जैसा सुषुप्ति में पैदा होता है, कोई जन्मता और मरता है; रूप में जन्मता और
मरता है, वैसे ही जाग्रत में भी जन्म और मरण के उपाय हैं। वह आखिरी बात
है, जब कोई जाग्रत में मरता है। अगर जाग्रत में कोई मरता है, तो आनेवाला
जन्म अगर उसे लेना हो तो ही लेगा, अन्यथा जन्म नहीं होगा। क्योंकि अब चुनाव
उसके हाथ में है। जो जाग्रत में मरता है, चुनाव उसके हाथ में है। वह चाहे
तो ही, प्रयास करे तो ही जन्म होगा। अन्यथा उसका जन्म नहीं होगा। ऐसा
व्यक्ति जागा ही गर्भ में प्रवेश करेगा। जागा ही गर्भ में रहेगा। जला ही
जन्मेगा। सुषुप्ति में जो बच्चा पैदा होता है, वह भी मां को प्रभावित करता
है।
इसलिए मां अक्सर ऐसा होता है कि जब बच्चा मां के पेट में हो तो मां का
गुणधर्म बदल जाता है। उसका व्यवहार बदल जाता है। बोलचाल बदल जाता है, अनेक
बातें बदलाहट मालूम पड़ने लगती हैं। कई बार साधारण स्रियां अचानक गर्भ के
साथ सुंदर हो जाती हैं। विचारशील हो जाती हैं। कई बार सुंदर स्रियां गर्भ
के साथ कुरूप हो जाती हैं। विचारशील स्रियां विचारहीन हो जाती हैं। शांत
स्रियां अशांत हो जाती हैं। अशांत स्त्रियां शांत हो जाती हैं। नौ महीने एक
दूसरा जीवन भी भीतर होता है, वह प्रभावित करता है।
सुषुप्त बच्चा भी प्रभावित करता है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। स्वप्रवाला
बच्चा बहुत प्रभावित करता है। मां के सारे स्वप्र, सारे विचार उस पर
आच्छादित हो जाते हैं। लेकिन अगर जाग्रत व्यक्ति पैदा हो, तो मां पूरी तरह
रूपांतरित हो जाती है। यहीं जैनों के तीर्थंकर की और हिंदुओं के अवतार की
धारणा का फर्क है। हिंदू मानते हैं कि अवतार वह व्यक्ति है, जो जागा हुआ ही
पैदा होता है। जागा हुआ ही पैदा होता है, इसलिए वह ईश्वर का अवतरण कहते
हैं। क्योंकि वह व्यक्ति चाहता, तो अभी ईश्वर से मिल सकता था। इसको जरा ठीक
से समझ लेना। पिछली मृत्यु के बाद वह चाहता तो ईश्वर से मिल सकता था। कोई
बाधा न थी, कोई जमीन की तरफ खिंचने का कारण न था। नये जन्म की कोई भी वजह न
रही थी। वह ईश्वर से मिलने के ही करीब खड़ा था, मिल गया था, फिर भी लौट
आया। इसको हिंदू अवतरण कहते हैं। इसको जन्म नहीं कहते हैं। क्योंकि वे कहते
हैं, यह आदमी ऊपर से लौटा है। अवतार है। यह जाग्रत में घटेगा।
जीसस जैसे व्यक्ति का जन्म ईसाइयत में भी जाग्रत में है। पूरा जाग्रत में है। यहां एक और बात ख्याल में लेनी चाहिए।
जब भी कोई जाग्रत व्यक्ति पैदा होता है, तो स्री पुरुष का संभोग घटित
नहीं होता। इसलिए ईसाइयत बड़ी मुश्किल में पड़ गयी है। क्योंकि ‘वर्जिन’ से,
कुंआरी लड़की से जन्म हुआ है जीसस का। और ईसाइयत के पास इसका पूरा विज्ञान
नहीं है। इसका पूरा खयाल नहीं है कि यह कैसे घटित हो सकता है। कुंआरी लड़की
से बच्चा कैसे पैदा हो सकता है?
सोया हुआ बच्चा कुंआरी लड़की से पैदा नहीं हो सकता। सोया हुआ बच्चा
स्वभावत: बिलकुल ही पाशविक ढंग से, संभोग से पैदा होगा। स्वप्र में पैदा
होनेवाला बच्चा साधारण संभोग से पैदा नहीं होता, यौगिक संभोग से पैदा होता
है। तांत्रिक संभोग से पैदा होता है। एक विशिष्ट संभोग से पैदा होता है।
जिसमें ध्यान संयुक्त होता है, मूर्छा नहीं होती। जाग्रत पुरुष संभोग से
पैदा ही नहीं होता। संभोग से उसका कोई संबंध ही नहीं होता। वह कुंआरी मां
से ही पैदा हो सकता है। इसे बहुत बार तो छिपा लिया गया है। छिपा इसलिए गया
है कि यह भरोसे का नहीं होगा, विश्वास नहीं किया जा सकेगा और अकारण परेशानी
पैदा होगी.....
क्रमशः
ओशो
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