शिष्य प्राय: अपने गुरुओं के
विरोध में चले जाते हैं। क्योंकि शिष्य अहंकार की यात्रा पर होते हैं और
गुरु उन्हें उससे निकालने की चेष्टा कर रहा होता है। और ऐसे शिष्य ही झूठे
गुरुओं को पैदा करते हैं। शिष्यों की कोई कामना है, बड़ी कामना है, और जो भी
उनकी कामना की पूर्ति करेगा, वह उनका गुरु हो जाएगा। और तुम्हारे अहंकार
को सहयोग देना आसान है, क्योंकि तुम उसी की खोज में हो, तुम वही चाहते हो।
तुम्हारे अहंकार को मिटाने में सहयोग देना बड़ा कठिन काम है।
तो यह भलीभांति स्मरण रहे : प्रतिदिन, प्रतिपल जांचते रहो कि तुम्हारी
खोज अहंकार की यात्रा तो नहीं है। सतत जांचते रहो। यह बहुत सूक्ष्म है। और
अहंकार के ढंग बहुत ही सूक्ष्म हैं। वे ऊपर से दिखते भी नहीं हैं। अहंकार
तुम्हें भीतर से चलाता रहता है; वह तुम्हें कहीं गहरे अचेतन से नचाता रहता
है।
लेकिन अगर तुम सावधान हो तो अहंकार तुम्हें धोखा नहीं दे सकता। अगर तुम
सावचेत हो तो तुम उसकी भाषा समझ लोगे, तुम उसका रंग ढंग जान लोगे। क्योंकि
अहंकार सदा अनुभव की खोज करता है। अनुभव अहंकार का मूलमंत्र है। अहंकार सदा
अनुभव की खोज में है; वह अनुभव कामवासना का है या आध्यात्मिक, इससे कोई
फर्क नहीं पड़ता है। अहंकार अनुभव चाहता है, हर चीज का अनुभव चाहता है,
कुंडलिनी का अनुभव चाहता है, सातवें शरीर का अनुभव चाहता है। अहंकार निरंतर
अनुभवों के पीछे पागल है।
सच्ची खोज किसी अनुभव का लोभ नहीं है। क्योंकि प्रत्येक अनुभव तुम्हें
निराश करेगा; करेगा ही। क्योंकि प्रत्येक अनुभव पुनरुक्त होगा, और तुम उससे
ऊब जाओगे। फिर तुम किसी नए अनुभव की मांग करोगे।
अहंकार हमेशा नए अनुभवों की खोज में लगा रहता है। समझो कि तुम ध्यान
करते हो। और अगर तुम इसीलिए ध्यान करते हो कि उससे तुम्हें नई पुलक मिले,
नया रोमांचक अनुभव मिले, क्योंकि तुम्हारा जीवन ऊब से भर गया है, तुम अपने
सामान्य दिनचर्या के जीवन से थक गए हो और तुम्हें कोई नया अनुभव चाहिए तो
वह तुम्हें मिल सकता है। मनुष्य जिस चीज की खोज करता है वह उसे मिल जाती
है। यही तो संताप है कि तुम जो चाहते हो वह तुम्हें मिल जाएगा। और तब तुम
पछताओगे। तुम्हें उत्तेजना तो मिल जाएगी, लेकिन फिर क्या? फिर तुम उससे भी
थक जाओगे। फिर तुम एल एस डी या कुछ और चीज लेना चाहोगे। फिर तुम उत्तेजना
की इस खोज में इस गुरु से उस गुरु के पास जाओगे, इस आश्रम से उस आश्रम का
चक्कर लगाआगे।
तंत्र सूत्र
ओशो
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