पुरुष की जड़ उसके अहंकार में है। इसलिए स्त्री की जड़ उसकी तृष्णा में है। तृष्णा शब्द भी स्त्रैण है, अहंकार शब्द भी पुरुषवाची है। यह पुरुष का रोग है अहंकार, और तृष्णा स्त्री का रोग है। इन दोनों के मिलन से हम सब बने हैं। न तो तुम पुरुष हो अकेले, न तुम स्त्री हो अकेले। जैसे मां और पिता से तुम्हारा जन्म हुआ—आधा हिस्सा मां ने दिया है तुम्हारे शरीर को, आधा हिस्सा तुम्हारे पिता ने दिया है। कोई पुरुष एकदम शुद्ध पुरुष नहीं है, क्योंकि मां का हिस्सा कहां जाएगा? और कोई स्त्री शुद्ध स्त्री नहीं है, क्योंकि पिता का हिस्सा कहां जाएगा? दोनों का मिलन है। ऐसे ही चित्त बना है तृष्णा और अहंकार से। स्त्रियों में तृष्णा की मात्रा ज्यादा, पुरुषों में अहंकार की मात्रा ज्यादा। भेद मात्रा का है। और दोनों महारोग हैं। और दोनों को मारे बिना कोई दुख से मुक्त नहीं होता।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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