यह सूत्र कहता है कि मोह आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो
जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता। वह कितनी ही बड़ी सिद्धियों को पा
ले उसके छूने से मुर्दा जिंदा हो जाए, उसके स्पर्श से बीमारियां खो जाएं वह
पानी को छू दे और औषधि हो जाए लेकिन उससे आत्मज्ञान का कोई भी संबंध नहीं
है।
सच तो स्थिति उलटी है कि जितना ही वह व्यक्ति सिद्धियों से भरता जाता
है, उतना ही आत्मज्ञान से दूर होता जाता है; क्योंकि जैसे जैसे अहंकार भरता
है, वैसे वैसे आत्मा खाली होती है और जैसे जैसे अहंकार खाली होता है,
वैसे वैसे आत्मा भरती है, तुम दोनों को साथ ही साथ न भर पाओगे।
दूसरे को प्रभावित करने की आकांक्षा छोड़ दो, अन्यथा योग भी भ्रष्ट हो
जाएगा। तब तुम योग भी साधोगे तो वह भी राजनीति होगी, धर्म नहीं। और राजनीति
एक जाल है। फिर येन केन प्रकारेण आदमी दूसरे को प्रभावित करना चाहता है।
फिर सीधे और गलत रास्ते से भी प्रभावित करना चाहता है। लेकिन प्रभावित तुम
करना ही इसलिए चाहते हो, क्योंकि तुम दूसरे का शोषण करना चाहते हो।
क्योंकि अहंकार न शुभ जानता है, न अशुभ; अहंकार सिर्फ अपने को भरना
जानता है। कैसे अपने को भरता है, यह बात गौण है। अहंकार की एक ही आकांक्षा
है कि मैं अपने को भरूं और परिपुष्ट हो जाऊं। और, चूंकि अहंकार एक सूनापन
है, सब उपाय करके भी भर नहीं पाता, खाली ही रह जाता है। जैसे जैसे उम्र हाथ
से खोती है, वैसे वैसे अहंकार पागल होने लगता है; क्योंकि अभी तक भर नहीं
पाया, अभी तक यात्रा अधूरी है और समय बीता जा रहा है। इसलिए ,बूढे आदमी
चिड़चिड़े हो जाते हैं। वह. चिड़चिड़ापन किसी और के लिए नहीं है; वह चिड़चिड़ापन
अपने जीवन की असफलता के लिए है। जो भरना चाहते थे, वे भर नहीं पाये। और
बूढ़े आदमी की चिड़चिड़ाहट और बनी हो जाती है; क्योंकि उसे लगता है कि
जैसे जैसे वह का हुआ है, वैसे वैसे लोगों ने ध्यान देना बंद कर दिया है;
बल्कि लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वह कब समाप्त हो जाए।
मुल्ला नसरुद्दीन सौ साल का हो गया था। मैंने उससे पूछा कि ‘क्या तुम
कुछ कारण बता सकते हो, नसरुद्दीन। परमात्मा ने तुम्हें इतनी लंबी उम्र
क्यों दी?’ तो उसने बिना कुछ झिझककर कहा, ‘संबंधियों के धैर्य की परीक्षा
के लिए।’
सभी बूढ़े संबंधियों के धैर्य की परीक्षा कर रहे हैं। वे चौबीस घंटे देख
रहे हैं कि ध्यान उनकी तरफ से हटता जा रहा है। मौत तो उन्हें बाद में
मिटायेगी, लोगों की पीठ उन्हें पहले ही मिटा देती है। उससे चिड़चिड़ापन पैदा
होता है।
उस एकरसता का अनुभव तुम्हें तभी होगा, जब तुम लोगों का ध्यान मांगना बंद
कर दोगे। भिखमंगापन बंद करो। सिद्धियों से क्या होगा? लोग तुम्हें
चमत्कारी कहेंगे। लाखों की भीड़ इकट्ठी होगी; लेकिन लाखों मूढ़ों को इकट्ठा
करके क्या सिद्ध होता है कि तुम इन लाखों मूढ़ों के ध्यान के केंद्र हो! तुम
महामूढ़ हो!
क्रमश:
शिव सूत्र
ओशो
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