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Sunday, October 11, 2015

मातरं पितरं हंत्‍वा राजानो द्वे च खत्तिये। रट्ठं सानुचरंहंत्‍वा अनीधो याति ब्राह्मणो ।।




तुम्हारी मां और पिता तुम्हारे भीतर सदा बैठे हैं। इनकी भी मृत्यु होनी चाहिए। इसका बाहर के माता पिता से कोई संबंध नहीं है। ट्राजेक्यानल एनालिसिस का कहना यह है कि वही व्यक्ति ठीक से प्रौढ हो पाता है जिसके भीतर माता पिता की आवाज समाप्त हो जाती है। नहीं तो तुम कुछ भी करो, माता पिता की आवाज पीछा करती है।

समझो कि तुम बचपन में कुछ काम करते थे, मां  बाप ने रोक दिया था, अब भी तुम वह काम करना चाहते हो, भीतर से एक आवाज आती है, तुम्हारा पिता कहता है नहीं। हालांकि अब तुम स्वतंत्र हो। तुम अंधेरी रात में बाहर जाना चाहते थे, पिता ने रोक दिया था। तुम छोटे बच्चे थे, यह ठीक भी था रोक देना, तुम्हारी परिस्थिति के अनुकूल था। अब भी तुम अंधेरे में जाते हो बाहर तो ऐसा लगता है पिता इनकार कर रहे हैं। साफ नहीं होता, भीतर से कोई रोकता है, भीतर से कोई दबाता है, भीतर से कोई कहता है मत जाओ, यह मत करो, ऐसा मत करो। यह जो भीतर तुम्हारे पिता की आवाज है, यह तुम्हें कभी बढ़ने न देगी। तुम्हारी मां अभी भी तुम्हें पकड़े हुए है। वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ती। उससे छुटकारा चाहिए।

समझो कि तुम किसी एक लड़की के प्रेम में पड़ गए थे, और तुम्हारी मां ने बाधा डाल दी थी शायद जरूरी था डालना, तुम्हारी उम्र भी नहीं थी अभी, अभी तुम प्रेम का अर्थ भी नहीं समझ सकते थे, अभी तुम झंझट. में पड़ जाते, अभी तुम उलझ जाते, तुम्हारी पढ़ाई लिखाई रुक जाती, तुम्हारा विकास रुक जाता मां ने रोक दिया था। मां ने सब तरह से तुम्हें लड़कियों से बचाया था।

अब तुम्हारी शादी भी हो गयी है, तुम्हारी पत्नी घर में है, लेकिन जब तुम पत्नी का भी हाथ हाथ में लेते हो, तुम्हारी मां भीतर से रोक रही है। वह कह रही है, सावधान! झंझट में. मत पड़ना। तो तुम पत्नी का हाथ भी हाथ में लेते हो, लेकिन पूरे मन से नहीं ले पाते। वह मां पीछे खींच रही है। इस मा का जाना होना ही चाहिए, नहीं तो तुम कभी प्रौढ़ न हो पाओगे।


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