अज्ञानी से प्रशंसा पाकर भी क्या मिलेगा? जिसे खुद ज्ञान नहीं मिल सका,
उसकी प्रशंसा मांगकर तुम क्या करोगे? जो खुद भटक रहा है, उसके तुम नेता हो
जाओगे? उसके सम्मान का कितना मूल्य है?
सुना है मैंने, एक सूफी फकीर हुआ; फरीद। वह जब बोलता था तो कभी लोग ताली
बजाते थे तो वह रोने लगता। एक दिन उसके शिष्यों ने पूछा कि लोग ताली बजाते
हैं तो तुम रोते किसलिए हो। तो फरीद ने कहा कि वे ताली बजाते हैं, तब मैं
समझता हूं कि मुझसे कोई गलती हो गयी होगी। अन्यथा, वे ताली कभी न बजाते। ये
इतने लोग! जब वे ताली नहीं बजाते, उनकी समझ में नहीं आता, तब मैं समझता
हूं कि कुछ ठीक बात कह रहा हूं।
आखिर, गलत आदमी की ताली का मूल्य क्या है? तुम किसके सामने अपने को
‘सिद्ध’ सिद्ध करना चाह रहे हो? अगर तुम संसार के सामने अपने को ‘सिद्ध’
सिद्ध करना चाह रहे हो तो तुम नासमझों की प्रशंसा के लिए आतुर हो। तुम अभी
नासमझ हो। और, अगर दुम सोचते हो कि परमात्मा के सामने तुम अपने को सिद्ध
करना चाह रहे हो कि मैं सिद्ध हूं तो तुम और महा नासमझ हो; क्योंकि उसके
सामने तो विनम्रता चाहिए। वहां तो अहंकार काम न करेगा। वहां पर तो तुम
मिटकर जाओगे तो ही स्वीकार हो पाओगे। वहां तुम अकड़ लेकर गये तो तुम्हारी
अकड़ ही बाधा हो जायेगी।
इसलिए, तथाकथित सिद्ध परमात्मा’ तक नहीं पहुंच पाते। बहुतसी सिद्धियां
उनकी हो जाती हैं, लेकिन असली सिद्धि चूक जाती है। वह असली सिद्धि है: आत्मज्ञान। क्यों आत्मज्ञान चूक जाता है? क्योंकि सिद्धि भी दूसरे की तरफ
देख रही है, अपनी तरफ नहीं। अगर कोई भी न हो दुनिया में, तुम अकेले होओ तो
तुम सिद्धियां चाहोगे? तुम चाहोगे कि पानी को रू और औषधि हो जाए? मरीज को
क्यूं, स्वस्थ हो जाये? मुर्दे को छूऊं, जिंदा हो जाए? कोई भी न हो पृथ्वी
पर, तुम अकेले होओ तो तुम ये सिद्धियां चाहोगे? तुम कहोगे, क्या करेंगे;
देखनेवाले ही न रहे। देखनेवाले के लिए ही सिद्धियां हैं।
जब तक दूसरे पर तुम्हारा ध्यान है, तब .तक अपने पर तुम्हारा ध्यान नहीं आ
सकता। और, आत्मज्ञान तो उसे फलित होता है, जो दूसरे की तरफ से आंखें अपनी
तरफ मोड लेता है।
शिव कहते है: स्थायी रूप से मोह जय होने पर सहज विद्या फलित होती है।
स्थायी रूप से मोह जय होने पर सहज विद्या फलित होती है मोह को जय करना
है।
मोह का क्या अर्थ है? मोह का अर्थ है. दूसरे के बिना मैं न जी सकूंगा;
दूसरा मेरा केंद्र है। तुमने बच्चों की कहानियां पढ़ी होंगी, जिनमें कोई राजा होता है और जिसके
प्राण किसी पक्षी में, तोते में, मैना में बंद होते हैं। तुम उस राजा को
मारो, न मार पाओगे। गोली आरपार निकल जाएगी, राजा जिंदा रहेगा। तीर छिद जएगा
हृदय में, राजा मरेगा न्हीं। जहर पिला दो, कोई असर न होगा। राजा जीवित
रहेगा। तुम्हें पता लगाना पड़ेगा उस तोते का, मैना का, जिसमें उसके प्राण
बैद हैं। उसे तुम मरोड़ दो, उसकी तुम गर्दन तोड़ दो उधर राजा मर जाएगा। ये
बच्चों कि कहानियां बड़ी अर्थपूर्ण हैं; बूढ़ी के भी समझने योग्य हैं।
मोह का अर्थ है तुम अपने में नहीं जीते, किसी और चीज में जीते हो। समझो,
किसी का मोह तिजोरी में है। तुम उसकी गर्दन मरोड़ दो, वह न मरेगा। तुम
तिजोरी लूट लौ, वह मर गया। उनके प्राण तिजोरी में थे। उनका बैंकबैलेंस
खो जाये वे मर गये। उन्हें तुम मारो, वे मरनेवाले नहीं। जहर पिलाओ वे जिंदा
रहेंगे।
मोह का अर्थ है. तुमने अपने प्राण अपने से हटाकर कहीं और रख दिये हैं।
किसी ने अपने बेटे में रख दिये हैं; किसी ने अपनी पत्नी में रख दिये हैं;
किसी ने धन में रख दिये हैं; किसी ने पद में रख दिये हैं लेकिन, प्राण कहीं
और रख दिये हैं। जहां होना चाहिए प्राण वहां नहीं हैं। तुम्हारे भीतर
प्राण नहीं धड़क रहा है, कहीं और धड़क रहा है। तब तुम मुसीबत में रहोगे।
यही मोह संसार है; क्योंकि जहां जहां तुमने प्राण रख दिये, उनके तुम
गुलाम हो जाओगे। जिस राजा के प्राण तोते में बंद हैं, वह तोते का गुलाम
होगा; क्योंकि तोते के ऊपर सब कुछ निर्भर है। तोता मर जाये तो उसके प्राण
गये। तो, वह तोते को संभालेगा।
दीवाली के दिन पागलों को देखो; सब अपनी अपनी तिजोरी की पूजा कर रहे हैं। वहां उनके प्राण हैं। किस भाव से वे करते हैं, वह भाव देखने जैसा है। दुकानदार हर साल अपनी खाताबही शुरू करता है, तो स्वस्तिक बनाता है।’लाभ शुभ’ लिखता है, ‘श्री गणेशाय नम:’ लिखता है।
क्रमशः
शिव सूत्र
ओशो
No comments:
Post a Comment