Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Sunday, October 11, 2015

तृष्णा - अहंकार

तृष्णा स्त्रैण है, अहंकार पुरुष है। पुरुष को कष्ट होता है तभी जब किसी का अहंकार बढ़ता देखने लगे। जब उसके अहंकार को चोट लगती है तब वह बेचैन होता है। वस्तुएं चाहे न हों, मगर प्रतिष्ठा हो। प्रतिष्ठा के लिए सब भी छोड़ने को तैयार होता है पुरुष, मगर प्रतिष्ठा छोड़ने को तैयार नहीं होता। मैं कुछ हूं, ऐसा भाव रहे तो वह सब छोड़ने को तैयार है। भूखा मर सकता है, उपवास कर सकता है अगर लोगों को खयाल रहे कि यह महातपस्वी है। नंगा खड़ा हो सकता है, धूप ताप सह सकता है, बस एक बात भर बनी रहे कि यह आदमी गजब का है।

पुरुष की जड़ उसके अहंकार में है। इसलिए स्त्री की जड़ उसकी तृष्णा में है। तृष्णा शब्द भी स्त्रैण है, अहंकार शब्द भी पुरुषवाची है। यह पुरुष का रोग है अहंकार, और तृष्णा स्त्री का रोग है। इन दोनों के मिलन से हम सब बने हैं। न तो तुम पुरुष हो अकेले, न तुम स्त्री हो अकेले। जैसे मां और पिता से तुम्हारा जन्म हुआ—आधा हिस्सा मां ने दिया है तुम्हारे शरीर को, आधा हिस्सा तुम्हारे पिता ने दिया है। कोई पुरुष एकदम शुद्ध पुरुष नहीं है, क्योंकि मां का हिस्सा कहां जाएगा? और कोई स्त्री शुद्ध स्त्री नहीं है, क्योंकि पिता का हिस्सा कहां जाएगा? दोनों का मिलन है। ऐसे ही चित्त बना है तृष्णा और अहंकार से। स्त्रियों में तृष्णा की मात्रा ज्यादा, पुरुषों में अहंकार की मात्रा ज्यादा। भेद मात्रा का है। और दोनों महारोग हैं। और दोनों को मारे बिना कोई दुख से मुक्त नहीं होता।

एस धम्मो सनंतनो

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts