इसमे भी दो तीन बातें ख्याल में लेनी पड़ेगी। एक जन्म को
चुन सकने का मतलब यह है कि चाहे तो जन्म ले। यह तो पहली स्वतंत्रता है,
ज्ञान को उपल्बध व्यक्ति को चाहे तो जन्म ले। लेकिन जैसे ही हमने कोई
चीज चाही कि चाह के साथ परतंत्रताएं आनी शुरू हो जाती है।
मैं मकान के बहार खड़ा था मुझे स्वतंत्रता थी कि चाहूं तो मकान
के भीतर जाऊं। मकान के भीतर में आया। लेकिन मकान के भीतर आते ही से मकान की
सीमाएं और मकान की परतंत्रताएं तत्काल शुरू हो जाती है। तो जन्म लेने की
स्वतंत्रता जितनी बड़ी है। उतनी मरने की स्वतंत्रता उतनी बड़ी नहीं है।
उतनी बड़ी नहीं है। रहेगी। साधारण आदमी को तो मरने की कोई स्वतंत्रता नहीं
है, क्योंकि उसने जन्म को ही कभी नहीं चुना। लेकिन फिर भी जन्म को
स्वतंत्रता बहुत बड़ी है। टोटल है एक अर्थ में, कि वह चाहे तो इनकार भी कर
दे, न चुने। लेकिन चुनने के साथ ही बहुत सी परतंत्रताएं शुरू हो जाती है।
क्योंकि अब वह सीमाएं चुनता है। वह विराट जगह को छोड़ कर संकरी जगह में
प्रवेश करता है। अब संकरी जगह की अपनी सीमाएं होंगी।
अब वह एक गर्भ चुनता है। साधारणत: तो हम गर्भ नहीं चुनते। इसलिए
कोई बात नहीं है। लेकिन वैसा आदमी गर्भ चुनता है। उसके सामने लाखों गर्भ
होते है। उनमें से वह एक गर्भ चुनता है। हर गर्भ के चुनाव के साथ वह
परतंत्रता की दुनिया में प्रवेश कर रहा है। क्योंकि गर्भ की अपनी सीमाएं
है। उसने एक मां चूनी, एक पिता चूना। उन मां और पिता के वीर्याणुओं की
जितनी आयु हो सकती है वह उसने चुन ली। यह चुनाव हो गया।
अब इस शरीर का उसे
उपयोग करना पड़ेगा। अब बाजार में एक मशीन खरीदने गए है, एक दस साल की
गारंटी की मशीन आपने चुन ली। अब सीमा आ गई एक। पर यह वह जान कर ही चुन रहा
है। इसलिए परतंत्रता उसे नहीं मालूम पड़ेगी। परतंत्रता हो जाएगी, लेकिन वह
जान कर ही चुन रहा है। आप यह नहीं कह सकते की मैने यह मशीन खरीदी। तो अब
मैं गुलाम हो गया। आपने ही चूनी थी। दस साल चलेगी यह जान कर चुनी थी। बात
खत्म हो गई। इसमे कही कोई पीड़ा नहीं है। इसमें कहीं कोई दंश नहीं है।
यद्यपि वह जानता है कि यह शरीर कब समाप्त हो जाएगा। और इसलिए इस शरीर के
समाप्त होने का जो बोध है, वह उसे होगा। वह जानता है, कब समाप्त हो
जाएगा। इसलिए इस तरह के आदमी में एक तरह की व्यग्रता होगी, जो साधारण आदमी
में नहीं होगी।
अगर हम जीसस की बातें पढ़ें तो ऐस लगता है वे बहुत व्यग्र है।
अभी कुछ होने वाला है, अभी कुछ हो जाने वाला हे। उनकी तकलीफ वे लोग नहीं
समझ सकते। क्योंकि उनके लिए मृत्यु का कोई सवाल नहीं है और जीसस आपसे
कह रहे है कि यह काम कर लो, आप कहते है कल कर लेंगे। अब जीसस की कठिनाई है
कि वह जानता है कि कल वह कहने को नहीं होगा।
तो चाहे महावीर हों, चाहे बुद्ध हो, चाहे जीसस हो, इनकी व्यग्रता
बहुत ज्यादा है। बहुत तीव्रता से भाग रहे है। क्योंकि वे सारे मुर्दों
के बीच में ऐसे व्यक्ति है जिन्हें पता है। बाकी सब तो बिलकुल निशिंचत
है; कोई जल्दी नहीं है। ओर कितनी ही उम्र हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि
वह सौ साल जाएगा कि दो सौ साल जिएगा। सारा समय ही छोटा है, वह तो हमे समय
छोटा नहीं मालूम पड़ता, क्योंकि वह कब खत्म होगा, यह हमे कुछ पता नहीं
है। खत्म भी होगा यह भी हम भुलाए रखते है।
तो जन्म की स्वतंत्रता तो बहुत ज्यादा है। लेकिन जन्म कारागृह
में प्रवेश है, तो कारागृह की अपनी परतंत्रताएं है, वे स्वीकार कर लेनी
पड़ेगी। और ऐसा व्यक्ति सहजता से स्वीकार करता है, क्योंकि वह चुन रहा
है। अगर वह कारागृह में आया है तो वह लाया नहीं गया है। वह आया है। इसलिए
वह हाथ बढ़ाकर ज़ंजीरें डलवा लेता है। इन ज़ंजीरों में कोई दंश नहीं है।
इनमें कोई पीड़ा नहीं है। वह अंधेरी दीवारों के पास सो जाता है। इससे उसको
अड़चन नहीं है। क्योंकि किसी ने उसे कहा नही था कि वह भीतर जाए। वह खुले
आकाश के नीचे रह सकता था। अपनी ही मर्जी से आया है, यह उसका चुनाव है।
जब परतंत्रता भी चुनी जाती है तो वह स्वतंत्रता है। और
स्वतंत्रता भी बिना चुनी मिलती है तो वह परतंत्रता है।
स्वतंत्रता-परतंत्रता इतनी सीधी बंटी हुई चीजें नहीं है। अगर हमने
परतंत्रता भी स्वंय चुनी है तो वह स्वतंत्रता है। और अगर हमें
स्वतंत्रता भी जबरदस्ती दे दी गई है तो वह परतंत्रता ही होती है। उसमे
कोई स्वतंत्रता नहीं है।
फिर भी ऐसे व्यक्ति के लिए सी बातें साफ होती है। इसलिए वह
चीजों को तय कर सकता है। जैसे उसे पता है कि वह सत्तर साल में चला जाएगा
तो वह चीजों का तय कर पता है। जो उसे करना है, वह साफ कर लेता है। चीजों को
उलझाता नहीं। जो सत्तर साल में सुलझ जाए ऐसा ही काम करता है। जो कल पूरा
हो सकेगा, वह निपटा देता है। वह इतने जाल नहीं फैलाता जो की कल के बाहर चले
जाएं। इसलिए वह कभी चिंता में नहीं होता। वह जैसे जीता है वैसे ही मरने की
भी सारी तैयारी करता रहता है। मौत भी उसके लिए एक प्रिपरेशन है, एक तैयारी
है।
एक अर्थ में वह बहुत जल्दी में होता है, जहां तक दूसरों का संबंध
है। जहां तक खुद का संबंध है, उसकी कोई जल्दी नहीं होती। क्योंकि कुछ
करने को उसे बचा नहीं होता है। फिर भी इस मृत्यु को, वह कैसे घटित हो,
इसका चुनाव कर सकता है। सीमाओं के भीतर। सत्तर साल उसका शरीर चलना है तो
सीमाओं के भीतर वह सत्तर साल में ठीक मोमेंट दे सकता है मरने का। कि वह कब
मरे, कैसे मेरे, किस व्यवस्था और किस ढंग से मेरे।
No comments:
Post a Comment