पहला तो जाग्रत, स्वप्र और सुषुप्ति हमारे मन की ही दशाएं नहीं, हमारे
जीवन के भी आधारस्तंभ हैं। इन तीन पर ही हम खड़े हैं। और हम चौथे हैं। इन
तीन से हमारा भवन निर्मित होता है, लेकिन वह जो निवासी है वह चौथा है।
इसलिए भारत में उसे ‘तुरीय’ कहा है। तुरीय का अर्थ होता है चौथा, ‘दि
फोर्थ’। उसको कोई नाम नहीं दिया, सिर्फ चौथा कहा है। इन तीनों को नाम दिये
हैं। उस चौथे को कोई नाम दिया नहीं जा सकता। उसके नाम का कोई पता भी नहीं
है। और उसकी किसी से कोई तुलना नहीं हो सकती। इसलिए उसे सिर्फ चौथा कहा है।
ये तीन, रोज हम इन तीन में से गुजरते हैं। सुबह जब आप जागते हैं तो जागत
अवस्था में प्रवेश होता है। सांझ जब आप सोते हैं तो पहले स्वप्र में
प्रवेश होता है, फिर जब रूप भी खो जाते हैं तो कप्ति में प्रवेश होता है।
चौबीस घंटे में हम इन तीन अवस्थाओं में बार बार घूमते रहते हैं, प्रतिदिन।
और अगर और सूक्ष्म में देखें, तो हम प्रतिपल भी इन तीन अवस्थाओं में डूबते
रहते हैं। लगता है ऊपर से आप जगे हुए हैं, भीतर स्वप्र शुरू हो जाता है।
जिसको हम दिवास्वप्र कहते हैं। और कभी कभी ऐसा लगता है कि क्षणभर को आप इस
जगत में न रहे, होश ही खो गया। तो कप्ति पकड़ जाती है। चौबीस घंटे तो हम बड़े
पैमाने पर इन तीन ‘अवस्थाओं में गुजरते ही हैं। प्रतिपल भी हम तीन
अवस्थाओं में डोलते रहते हैं।
इन तीन अवस्थाओं में हम पूरे जीवन ही डोलते हैं और अनेक अनेक जीवन में
भी हम इन तीन अवस्थाओं में घूमते हैं। मृत्यु का क्षण सुशइप्त में घटित
होता है। मरता हुआ आदमी जाग्रत से पहले रूप में प्रवेश करता है, फिर स्वप्र
से सुषुप्ति में प्रवेश करता है। मृत्यु कप्ति में ही घटित होती है।
इसलिए पुराने लोग निद्रा को रोज आ गयी मृत्यु का, मृत्यु की थोड़ी सी झलक
मानते थे। निद्रा मृत्यु की झलक है।
जब आप सुषुप्ति में होते हैं तब आप उसी अवस्था में होते हैं जब मृत्यु
घटित होती है, या घट सकती है। छुप्ति के बिना मृत्यु घटित नहीं होती। इसलिए
सुषुप्ति में आपको सारा बोध खो जाता है। इसलिए मृत्यु की पीड़ा भी अनुभव
नहीं होती। अन्यथा मृत्यु बड़ा ‘सर्जिकल ‘ काम है। इससे बड़ा और कोई
‘सर्जिकल’ काम नहीं डाक्टर एक हड्डी निकालता होगा तो भी मार्फिया देता है।
मार्फिया देकर वह आपको जबरदस्ती सुषुप्ति में ले जाता है। तभी आपकी एक
हड्डी निकाली जा सकती है, आपरेशन किया जा सकता है, अन्यथा असंभव है। सब
आपरेशन सुषुप्ति में होते हैं। और जब तक सुषुप्ति न आ जाए तब तक आपरेशन
करना खतरनाक है। भयंकर पीड़ा होती है। शायद आपरेशन मुश्किल ही हो जाएगा
करना.....
क्रमशः
ओशो
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