दूरी पैदा करो.. साक्षीभाव सीखो। बस बैठकर घंटे भर रोज देखो। सिर्फ देखो।
दर्शन मात्र। नहीं बदलना कुछ अभी। जल्दी मत करना, कि यह प्रश्न बदला जाए,
कि इसका उत्तर चाहिए, कि यह समस्या हटाई जाए, समाधान लाया जाए, कि यह
बीमारी तो ठीक नहीं, स्वस्थ होना चाहिए, उपचार कहां है, औषधि कहां है? नहीं
इस सबमें मत पड़ना। जो है, बुरा भला जैसा है, बिना किसी निर्णय के और बिना
किसी पक्षपात के, बिना शुभ अशुभ की धारणा को लाए सिर्फ साक्षी बनकर देखो।
और तुम चकित हो जाओगे, चमत्कृत हो जाओगे। जैसे जैसे तुम्हारी देखने की
क्षमता प्रगाढ़ होगी, वैसे ही वैसे दृश्य विलीन होने लगेंगे। इधर द्रष्टा
जगेगा, उधर दृश्य क्षीण होने लगेंगे। क्योंकि वही ऊर्जा जो दृश्य बनती है,
वही ऊर्जा द्रष्टा बन जाती है। जिस दिन तुम्हारा द्रष्टा पूरा का पूरा खड़ा
हो जाएगा, उस दिन तुम पाओगे: न बचे कोई प्रश्न, न कोई समस्याएं, न कोई
कमजोरियां, न कोई सीमाएं। अनायास तुम मुक्त हो गए हो। आ गई अपूर्व घड़ी। आ
गया वह अदभुत क्षण, जहां व्यक्ति मिट जाता है और परमात्मा शुरू होता है।
जहां सीमा का अतिक्रमण होता है, जहां बुद्धत्व का जन्म होता है।
समस्या है तो समाधान भी है। और बीमारी है तो औषधि भी है, लेकिन बाहर
नहीं है बीमारी, बाहर औषधि भी नहीं है। बीमारी भीतर है, भीतर ही औषधि है।
जिसने बीमारी दी है, उसने औषधि का इंतजाम पहले से ही कर दिया है।
तुमने कहावत सुनी न, जो चोंच देता है, वह चून पहले ही व्यवस्थित कर देता
है। भूख देता है, भोजन पहले बना देता है। बच्चा पैदा भी नहीं होता और मां
के स्तन में दूध आना शुरू हो जाता है। बच्चा पैदा हुआ कि मां का स्तन दूध
से भर गया। तुम क्या सोच रहे हो बच्चा कुछ इंतजाम कर रहा है? इंतजाम हो रहा
है! प्रकृति एक अदभुत लयबद्ध व्यवस्था है।
सपना यह संसार
ओशो
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