे अहंकार को कुछ बाधा पड़ी है।
तुम्हें क्यों न नाचने दिया गया! तुम्हारी पात्रता में कौन सी कमी है! कमी
है। साहस की कमी है। हिम्मत की कमी है। तुम सत्य को मुफ्त पाना चाहते हो।
तुम सत्य को वैसे ही पाना चाहते हो जैसे तुम हो। तुम कुछ भी बदलने को तैयार
नहीं हो। तुम दो कदम बढ़ने को तैयार नहीं हो। और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम
एक कदम चलो तो परमात्मा हजार कदम तुम्हारी तरफ चलता है। लेकिन तुम एक कदम
भी चलने को राजी नहीं हो। हालत तो और भी उलटी है। हालत तो ऐसी है कि
परमात्मा अगर तुम्हारी तरफ चले तो तुम पीछे हट जाओगे।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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