पुरुष मन हमेशा चीजों को तोड़ मरोड़कर देखता है।
कार्ल जंग ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि एक बार वह फ्रायड के साथ बैठा हुआ
था और एक दिन अचानक उसके पेट में बहुत जोर का दर्द उठा। और उसे लगा कि कुछ न
कुछ होकर रहेगा और तभी अचानक निकट की अलमारी में से विस्फोट की आवाज आई।
दोनों चौकन्ने हो गए। क्या हुआ? जंग ने कहा, इसका जरूर कुछ न कुछ संबंध
मेरी ऊर्जा से है। फ्रायड हंसा और का की हंसी उड़ाता हुआ बोला, ‘कैसी नासमझी
की बात है, इसका तुम्हारी ऊर्जा से कह संबंध हो सकता है?’ का बोला, थोड़ी
प्रतीक्षा करो, अभी एक मिनट में ही फिर पहले जैसे विस्फोट की आवाज आएगी।
क्योंकि उसे फिर से लगा कि उसके पेट में तनाव हो रहा है। और एक मिनट के
बाद ठीक एक मिनट के बाद एक और विस्फोट हुआ।
अब यह है स्त्री मन। और जंग ने अपने संस्मरणों में लिखा है, ‘उस दिन के
बाद फिर कभी फ्रायड ने मुझ पर भरोसा नहीं किया।’ यह बात खतरनाक है, क्योंकि
इस बात का तर्क से कोई संबंध नहीं है। और जंग ने एक नए सिद्धांत के विषय
में सोचना शुरू कर दिया, जिसे वह सिन्क्रानिसिटि, समक्रमिकता का सिद्धांत
कहता है।
जो सिद्धांत सभी वैज्ञानिक प्रयासों का मूल आधार है वह है काजेलिटी कारण सभी कुछ कार्य और कारण से जुड़ा हुआ है। जो कुछ भी घटता है, उसका कोई न
कोई कारण होता है। और अगर कारण हो, तो परिणाम उसके पीछे पीछे चला आएगा।
जैसे अगर हम पानी को गरम करते हैं तो वह वाष्पीभूत हो जाता है। पानी गरम
करना एक कारण है अगर पानी को सौ डिग्री तक गरम किया जाए तो वह वाष्पीभूत हो
जाएगा। पानी का वाष्पीभूत हो जाना परिणाम है। यह एक वैज्ञानिक आधार है। का
कहता है एक और सिद्धांत है, वह है सिन्क्रानिसिटी, समक्रमिकता का
सिद्धांत। इसकी व्याख्या करना कठिन है, क्योंकि सभी व्याख्याएं वैज्ञानिक
मन से आती हैं। लेकिन हा जो कह रहा है, उसको अनुभव करने का प्रयास किया जा
सकता है।
जंग कहता है कि कार्य कारण के साथ ही एक और सिद्धांत अस्तित्व रखता है।
अगर कहीं कोई सृष्टि को बनाने वाला है, तो उसने सृष्टि की रचना इस ढंग से
की है कि इस सृष्टि में ऐसा बहुत कुछ घटित होता है जिसका कार्य और कारण से
कोई संबंध नहीं है।
तुमने किसी स्त्री को देखा और अचानक तुम्हारे हृदय में प्रेम उठ आता है।
अब इस बात का कार्य और कारण से, या सिन्क्रानिसिटी से इसका कोई संबंध है?
का ज्यादा ठीक प्रतीत होता है और सत्य के ज्यादा करीब लगता है। स्त्री
पुरुष में प्रेम को उत्पन्न करने का कारण नहीं हो सकती, न ही पुरुष स्त्री
में प्रेम के उत्पन्न करने का कारण हो सकता है। लेकिन पुरुष और स्त्री,
सूर्य ऊर्जा और चंद्र ऊर्जा का निर्माण इस ढंग से हुआ है कि उनके आपस में
निकट आने से प्रेम का फूल खिल उठता है। यही है सिन्क्रानिसिटी, समक्रमिकता।
लेकिन फ्रायड इससे भयभीत हो गया। फिर फ्रायड व जंग कभी आपस में एक दूसरे
के निकट नहीं आ सके। फ्रायड ने जंग को अपना उत्तराधिकारी चुना था, लेकिन उस
दिन उसने अपनी वसीयत को बदल दिया। फिर वे दोनों ए क दूसरे से अलग हो गए,
एक दूसरे से दूर और दूर होते चले गए।
स्त्री
और पुरुष को समझना सूर्य और चांद को समझने जैसा ही है। जब सूर्य प्रकट होता
तो चांद छिप जाता है, जब सूर्य अस्त होता है तो चांद प्रकट होता है, उनका
आपस में कभी मिलन नहीं होता है। वे कभी एक दूसरे के आमने सामने नहीं आते।
जब व्यक्ति की आंतरिक प्रज्ञा क्रियाशील होती है तो उसकी बुद्धि, तर्क
शक्ति विलीन होने लगती है। स्त्रियों में पुरुष से अधिक अंतर्बोध होता है।
उनके पास तर्क नहीं होता है, लेकिन फिर भी उनके पास कुछ अंतर्बोध,
अंतर्प्रज्ञा होती है। और उन्हें जो अंतर्बोध होता है वह अधिकांशत: सच ही
होता है।
बहुत से पुरुष मेरे पास आकर कहते हैं कि अजीब बात है। अगर हम किसी दूसरी
स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हैं और अपनी पत्नी को नहीं बताते, तो भी किसी
न किसी तरह उसे मालूम हो ही जाता है। लेकिन हमें कभी मालूम नहीं होता कि
पत्नी किसी अन्य पुरुष के प्रेम में पड़ी है या नहीं?
ठीक कुछ ऐसी ही स्थिति शीला और चिन्मय की है। चिन्मय किसी के प्रेम में
है और वे दोनों मेरे पास आए। चिन्मय आकर कहने लगा, ‘यह बहुत ही अजीब बात
है। जब भी मैं किसी के प्रेम में होता हूं तो तुरंत शीला चली आती है जहां कहीं भी वह होती है, वह तुरंत कमरे’ में चली आती है। ऐसे तो वह कभी
नहीं आती। वह आफिस में काम कर रही होती है या कहीं और व्यस्त होती है।
लेकिन जब भी मुझे कोई स्त्री अच्छी लगती है और मैं उसे अपने कमरे में ले
जाता हूं चाहे सिर्फ बातचीत करने के लिए ही, तो शीला चली आती है। और ऐसा
कई बार हुआ है।’ और मैंने पूछा ‘क्या कभी इससे विपरीत भी हुआ है?’ उसने
कहा, ‘कभी नहीं।’
स्त्री अपनी अनुभूतियों से जीती है। वह तर्क से नहीं चलती, वह तर्क से
नहीं जीती। वह तो अनुभव से जीती है और वह अनुभव उसकी इतनी गहराई से आता है
कि वह उसके लिए करीब करीब सत्य ही हो जाता है। इसीलिए तो कोई पति तर्क में
किसी स्त्री को नहीं हरा सकता। वे तुम्हारे तर्क सुनती ही नहीं हैं। वे
अपनी बात पर ही अड़ी रहती हैं कि ऐसा ही है, ऐसा ही ठीक है। और तुम भी जानते
हो कि ऐसा ही है, लेकिन फिर तुम अपना बचाव किए चले जाते हो। जितना तुम
बचाव करते हो, उतना ही वे समझ लेती हैं कि ऐसा ही है।
पतंजलि योग सूत्र
ओशो
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