बुद्ध से हजारों हजारों प्रश्न पूछे गये। एक दिन किसी ने उनसे कहा, ‘हम
आपके पास नये प्रश्न लेकर आते हैं। हमने आपके सामने प्रश्न रखा भी नहीं
होता और आप उनका उत्तर देने लगते हैं। आप कभी इसके बारे में सोचते नहीं।
ऐसा कैसे हो जाता है?’
बुद्ध ने कहा, ‘यह सोचने का प्रश्न नहीं है। तुम प्रश्न पूछते हो और मैं
केवल उसे देखता हूं। जो कुछ सत्य है, उद्घाटित हो जाता है। इसके बारे में
सोचने का, विचारमग्न होने का प्रश्न नहीं है। वह उत्तर संगत निष्कर्ष की
तरह नहीं आता है। यह केवल सही केंद्र पर ऊर्जा को फोकस करने का परिणाम है।’
बुद्ध किरणपुंज (टॉर्च) की तरह हैं। जिस किसी दिशा में टॉर्च घूमती है,
वहां जो है उसे उद्घाटित कर देती है। प्रश्न क्या है, यह बात नहीं है।
बुद्ध के पास प्रकाश है और जब कभी किसी प्रश्न पर प्रकाश आ पहुंचेगा, उत्तर
प्रकट हो जायेगा। उस प्रकाश के कारण उत्तर आयेगा। यह एक स्वाभाविक घटना
है, यह एक सहज बोध है।
जब कोई तुमसे कुछ पूछता है, तब तुम्हें उसके बारे में सोचना पड़ता है।
लेकिन तुम कैसे सोच सकते हो, यदि तुम जानते नहीं? और यदि तुम जानते हो, तो
सोचने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि तुम नहीं जानते हो, तो तुम करोगे क्या?
तुम अपनी स्मृति में खोजोगे, तुम्हें बहुत से सुराग मिल जायेंगे। तुम कुछ
जोड़जाड़ करोगे। लेकिन वास्तव में तुम जानते नहीं हो। अन्यथा तुम्हारा
उत्तर तुरंत आता।
मैने सुना है एक शिक्षक के बारे में, प्राइमरी स्कूल की एक महिला शिक्षक
के बारे में, उसने बच्चों से पूछा, ‘क्या तुम्हारे पास कोई प्रश्न है? एक
छोटा लड़का उठ खड़ा हुआ और कहने लगा, ‘मेरा एक प्रश्न है और मैं इसे पूछने की
प्रतीक्षा कर रहा था कि कब आप प्रश्न पूछने के लिए कहेंगी: पृथ्वी का वजन
कितना है?’
शिक्षिका तो घबड़ा गयी क्योंकि उसने कभी इस बारे में सोचा न था; उसने कभी
इस बारे में पढ़ा न था। सारी पृथ्वी का वजन कितना है? उसने एक चालाकी चली,
जिसे शिक्षक जानते हैं। उन्हें चालाकियां चलनी पड़ती है। उसने कहां, ‘हां
प्रश्न महत्वपूर्ण है। कल के लिए हर एक को इसका उत्तर खोजना है।’ उसे समय
चाहिए था। वह बोली, ‘कल मै यह प्रश्न पूछूंगी। जो कोई सही उत्तर लायेगा उसे
उपहार मिलेगा।’
सारे बच्चे खोजते रहे, खोजते रहे लेकिन उन्हें उत्तर नहीं मिला।
शिक्षिका लाइब्रेरी में दौड़ी गयी। सारी रात वह खोजती रही और सुबह हो गयी तब
कहीं वह पृथ्वी का वजन पता लगा सकी। वह बहुत खुश थी। वह स्कूल आ पहुंची और
बच्चे थे वहां। वे थक चुके थे। उन्होंने कहा, ‘हम नहीं पता लगा सके। हमने
मम्मी से पूछा और हमने डैडी से पूछा। और हमने सबसे पूछा। कोई नहीं जानता।
यह प्रश्न बहुत कठिन लगता है।’
शिक्षिका हंस पड़ी और बोली, ‘यह कठिन नहीं है। मैं उत्तर जानती थी, लेकिन
मै तो यह देखना चाह रही थी कि तुम पता लगा सकते हो या नहीं। पृथ्वी का वजन
है….।’ वह छोटा बच्चा जिसने प्रश्न उठाया था, फिर खड़ा हो गया और पूछने
लगा, ‘लोगों को मिला कर या बिना लोगों के? ‘
तुम बुद्ध को ऐसी स्थिति में नहीं डाल सकते। कहीं उत्तर खोज लेने की बात
नहीं है। बात वस्तुत: तुम्हें उत्तर देने की भी नहीं है। तुम्हारा प्रश्न
तो उनके लिए केवल एक बहाना है। तुम जब उनके सामने प्रश्न रखते हो, तो वे
सीधे अपना प्रकाश प्रश्न की ओर मोड़ देते है और जो कुछ प्रकट होता है,
उन्हें दिख जाता है। वे तुम्हें उत्तर देते है। वह उनके सही केंद्र से दिया
जाने वाला उत्तर है प्रमाण।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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