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Sunday, November 29, 2015

निर्गुण निष्क्रियं सूक्ष्‍मं निर्विकल्प निरंजनम्

आप भी मानते हैं कि आत्मा अमर है, यद्यपि आप जानते हैं कि मैं शरीर से ज्यादा कुछ भी नहीं हूं। किस आत्मा की बात कर रहे हैं जो अमर है, जिसका आपको कोई अनुभव नहीं है! जिसकी किंचित मात्र प्रतीति नहीं हुई, वह अमर है, आप कह रहे हैं! आपका भय आपका सिद्धात बन जाता है। जितने भयभीत लोग होते हैं, जल्दी आत्मवादी हो जाते हैं।

इसलिए हमारे मुल्क में दिखाई पड़ती है यह घटना, कि पूरा मुल्क आत्मवादी है और अंधेरे में जाने से डर लगता है, और आत्मा का पक्का भरोसा है! मौत से प्राण कंपते हैं, आत्मा का पक्का भरोसा है! आत्मवादियो का मुल्क एक हजार साल तक गुलाम रहा! आत्मवादियों के मुल्क पर कोई भी छोटी मोटी कौम हावी हो गई! और आत्मवादी आत्मा को मानते रहे कि आत्मा अमर है, लेकिन युद्ध के मैदान पर जाने में डरते रहे!

भय आपके सिद्धात का आधार है अनुभव नहीं, ज्ञान नहीं। नहीं तो आत्मवादी को तो कोई गुलाम बना ही नहीं सकता। उसको तो कोई भय ही नहीं है। आखिर गुलामी बनती ही भय के कारण है कि मार डालेंगे अगर नहीं गुलाम बनोगे तो। तो आदमी इस कीमत पर, जिंदा रहने की कीमत पर, गुलाम रहना भी पसंद कर लेता है, मरना नहीं चाहता है।

अगर यह मुल्क सच में आत्मवादी होता, जैसा कि लोग कहते फिरते हैं, तो यह मुल्क कभी गुलाम नहीं हो सकता था। यह पूरा मुल्क कट जाता, और कहता कि न शस्त्रों से हमें छेदा जा सकता है नैनम् छिन्दति शस्त्राणि न आग से हमें जलाया जा सकता है। तो जलाओ और छेदो! इस मुल्क को गुलाम बनाना असंभव था, अगर यह आत्मवादी होता। लेकिन यह आत्मवादी वगैरह नहीं है, परिपूर्ण देहवादी है। लेकिन भय के कारण आत्मा को माने चला जाता है।

आपकी प्रतीति तो देह की है कि मैं देह हूं और ज्ञानी  की प्रतीति है कि देह है ही नहीं। तो कहां बने मिलन, जहां आप एक दूसरे की भाषा समझ सकें? तो श्रुति ने एक उपाय खोजा है, शास्त्र ने एक विधि खोजी है, वह यह, कि आपको बिलकुल इनकार करना उचित नहीं होगा कि देह है ही नहीं। वह इनकार तो आपका दरवाजा बंद कर देगा, फिर तो आपकी समझ मुश्किल हो जाएगी। तो आपके लिए कहते हैं कि देह है। इससे अज्ञानी आश्वस्त हो जाता है कि हम बिलकुल गलत नहीं हैं, देह है, हमारी मान्यता भी ठीक है। इससे यस मूड पैदा होता है। इससे ही का भाव पैदा होता है।


अध्यात्म उपनिषद 

ओशो 

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