क्या तुमने पडोस का डब्बा नामक यूनानी कहानी सुनी है? किसी आदमी ने बदला
लेने के लिए पडोस के पास एक डब्बा भेजा। उस डब्बे में वे सब रोग बंद थे जो
अभी मनुष्यजाति के बीच फैले हैं। वे रोग उसके पहले नहीं थे; जब वह डब्बा
खुला तो सभी रोग बाहर निकल आए। पडोस रोगों को देखकर डर गई और उसने डब्बा
बंद कर दिया। केवल एक रोग रह गया, और वह थी आशा। अन्यथा आदमी समाप्त हो गया
होता; ये सारे रोग उसे मार डालते, लेकिन आशा के कारण वह जीवित रहा।
तुम क्यों जी रहे हो? क्या तुमने कभी यह प्रश्न पूछा है? यहां और अभी
जीने के लिए कुछ भी नहीं है; सिर्फ आशा है। तुम भी पडोस का डब्बा ढो रहे
हो। ठीक अभी तुम क्यों जीवित हो? हरेक सुबह तुम क्यों बिस्तर से उठ आते हो?
क्यों तुम रोज रोज फिर वही करते हो जो कल किया था? यह पुनरुक्ति क्यों?
कारण क्या है?
तुम इसका कोई कारण नहीं बता सकते जो अभी से, वर्तमान से संबंधित हो कि
तुम क्यों जी रहे हो। अगर कोई कारण ढूढोगे तो वह भविष्य से संबंधित होगा।
वह कोई आशा होगी कि कुछ होने वाला है, किसी दिन कुछ होने वाला है। और
तुम्हें यह पता नहीं है कि वह दिन कब आएगा। तुम्हें यह भी पता नहीं है कि
क्या होने वाला है। लेकिन किसी दिन कुछ होने वाला है, इस उम्मीद में तुम
अपने को खींचे चले जाते हो, अपने को ढोए चले जाते हो।
मनुष्य आशा में जीता
है। लेकिन यह जीवन नहीं है, क्योंकि आशा तो सपना है। जब तक तुम यहां और अभी
नहीं जीते हो, तुम जीवित ही नहीं हो। तब तक तुम एक मृत बोझ हो। और वह कल
तो कभी आने वाला नहीं है जब तुम्हारी सब आशाएं पूरी हो जाएंगी। और जब
मृत्यु आएगी तो तुम्हें पता चलेगा कि अब कोई कल नहीं है, और अब स्थगित करने
का भी उपाय नहीं है। तब तुम्हारा भ्रम टूटेगा; तब तुम्हें लगेगा कि यह
धोखा था। लेकिन किसी दूसरे ने तुम्हें धोखा नहीं दिया है; अपनी दुर्गति के
लिए तुम स्वयं जिम्मेवार हो।
इस क्षण में, वर्तमान में जीने की चेष्टा करो। और आशाएं मत पालो चाहे वे
किसी भी ढंग की हों। वे लौकिक हो सकती हैं, पारलौकिक हो सकती हैं; इससे
कुछ फर्क नहीं पड़ता है। वे धार्मिक हो सकती हैं, किसी भविष्य में, किसी
दूसरे लोक में, स्वर्ग में, मृत्यु के बाद, निर्वाण में, लेकिन इससे कोई
फर्क नहीं पड़ता है। कोई आशा मत करो। यदि तुम्हें थोड़ी निराशा भी अनुभव हो,
तो भी यहीं रहो। यहां से और इस क्षण से मत हटो। हटो ही मत। दुख सह लो,
लेकिन आशा को मत प्रवेश करने दो। आशा के द्वारा स्वप्न प्रवेश करते हैं।
निराश रहो, अगर जीवन में निराशा है तो निराश रहो। निराशा को स्वीकार करो;
लेकिन भविष्य में होने वाली किसी घटना का सहारा मत लो।
और तब अचानक बदलाहट होगी। जब तुम वर्तमान में ठहर जाते हो तो सपने भी
ठहर जाते हैं। तब वे नहीं उठ सकते, क्योंकि उनका स्रोत ही बंद हो गया। सपने
उठते हैं, क्योंकि तुम उन्हें सहयोग देते हो, तुम उन्हें पोषण देते हो।
सहयोग मत दो; पोषण मत दो।
तंत्र सूत्र
ओशो
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