बात जरा बदल जाएगी। एक सवाल छोटा-सा पूछा है। बात बदल जाएगी,
इसलिए थोड़े में करें, फिर हम ध्यान के लिए बैठेंगे। पूछा है कि
जैन-शास्त्रों में क्यों कहा है कि स्त्रियों के लिए मोक्ष नहीं है। उसका
कारण है कि जैन-शास्त्र पुरुष-चित्त के द्वारा निर्मित शास्त्र हैं।
जैन-साधना पुरुष-साधना है। जैन-साधना की पूरी प्रक्रिया “एग्रेसिव’ है,
आक्रामक है। और इसलिए जैन-शास्त्र सोच नहीं सकता कि स्त्री को कैसे मोक्ष
हो सकता है? अगर कृष्ण के भक्त से हम पूछें तो वह बहुत मुश्किल में पड़ेगा!
वह कहेगा, स्त्री के सिवाय और किसी का मोक्ष हो ही कैसे सकता है! पुरुष का
मोक्ष होगा कैसे! क्योंकि कृष्णभक्त अगर पुरुष भी हैं, तो अपने को स्त्री
बनाकर कृष्ण के प्रेम में पड़ता है। मीरा जब गई वृंदावन और वहां के मंदिर
में प्रवेश पर उस पर रोक लगाई गई, क्योंकि प्रवेश में, उस मंदिर में जो
पुजारी था वह स्त्रियों को नहीं देखता था। और जब मीरा को रोका तो मीरा ने
कहा, एक सवाल उन पुजारी से पूछ लो कि क्या कृष्ण के अलावा और कोई पुरुष भी
है? और कृष्ण के पुजारी होकर अभी तक पुरुष बने हुए हो? तो उस पुजारी ने
कहा, उसको आने दो। मेरी भूल मुझे पता चल गई, मैं गलती में था। तो कृष्ण के
आसपास तो “पैसिव’, समर्पण, “सरेंडर’, वह जो स्त्री का चित्त है वह।
महावीर के आसपास पुरुष-चित्त की गति है। महावीर स्वयं पुरुष-चित्त के
साधक हैं। उनकी सारी साधना पुरुष-चित्त की साधना है, इसलिए महावीर सोच भी
नहीं सकते, मान भी नहीं सकते कि स्त्री मोक्ष जा सकती है। तो महावीर की
परंपरा में स्त्री को थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़े, उसे एक पर्याय और लेनी पड़े,
एक बार पुरुष होना पड़े, फिर ही वह जा सकती है। और मैं मानता हूं कि इसमें
गलती नहीं है। अगर महावीर की ही साधना करनी हो तो दुनिया में कोई स्त्री
नहीं कर सकती। स्त्रैण-चित्त ही महावीर की साधना नहीं कर सकता। सिर्फ
पुरुष-चित्त ही कर सकता है। और अगर पुरुष चित्त की साधना करनी हो, तो कृष्ण
के साथ बहुत कठिनाई है। हो नहीं सकती। पुरुष-चित्त का कृष्ण से तालमेल
नहीं बैठेगा।
ये हमारे जो दो चित्त हैं, इन दो चित्तों पर सब कुछ निर्भर करता है।
कृष्ण स्मृति
ओशो
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