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Saturday, October 10, 2015

प्रेम अतर्क्य है

गैलेलियो ने पहली दफा कहा कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है, सूरज पृथ्वी का नहीं। यह एक तर्क निष्पत्ति थी और बिलकुल सही थी। लेकिन ईसाइयत ने विरोध किया। रोम खिलाफ हो गया। सारा ईसाइयों का फैला हुआ जाल गैलेलियो की बात स्वीकार करने को राजी नहीं था। क्योंकि बाइबिल में कहा है कि सूरज पृथ्वी का चक्कर त्यग़ता है। सारी दुनिया के लोग मानते रहे हैं कि सूरज पृथ्वी का चक्कर लगाता है। दिखाई भी यही पड़ता है। सुबह ऊगता है पूरब, सांझ डूबता है पश्चिम, फिर पूरब ऊगता है, चक्कर लगाता हुआ मालूम पडता है। गैलेलियो के बाद भी सारी दुनिया की भाषाओं में शब्द तो वही हैं—सूर्योदय, सूर्यास्त। न तो सूर्य का कोई उदय होता है, न अस्त होता है; सिर्फ पृथ्वी चक्कर लगाती है। सूर्य अपनी जगह है। न ऊगता है, न डूबता है। पृथ्वी ही उसके आसपास घूमती है।

गैलेलियो ने जब पहली दफा यह बात कही, तो उसने तर्क से पूरी तरह सिद्ध कर दी। लेकिन पोप ने उसे बुलाया और कहा कि तुम क्षमा मांग लो, अन्यथा तुम्हारा जीवन… तुम्हारे जीवन को खतरा है। गैलेलियो ने घुटने टेककर क्षमा मांग ली।

यह बड़ी कठिन बात रही है और विचारशील लोग सोचते रहे हैं कि गैलेलियो जैसा प्रतिभासंपन्न आदमी क्या अपने जीवन के लिए डर गया?

लेकिन मैं सोचता हूं कि जीवन के लिए गैलेलियो नहीं डरा। वह अपना जीवन दे सकता था, लेकिन एक छोटे से तर्क के लिए कौन जीवन देने को तैयार होता है! इससे क्या फर्क पड़ता है कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है कि सूरज पृथ्वी का चक्कर लगाता है! गैलेलियो क्यों जीवन दे इस व्यर्थ की बकवास के लिए? यह गैलेलियो के लिए हार्दिक नहीं था, बुद्धिगत था। और उसने देखा कि इतनीसी बात के लिए कि पृथ्वी चक्कर लगाती है कि नहीं लगाती है, मैं क्यों जीवन दूं!

मैं मानता हूं गैलेलियो बुद्धिमान आदमी था। कोई बुद्ध होता तो शायद मरने को तैयार हो जाता। क्योंकि तर्क के लिए कोई बुद्ध ही मर सकता है। तर्क! तर्क का इतना मूल्य ही नहीं है। गणित की एक निष्पत्ति के लिए कौन अपना जीवन देने को तैयार होगा! आखिर जीवन का मूल्य बहुत ज्यादा है।

लेकिन एक छोटे से प्रेम के लिए आदमी पूरे जीवन को दे सकता है। प्रेम पूरे जीवन को घेर लेता है; पूरे अस्तित्व को पकड़ लेता है। तर्क तो केवल बुद्धि के एक कोने को पकड़ता है। आज तक बुद्धि के लिए किसी ने जीवन नहीं दिया है। और जिस चीज के लिए आप जीवन नहीं दे सकते, वस्तुत: उसका जीवन से ज्यादा मूल्य नहीं हो सकता।

मनुष्य के अनुभव में प्रेम एकमात्र अनुभव है, जिसके लिए वह जीवन दे सकता है। जो जीवन से ज्यादा मूल्यवान है। लेकिन प्रेम अतर्क्य है। लोगों ने परमात्मा के लिए जीवन दिया है। न मालूम कितने लोग शहीद हुए हैं परमात्मा के लिए, जिन्होंने जीवन को चुपचाप खो दिया है। जिन्होंने रत्तीभर भी शिकायत नहीं की कि जोवन जा रहा है। परमात्मा कुछ प्रेम जैसा मामला है।


कठोपनिषद 

ओशो 

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