जप के साथ भी कठिनाई है। जप का अगर कोई यह अर्थ ले ले कि जप करते-करते
ही पहुंच जाऊंगा, तो गलती में है। जप करते-करते कोई कभी नहीं पहुंचा है। जप
का उपयोग ऐसा ही किया जाता है जैसे पैर में एक कांटा लग गया हो और उस
कांटे को हम दूसरे कांटे से निकाल देते हैं। लेकिन फिर दूसरे कांटे को पहले
वाले कांटे के घाव में रख नहीं लेते सुरक्षित। पहला कांटा निकला कि दूसरा
बिलकुल वैसे ही बेकार है, जैसा पहला है, और दोनों को एक-साथ फेंक देते हैं।
लेकिन हो सकता है कोई नासमझ! वह कहे कि जिस कांटे ने मेरा कांटा निकाला,
उसको मैं कैसे फेंक सकता हूं। वह कहे कि शिष्टता भी तो कम-से-कम इतना कहती
है कि जिस कांटे ने मेरा कांटा निकाला उसको मैं सम्हाल कर रखूं। तब यह आदमी
पागल है।
बुद्ध निरंतर कहते हैं, बार-बार एक कहानी वह कहते हैं कि एक गांव में कुछ लोग एक नाव से उतरे, फिर जब वे नाव से नदी के किनारे उतर गए तो उन आठों लोगों ने तय किया–वे बड़े बुद्धिमान थे–उन्होंने तय किया कि जिस नाव ने हमें नदी पार कराई, उस नाव को हम छोड़ कैसे सकते हैं! और उन्होंने सोचा कि जिस नाव से हम नदी पार किए और जिस पर हम बैठकर सवार हुए, अब उचित है कि हम उसको अपने ऊपर सवार करें। तो उन्होंने नाव को आठों आदमियों ने अपने सिरों पर उठा लिया और बाजार की तरफ चले। गांव में लोग उनसे पूछने लगे कि पागलो, हमने नाव पर तो बहुत बार लोगों को देखा, लेकिन नाव लोगों पर नहीं देखी, यह बात क्या है? वे सब कहने लगे कि तुम हो अकृतज्ञ। तुम्हें “ग्रेटीच्यूड’ का कुछ पता नहीं है। हम जानते हैं अनुग्रह का भाव। इस नाव ने हमें नदी पार करवाई है, अब इस नाव को संसार पार करवा के रहेंगे। अब तो सदा यह हमारे सिर पर रहेगी।
तो बुद्ध यह मजाक में कहते हैं कि बहुत लोग हैं, जो फिर साधना को इस बुरी तरह पकड़ लेते हैं कि वही साध्य हो जाता है। नदी पार करने को नाव है, सिर पर ढोने को नाव नहीं है।
जप का उपयोग किया जा सकता है, इस होश के साथ कि वह भी एक कांटा है। और अगर आपने उसको कांटा नहीं समझा और प्रेम में पड़ गए उसके, तो जो दूसरे विचार आपको भरे थे वे तो हट जाएंगे, जप आपको भर देगा। अब एक आदमी चौबीस घंटे राम-राम, राम-राम कर रहा है, उसकी बजाय हो सकता है जो व्यर्थ विचारों से भरा है उसके जीवन में भी कुछ सार्थकता फलित हो जाए, क्योंकि उसके व्यर्थ विचारों में भी कुछ आ सकता है। इसके पास सिवाय राम-राम के कुछ आने को नहीं है। और जब यह राम-राम को छोड़ने को राजी नहीं होगा, यह कहेगा सब विचारों से छुटकारा दिलाया राम-राम ने, तो अब मैं कैसे छोड़ सकता हूं, अब तो मैं नाव को सिर पर रखूंगा।
कृष्ण स्मृति
बुद्ध निरंतर कहते हैं, बार-बार एक कहानी वह कहते हैं कि एक गांव में कुछ लोग एक नाव से उतरे, फिर जब वे नाव से नदी के किनारे उतर गए तो उन आठों लोगों ने तय किया–वे बड़े बुद्धिमान थे–उन्होंने तय किया कि जिस नाव ने हमें नदी पार कराई, उस नाव को हम छोड़ कैसे सकते हैं! और उन्होंने सोचा कि जिस नाव से हम नदी पार किए और जिस पर हम बैठकर सवार हुए, अब उचित है कि हम उसको अपने ऊपर सवार करें। तो उन्होंने नाव को आठों आदमियों ने अपने सिरों पर उठा लिया और बाजार की तरफ चले। गांव में लोग उनसे पूछने लगे कि पागलो, हमने नाव पर तो बहुत बार लोगों को देखा, लेकिन नाव लोगों पर नहीं देखी, यह बात क्या है? वे सब कहने लगे कि तुम हो अकृतज्ञ। तुम्हें “ग्रेटीच्यूड’ का कुछ पता नहीं है। हम जानते हैं अनुग्रह का भाव। इस नाव ने हमें नदी पार करवाई है, अब इस नाव को संसार पार करवा के रहेंगे। अब तो सदा यह हमारे सिर पर रहेगी।
तो बुद्ध यह मजाक में कहते हैं कि बहुत लोग हैं, जो फिर साधना को इस बुरी तरह पकड़ लेते हैं कि वही साध्य हो जाता है। नदी पार करने को नाव है, सिर पर ढोने को नाव नहीं है।
जप का उपयोग किया जा सकता है, इस होश के साथ कि वह भी एक कांटा है। और अगर आपने उसको कांटा नहीं समझा और प्रेम में पड़ गए उसके, तो जो दूसरे विचार आपको भरे थे वे तो हट जाएंगे, जप आपको भर देगा। अब एक आदमी चौबीस घंटे राम-राम, राम-राम कर रहा है, उसकी बजाय हो सकता है जो व्यर्थ विचारों से भरा है उसके जीवन में भी कुछ सार्थकता फलित हो जाए, क्योंकि उसके व्यर्थ विचारों में भी कुछ आ सकता है। इसके पास सिवाय राम-राम के कुछ आने को नहीं है। और जब यह राम-राम को छोड़ने को राजी नहीं होगा, यह कहेगा सब विचारों से छुटकारा दिलाया राम-राम ने, तो अब मैं कैसे छोड़ सकता हूं, अब तो मैं नाव को सिर पर रखूंगा।
कृष्ण स्मृति
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