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Saturday, October 24, 2015

सपने परिपूरक हैं.....

 ..... और मनसविद कहते हैं कि मनुष्य जैसा है, सपनों के बिना उसका जीना कठिन होगा। और वे एक अर्थ में सही हैं। जैसा मनुष्य है, सपनों के बिना उसका जीना कठिन होगा। लेकिन यदि तुम अपना रूपांतरण चाहते हो तो तुम्हें सपनों के बिना रहना होगा। सपने क्यों निर्मित होते हैं? सपने कामनाओं के कारण निर्मित होते हैं। अतृप्त कामनाएं सपने बन जाती हैं। अपनी कामनाओं को, वासनाओं को समझो; बोधपूर्वक उनका निरीक्षण करो। तुम जितना उनका निरीक्षण करोगे, वे उतनी ही विलीन हो जाएंगी। और तब तुम मन के जाले बुनना बंद कर दोगे; तब तुम अपने निजी संसार में रहना छोड़ दोगे।

सपनों की साझेदारी नहीं हो सकती है। दो घनिष्ठ मित्र भी एक दूसरे को अपने सपनों में साझेदार नहीं बना सकते; वे एक दूसरे को अपने सपनों में आमंत्रित नहीं कर सकते। क्यों? तुम और तुम्हारा प्रेमी, दोनों एक ही सपना नहीं देख सकते, तुम्हारा सपना तुम्हारा है, दूसरे का सपना दूसरे का है। सपने बिलकुल निजी हैं, वैयक्तिक हैं। सत्य उतना निजी नहीं है; केवल पागलपन निजी होता है। सत्य सार्वभौम है; तुम उसमें दूसरों को भी साझेदार बना सकते हो। लेकिन सपनों की साझेदारी नहीं हो सकती; वे तुम्हारी निजी विक्षिप्तताएं हैं, वैयक्तिक कल्पनाएं हैं। तो फिर क्या किया जाए?

एक व्यक्ति दिन में इतनी समग्रता से जी सकता है कि कुछ भी अवशेष न रहे, कुछ भी बाकी न रहे। अगर तुम भोजन कर रहे हो तो समग्रता से भोजन करो। इस समग्रता से भोजन का स्वाद लो, सुख लो कि रात में उसे किसी सपने में भोगने की जरूरत न पड़े। अगर तुम किसी को प्रेम करते हो तो इतनी समग्रता से प्रेम करो कि फिर प्रेम को तुम्हारे सपने में प्रवेश न करना पड़े। तुम दिन में जो भी करते हो उसे इतनी समग्रता से करो कि चित्त में कुछ भी अधूरा, कुछ भी अटका न रह जाए जिसे सपने में पूरा करना पड़े।

इसे प्रयोग करो। और कुछ महीनों के भीतर तुम्हारी नींद की गुणवत्ता बदल जाएगी। सपने कम से कम होने लगेंगे और नींद गहरी से गहरी होती जाएगी। और जब रात में सपने कम होंगे तो दिन में प्रक्षेपण भी कम हो जाएंगे। क्योंकि सच्चाई यह है कि तुम्हारी नींद जारी रहती है, तुम्हारे सपने चलते रहते हैं। रात में बंद आंखों के साथ और दिन में खुली आंखों के साथ सपने जारी रहते हैं। तुम्हारे भीतर उनका सतत प्रवाह चलता रहता है। कभी एक क्षण को आंखें बंद करो और प्रतीक्षा करो। तुम देखोगे कि सपनों की फिल्म लौट आई है, सपनों का कारवां चला जा रहा है। वह सदा मौजूद ही है, तुम्हारी प्रतीक्षा करता है।

सपने वैसे ही हैं जैसे दिन में तारे होते हैं। दिन में तारे कहीं चले नहीं जाते; सिर्फ सूर्य के प्रकाश के कारण वे दिखाई नहीं पड़ते हैं। वे वहां ही हैं, और जब सूरज छिप जाता है तो वे फिर प्रकट हो जाते हैं। तुम्हारे सपने ठीक वैसे ही हैं; तुम्हारे जागरण में भी वे भीतर सरकते रहते हैं। वे प्रतीक्षा में हैं; आंखें बंद करो और वे सक्रिय हो जाते हैं।

जब रात में सपने कम होने लगेंगे तो दिन में तुम्हारे जागरण की गुणवत्ता और हो जाएगी। अगर तुम्हारी रात बदलती है तो तुम्हारा दिन भी बदल जाता है। अगर तुम्हारी नींद बदलती है तो तुम्हारा जागरण भी बदल जाता है। अब तुम ज्यादा सजग होंगे। जितने कम सपने भीतर दौड़ेंगे, तुम उतने ही कम सोए होगे। अब तुम चीजों को ज्यादा स्पष्ट, ज्यादा सीधे सीधे देख सकोगे।

तो किसी चीज को अधूरा मत छोड़ो; यह पहली बात। और तुम जो भी कर रहे हो, उस कृत्य में पूरे के पूरे मौजूद रहो। उससे हटो मत, कहीं और मत जाओ। अगर तुम स्नान कर रहे हो तो वहीं रहो। पूरे संसार को भूल जाओ; अभी यह स्नान ही तुम्हारा पूरा जगत है। सब समाप्त हो गया है, संसार खो गया है; बस तुम हो और स्नान है। स्नान के साथ रहो। प्रत्येक कृत्य में इस समग्रता से भाग लो कि तुम न तो उसके पीछे छूट जाओ न उससे आगे ही चले जाओ। तुम कृत्य के साथ साथ रहो। तब सपने विदा हो जाएंगे। और जैसे जैसे सपने विदा होंगे, तुम सत्य में प्रवेश करने में ज्यादा समर्थ हो सकोगे।

तंत्र सूत्र 

ओशो 

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