क्या आपको पता है कि महात्मा गांधी के साथ आपने क्या किया? कोई सोच भी
नहीं सकता था कि कोई हिंदू गांधी को मारेगा। लेकिन वह भी गौण बात है,
क्योंकि मृत्यु कोई बहुत बड़ी बात नहीं। गांधी को तो मरना ही होता। लेकिन
गांधी मरने के पहले कहने लगे थे कि मेरे मानने वालों में अब मेरा सिक्का
नहीं चलता; मेरे मानने वाले भी सब मेरे विपरीत हो गए हैं; मेरी कोई सुनता
नहीं है। मैं खोटा सिक्का हो गया हूं।
गांधी को पूजा आपने, और फिर गांधी को खुद कहना पड़े कि मैं खोटा सिक्का
हो गया हूं; अब मेरा कोई चलन नहीं है। क्या बात होगी? गांधी चाहते थे कि एक
सौ पच्चीस वर्ष जीएं, लेकिन मरने के पहले उन्होंने कहना शुरू कर दिया था
कि अब मेरी और जीने की कोई इच्छा नहीं है। क्योंकि जिनके लिए मैं जीना
चाहता था उन्होंने सब पीठ फेर ली। क्या अर्थ क्या है इसका? हम इन दोनों
तथ्यों को जोड़ कर कभी नहीं देखते।
च्यांग काई शेक को चीन ने इतना आदर दिया था जिसका हिसाब नहीं। च्यांग
काई शेक अब जिंदा है, लेकिन चीन में कोई पूछने वाला नहीं। चीन की जमीन पर
च्यांग काई शेक पैर भी नहीं रख सकता है। चीन की जनता उसको नंबर एक दुश्मन
मानती है। रूजवेल्ट ने अमरीका को बचाया; दूसरे महायुद्ध में विजय के निकट
लाया। सारी दुनिया को युद्ध से बचाने में रूजवेल्ट का गहनतम हाथ था। लेकिन
युद्ध के बाद अमरीकी संसद ने एक संशोधन किया अपने विधान में और उस संशोधन
के द्वारा रूजवेल्ट वापस प्रेसिडेंट न हो जाए, इसकी व्यवस्था कर ली।
क्या होगा इस सबके पीछे राज? व्यक्तियों का सवाल नहीं है। लाओत्से जिस
जीवन के द्वन्द की बात कर रहा है, और जिस लय की, उसका सवाल है। आदर के
पीछे छिपा है अनादर; सम्मान के पीछे छिपा है अपमान।
“सत्ता से जिसे गिराना है, पहले उसे फैलाव देना पड़ता है। और जिसे दुर्बल
करना है, पहले उसे बलवान बनाना होता है। जिसे नीचे गिराना है, पहले उसे
शिखरस्थ करना होता है। जिससे छीन लेना है, पहले उसे दे देना होता है।’ और
जो इस राज को समझ लेता है, उसे लाओत्से कहता है, “इस राज को समझ लेना
सूक्ष्म दृष्टि है।’
और यह राज गहन है। क्योंकि यह राज अगर समझ में आ जाए तो आप पहले चरण को
इनकार कर देते हैं; दूसरे चरण का कोई सवाल नहीं उठता।
लाओत्से निरंतर कहता
था, मुझे कोई भी हरा नहीं सकता, क्योंकि मैं पहले से ही हारा हुआ हूं।
लाओत्से कहता था, मुझे कोई धक्के देकर पीछे नहीं हटा सकता, क्योंकि मैं
सबसे पीछे खड़ा ही होता हूं; उसके पीछे कोई जगह नहीं है। लाओत्से कहता है,
अगर पहला कदम उठा लिया तो दूसरा कदम मजबूरी है; फिर उससे रुका नहीं जा
सकता। पहले कदम पर सावधानी! तो फिर वह जीवन का जो का संगीत है, जो
कि वस्तुतः विसंगीत है, संगीत नहीं, क्योंकि कलह है और एक आंतरिक तनाव है
और एक बेचैनी है और एक संताप है। जो पहले कदम पर सम्हल जाता है, दूसरे कदम
का कोई सवाल नहीं।
लेकिन पहला कदम बड़ा प्रलोभक है और सम्हलना अति जटिल है और बहुत कठिन है।
पहले कदम का प्रलोभन भारी है, क्योंकि तब यह खयाल भी नहीं आता कि मैं और
खोटा सिक्का हो जाऊंगा! इसकी कल्पना भी नहीं उठती कि मैं और अनादृत हो
जाऊंगा! कि मुझे और घृणा मिलेगी! जब कोई प्रेम से आपके गले में बांहें डाल
देता है तो आप सोच भी तो नहीं सकते कि इससे शत्रुता निकल सकती है। असंभव
है! यह कल्पना ही नहीं पकड़ती। और इसीलिए तो इतने लोग दुख में हैं। क्योंकि
पहले कदम पर जो चूक जाता है; दूसरे कदम में मजबूरी है, फिर उससे बचने का
कोई उपाय नहीं।
ध्यान रहे, जिसने पहला कदम उठा लिया उसे दूसरा उठाना ही पड़ेगा। वह नियति
का हिस्सा हो गया। और जो पहले पर सावधान हो गया उसके लिए दूसरे का कोई
सवाल ही नहीं है।
ताओ उपनिषद
ओशो
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