यह अगर स्मृति में रह जाए, तो अगला जन्म दूसरे प्रकार का होगा। उसका
गुणधर्म बदल जाएगा। क्योंकि फिर वह आदमी ठीक उन्हीं वासनाओं में नहीं दौड़
सकेगा, मृत्यु सदा सामने खड़ी मालूम पड़ेगी। और फिर उन्हीं वासनाओं में दौड़ने
का अर्थ होगा कि वह फिर अपने हाथ रिक्त करने जा रहा है, फिर मरने जा रहा
है। नहीं, इस बार अब वह कुछ और कर सकेगा। जिंदगी को बदलने की कोई चेष्टा
सघन हो जाएगी। यह चेष्टा सघन हो सके, इसलिए ‘बारदो’ का प्रयोग है।
‘बारदो’ का प्रयोग वैज्ञानिक है। व्यक्ति मर रहा होता है तब उसे जगाए रखने
के सब उपाय किये जाते हैं। सुगंध से, प्रकाश से, संगीत से, कीर्तन से, भजन
से, उसे जगाए रखने के प्रयोग किये जाते हैं। उसे सोने नहीं दिया जाता। और
जैसे ही उसको झपकी लगती है वैसे ही उसके कान के पास ‘बारदो’ के सूत्र कहे
जाते हैं। ‘बारदो’ के सूत्र ऐसे हैं, जो स्वप्र को पैदा करने में सहयोगी
हैं। जैसे उसे कहा जाएगा कि वह समझ ले कि शरीर से अलग हो रहा है। अभी वह
झपकी खा गया, उसे कहा जा रहा है कि वह शरीर से अलग हो गया है। मृत्यु घटित
हो गयी है और वह अपनी यात्रा पर निकल रहा है। यात्रा पर मार्ग कैसा है,
यात्रा पर दोनों तरफ कैसे वृक्ष लगे हैं, यात्रा पर कैसे पक्षी उड़ रहे हैं,
ये सारे प्रतीक उसके कान में कहे जाएंगे।
पहले तो समझा जाता था कि यह कान में कहने से क्या होगा? लेकिन अब यह
नहीं समझा जा सकता है। क्योंकि रूस में बड़े पैमाने पर ‘हिप्रोपीडिया’ के
प्रयोग चल रहे हैं। और रूस के वैशानिकों की धारणा है कि आनेवाली सदी में
बच्चे स्कूल पढ्ने दिन में नहीं जाएंगे। रात बच्चों की नींद में ही स्कूल
उन्हें शिक्षा देगा। क्योंकि रूसी वैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चा जब सोया
होता है तब उसके कान में एक विशेष ध्वनि पर और एक विशेष ”वेवलेंग्थ’ पर
अगर कुछ बातें कही जाएं तो उसके अचेतन में प्रवेश कर जाती हैं। इस पर बहुत
प्रयोग सफल हो गये हैं, और एक बच्चा जो गणित में कमजोर है और लाख उपाय करके
गणित में ठीक नहीं होता, शिक्षक परेशान हो जाते हैं, वह बच्चा भी रात नींद
में गणित की शिक्षा देने से कुशल हो जाता है। और उसे कभी पता भी नहीं चलता
कि उसको यह शिक्षा दी गयी है।
भाषा के संबंध में तो हैरानी के अनुभव हुए, कि जो भाषा तीन साल में सीखी
जा सके, वह रात में तीन महीने में सिखायी जा सकती है। और उसमें कोई समय का
व्यय नहीं होगा। क्योंकि आपकी नींद में कोई बाधा नहीं पड़ेगी। आप सोए ही
रहेंगे। आपको पता ही नहीं चलेगा। सिर्फ सुबह आपको रोज परीक्षा देनी होगी कि
रात भर क्या हुआ?
तो अब तो रूस में उन्होंने कुछ संस्थाएं बनायी हैं जो हजारों बच्चों को
रात शिक्षा दे रही हैं। हर बच्चे के पास छोटासा यंत्र उसके तकिये में लगा
रहता है। वह सो जाता है। ठीक बारह बजे रात शिक्षा शुरू होती है। दो घंटे
शिक्षा चलती है, फिर बच्चे को एक बार जगाया जाता है। वह सब यंत्र ही कर
देता है। घंटी बजाकर बच्चे को जगा देता है। जगाया इसलिए जाता है ताकि जो
सिखाया गया उसके बाद अगर कप्ति आ जाए तो वह भूल जाएगा। इस सूत्र को समझाने
के लिए मैं कह रहा हूं नहीं तो यह सूत्र समझ में नहीं आएगा।
उसे जगाया जाएगा। दो घंटा शिक्षण चलेगा, फिर घंटी बजेगी। बच्चा जगाया
जाएगा। जागकर उसे हाथ मुंह धोकर पुन: सो जाना है। कुछ और करना नहीं है। बस
वह जो शिक्षा दी गयी है, उसके बाद सुषुप्ति की पर्त न आए। नहीं तो सुबह
भूल जाएगा। फिर चार बजे उसकी शिक्षा शुरू होगी। फिर चार से छ: बजे तक वही
पाठ दोहराया जाएगा। छ: बजे वह फिर उठ आएगा....
क्रमशः
ओशो
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