मुझे याद आता है कि मेरे एक मित्र, जो बौद्ध भिक्षु हैं, स्टैलिन के
दिनों में सोवियत रूस गए थे। उन्होंने लौटकर मुझे बताया कि वहा जब भी कोई
व्यक्ति उनसे हाथ मिलाता था तो तुरंत झिझककर पीछे हट जाता था और कहता था कि
तुम्हारे हाथ बुर्जुआ के, शोषक के हाथ हैं।
उनके हाथ सचमुच सुंदर थे; भिक्षु होकर उन्हें कभी काम नहीं करना पड़ा था।
वे फकीर थे, शाही फकीर; उनका श्रम से वास्ता नहीं पड़ा था। उनके हाथ बहुत
कोमल, सुंदर और स्त्रैण थे। भारत में जब कोई उनके हाथ छूता तो कहता कि
कितने सुंदर हाथ हैं। लेकिन सोवियत रूस में जब कोई उनके हाथ अपने हाथ में
लेता तो तुरंत सिकुड़कर पीछे हट जाता, उसकी आंखों में निंदा भर जाती और वह
उन्हें कहता कि तुम्हारे हाथ बुर्जुआ के, शोषक के हाथ हैं। वे वापस आकर
मुझसे बोले कि मैंने इतना निंदित महसूस किया कि मेरा मन होता था कि मजदूर
हो जाऊं।
रूस से साधु महात्मा विदा हो गए, क्योंकि आदर न रहा। सब साधुता दिखावटी
थी, प्रदर्शन की चीज थी। आज रूस में केवल सच्चा संत ही संत हो सकता है।
झूठे नकली संतों के लिए वहां कोई गुंजाइश नहीं है। आज तो वहा संत होने के
लिए भारी संघर्ष करना पड़ेगा, क्योंकि सारा समाज विरोध में होगा। भारत में
तो जीने का सबसे सुगम ढंग साधु महात्मा होना है, सब लोग आदर देते हैं। यहां
तुम झूठे हो सकते हो, क्योंकि उसमें लाभ ही लाभ है।
तो इसे स्मरण रखो। सुबह से ही, जैसे ही तुम आंख खोलते हो, सच्चे और
प्रामाणिक होने की चेष्टा करो। ऐसा कुछ भी मत करो जो झूठ और नकली हो। सिर्फ
सात दिन के लिए यह स्मरण बना रहे कि कुछ भी झूठ और नकली, कुछ भी
अप्रामाणिक नहीं करना है। जो भी गंवाना पड़े, जो भी खोना पड़े, खो जाए; जो भी
होना हो, हो जाए; लेकिन सच्चे बने रही। और सात दिन के भीतर तुम्हारे भीतर
नए जीवन का उन्मेष अनुभव होने लगेगा। तुम्हारी मृत पर्तें टूटने लगेंगी, और
नयी जीवंत धारा प्रवाहित होने लगेगी। तुम पहली बार पुनर्जीवन अनुभव करोगे,
फिर से जीवित हो उठोगे।
कृत्य का पोषण करो, ज्ञान का पोषण करो यथार्थ में, स्वप्न में नहीं। जो
भी करना चाहो करो, लेकिन ध्यान रखो कि यह काम सच में मैं कर रहा हूं या
मेरे द्वारा मेरे मां बाप कर रहे हैं? क्योंकि कब के जा चुके मरे हुए लोग,
मृत माता पिता, समाज, पुरानी पीढ़ियां, सब तुम्हारे भीतर अभी भी सक्रिय हैं।
उन्होंने तुम्हारे भीतर ऐसे संस्कार भर दिए हैं कि तुम अब भी उनको ही पूरा
करने में लगे हो। तुम्हारे मां बाप अपने मृत मां बाप को पूरा करते रहे और
तुम अपने मृत मां बाप को पूरा करने में लगे हो। और आश्चर्य कि कोई भी पूरा
नहीं हो रहा है। तुम उसे कैसे पूरा कर सकते हो जो मर चुका? लेकिन मुर्दे
तुम्हारे माध्यम से जी रहे हैं।
जब भी तुम कुछ करो तो सदा निरीक्षण करो कि यह मेरे माध्यम से मेरे पिता
कर रहे हैं या मैं कर रहा हूं। जब तुम्हें क्रोध आए तो ध्यान दो कि यह मेरा
क्रोध है या इसी ढंग से मेरे पिता क्रोध किया करते थे जिसे मैं दोहरा भर
रहा हूं।
मैंने देखा है कि पीढ़ी दर पीढ़ी वही सिलसिला चलता रहता है, पुराने
ढंग ढांचे दोहरते रहते हैं। अगर तुम विवाह करते हो तो वह विवाह करीब करीब
वैसा ही होगा जैसा तुम्हारे मां बाप का था। तुम अपने पिता की भांति व्यवहार
करोगे; तुम्हारी पत्नी अपनी मां की भांति व्यवहार करेगी। और दोनों मिलकर
वही सब उपद्रव करोगे जो उन्होंने किया था।
जब क्रोध आए तो गौर से देखो कि मैं क्रोध कर रहा हूं या कि कोई दूसरा
व्यक्ति क्रोध कर रहा है? जब तुम प्रेम करो तो याद रखो, तुम ही प्रेम कर
रहे हो या कोई और? जब तुम कुछ बोलो तो देखो कि मैं बोल रहा हूं या मेरा
शिक्षक बोल रहा है? जब तुम कोई भाव भंगिमा बनाओ तो देखो कि यह तुम्हारी
भंगिमा है या कोई दूसरा ही वहा है?
यह कठिन होगा; लेकिन यही साधना है, यही आध्यात्मिक साधना है। और सारे खोटे को विदा करो। थोड़े समय के लिए तुम्हें सुस्ती पकड़ेगी, उदासी घेरेगी,
क्योंकि तुम्हारे झूठ गिर जाएंगे और सत्य को आने में और प्रतिष्ठित होने
में थोड़ा समय लगेगा। अंतराल का एक समय होगा; उस समय को भी आने दो। भयभीत
मत होओ, आतंकित मत होओ। देर अबेर तुम्हारे मुखौटे गिर जाएंगे, तुम्हारा
झूठा व्यक्तित्व विलीन हो जाएगा, और उसकी जगह तुम्हारा असली चेहरा,
तुम्हारा प्रामाणिक व्यक्तित्व अस्तित्व में आएगा, प्रकट होगा। और उसी
प्रामाणिक व्यक्तित्व से तुम ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हो।
तंत्र सूत्र
ओशो
No comments:
Post a Comment