ध्यान में तुम्हें कभी कभी एक तरह की शून्यता का अनुभव होता है; वह
वास्तविक शून्यता नहीं है। मैं उसे एक तरह की रिक्तता कहता हूं। ध्यान में
कुछ क्षणों के लिए तुम्हें ऐसा अनुभव होगा जैसे कि विचार की प्रक्रिया ठहर
गई है। शुरू शुरू में ऐसे अंतराल आएंगे। लेकिन क्योंकि तुम्हें ऐसा अनुभव
होता है जैसे कि विचार की प्रक्रिया ठहर गई है, इसलिए यह भी एक विचार ही
है बहुत सूक्ष्म विचार। तुम क्या कर रहे हो? तुम भीतर भीतर कह रहे हो.
‘विचार की प्रक्रिया ठहर गई है।’ लेकिन यह क्या है? यह एक सूक्ष्म
विचार प्रक्रिया है, जो अब आरंभ हुई है। और तुम कहते हो, यह शून्यता है।
तुम कहते हो, अब कुछ घटित होने वाला है। यह क्या है? फिर एक नई
विचार प्रक्रिया आरंभ हो गई।
जब ऐसा फिर हो तो उसके शिकार मत बनना। जब तुम्हें लगे कि कोई मौन उतर
रहा है, तो उसे शब्द देना मत शुरू कर देना। शब्द देकर तुम उसे नष्ट कर देते
हो। प्रतीक्षा करो; किसी चीज की प्रतीक्षा नहीं, सिर्फ प्रतीक्षा करो। कुछ
करो मत। यह भी मत कहो कि यह शून्यता है। जैसे ही तुम यह कहते हो, तुम उसे
नष्ट कर देते हो। उसे देखो, उसमें प्रवेश करो, उसका साक्षात करो। लेकिन
प्रतीक्षा करो, उसे शब्द मत दो। जल्दी क्या?
शब्द देकर मन फिर दूसरे रास्ते से प्रवेश कर गया; उसने तुम्हें धोखा दे
दिया। मन की इस चालबाजी के प्रति सजग रहो। शुरू शुरू में ऐसा होना अनिवार्य
है। तो जब फिर ऐसा हो तो रूको, प्रतीक्षा करो। उसके जाल में मत फंसो। कुछ
कहो मत; चुप रहो। तब तुम गहरे प्रवेश करोगे, और तब वह खोंएगी नहीं। क्योंकि
तुम एक बार सच्ची शून्यता को जान लो तो फिर वह खोती नहीं है। सच्ची
शून्यता कभी नहीं खोती है, यही उसकी गुणवत्ता है।
और एक बार तुमने अपने आंतरिक खजाने को जान लिया, एक बार तुम अपने अंतरतम
केंद्र के संपर्क में आ गए, तो फिर तुम अपने काम धाम में लगे रह सकते हो,
तुम जो चाहो कर सकते हो, तुम सामान्य सांसारिक जिंदगी जी सकते हो और यह
शून्य तुम्हारे साथ रहेगा। तुम इसे भूल नहीं सकते; भीतर वह शून्य बना
रहेगा। इसका संगीत सतत सुनाई देगा। तुम जो भी करोगे, करना सतह पर रहेगा,
भीतर तुम शून्य के शून्य रहोगे।
और अगर तुम भीतर शून्य रह सके, करना सिर्फ सतह पर चलता रहा, तो तुम जो
भी करोगे वह दिव्य हो जाएगा, तुम जो भी करोगे उसमें भगवत्ता का स्पर्श
होगा। क्योंकि अब कृत्य तुमसे नहीं आ रहा है, अब कृत्य मूलभूत शून्यता से आ
रहा है। तब अगर तुम बोलोगे तो वे शब्द तुम्हारे नहीं होंगे।
यही मतलब है मोहम्मद का जब वे कहते हैं कि ‘कुरान मैंने नहीं कहां,यह
मुझ पर ऐसे उतरा है जैसे किसी और ने मेरे द्वारा कहा हो।’ यह आंतरिक शून्य
से आया है। यही अर्थ है हिंदुओं का जब वे कहते हैं कि ‘वेद मनुष्य के
द्वारा नहीं लिखे गए हैं; वे अपौरुषेय हैं, स्वयं भगवान ने उन्हें कहा है।’
वह जो अति रहस्यपूर्ण है, उसको प्रतीकों में कहने के ये उपाय हैं। और
यही रहस्य है जब तुम आत्यंतिक रूप से शून्य हो तो तुम जो भी कहते हो या
करते हो वह तुमसे नहीं आता है क्योंकि तुम तो बचे ही नहीं। वह शून्यता से
आता है; वह अस्तित्व के गहनतम स्रोत से आता है। वह उसी स्रोत से आता है
जिससे यह सारा अस्तित्व आया है। तब तुम गर्भ में प्रवेश कर गए सीधे
अस्तित्व के गर्भ में। तब तुम्हारे शब्द तुम्हारे नहीं हैं, तब तुम्हारे
कृत्य तुम्हारे नहीं हैं। अब मानो तुम एक उपकरण भर हो समस्त के हाथों में
अगर क्षण भर के लिए शून्यता अनुभव में आए और बिजली की कौंध की तरह चली
जाए तो वह शून्यता सच्ची नहीं है। और अगर तुम उस पर विचार करने लगोगे तो वह
क्षणिक शून्यता भी खो जाएगी। उस क्षण में विचार न करना बड़े साहस का काम
है। मेरे देखे, यह सबसे बड़ा संयम है। जब मन शांत हो जाता है और तुम शून्य
में गिर रहे होते हो तो उस क्षण में नहीं सोचने के लिए सर्वाधिक साहस की
जरूरत है। क्योंकि उस क्षण मन का सारा अतीत बल मारेगा, उसका समस्त यंत्र
कहेगा कि अब सोच विचार करो। सूक्ष्म ढंगों से, परोक्ष ढंगों से तुम्हारी
अतीत की स्मृतियां तुम्हें सोचने को बाध्य करेंगी। और अगर तुमने सोच विचार
शुरू कर दिया तो तुम वापस आ गए।
अगर उस क्षण में तुम शांत रह सको, अगर तुम अपने मन और स्मृतियों के जाल
में न पड़ो यही असली शैतान है जो तुम्हें फुसलाता है। तुम्हारा अपना ही मन
तुम्हें फुसलाता है। जैसे ही तुम शून्य होने लगते हो, मन कुछ तरकीब करता है
कि तुम सोच विचार में पड़ जाओ। अगर तुम सोच विचार में पड़ गए तो तुम वापस आ
गए।
तंत्र सूत्र
ओशो
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