मुल्ला नसरुद्दीन अपने मित्र के साथ सिनेमा देखने गया हुआ था। सिनेमा
में सभी बोर हो रहे थे। पिक्चर जो थी, वह उनकी समझ के बाहर थी। मुल्ला
नसरुद्दीन से कुछ ही आगे एक गंजा व्यक्ति बैठा हुआ था। मुल्ला के मित्र ने
मुल्ला से कहा, मुल्ला, पिक्चर तो बोर कर रही है; कुछ करो कि मनोरंजन हो।
यदि तुम उस गंजे व्यक्ति के सिर पर एक चपत रसीद कर दो तो मैं तुम्हें दस
रुपए दूंगा। लेकिन एक शर्त है कि वह व्यक्ति नाराज न हो, क्रोधित न हो।
मुल्ला बोला, अरे, यह कौन सी बात है, अभी लो! फिल्म का इंटरवल हुआ, मुल्ला
उठा और पीछे से जाकर उसने गंजे आदमी की चांद पर एक चपत रसीद की और बोला:
अरे चंदूलाल, तुम यहां बैठे हो! हम तुम्हें देखने तुम्हारे घर गए थे। वह
व्यक्ति बोला: माफ कीजिए, भाई साहब, मैं चंदूलाल नहीं। आपको शायद गलतफहमी
हुई है, मेरा नाम नटवरलाल है। मुल्ला ने कहा, ओह, क्षमा करिए, भाई साहब,
मुझे धोखा हो गया। और उसके बाद मुल्ला गर्व से छाती फुलाए मित्र के पास आया
और बोला कि चलो, निकालो दस रुपए!
मित्र ने दस रुपए दिए और बोला, मुल्ला, अब की बार बीस रुपए दूंगा यदि
तुम इस गंजे आदमी की चांद पर एक चपत और लगा दो। मुल्ला बोला, अभी लो, यह
कौनसा बड़ा काम है! मुल्ला गया और जाकर फिर उसकी चांद पर एक चपत रसीद की और
बोला: अबे साले, चंदूलाल, मुझे ही बेवकूफ बना रहे हो! मैं तुम्हें अच्छी
तरह से जानता हूं। तेरी यह नाटक करने की आदत जाएगी या नहीं? वह व्यक्ति फिर
बोला, भाई साहब, माफ करिए, मैं चंदूलाल नहीं, नटवरलाल हूं। मैं किसी
चंदूलाल को जानता भी नहीं! मुल्ला ने पुनः उससे क्षमा मांगी और वापस आकर
मित्र से बीस रुपए वसूल किए।
मित्र ने बीस रुपए देते हुए कहा, मुल्ला, यदि एक चपत तुम और लगा सको उस
गंजे को तो ये पचास रुपए तुम्हारे! मगर शर्त वही है कि वह न नाराज हो और न
क्रोधित ही हो। मुल्ला ने कहा, चिंता मत करो, होने दो पिक्चर समाप्त, चलो
बाहर, अभी लगाए देता हूं एक चपत और।
पिक्चर समाप्त हुई, सब बाहर आए, मुल्ला ने जाकर और भी जोर से उस व्यक्ति
की गंजी खोपड़ी पर एक चपत रसीद की और बोला, अबे साले चंदूलाल के बच्चे, तुम
साले यहां हो और तुम्हारे धोखे में भीतर हाल में मैंने बेचारे नटवरलाल को
दो चपतें रसीद कर दीं! उस व्यक्ति ने रुआंसे स्वर में, बिलकुल मरी हुई आवाज
में उत्तर दिया, भाई साहब, आप क्यों मेरे पीछे पड़े हुए हैं; मैं चंदूलाल
नहीं, नटवरलाल हूं।
बुद्धि बहुत चालाक है। रास्ते खोज सकती है। ऐसे रास्ते, जिनकी तुम
कल्पना भी न कर सको। और बुद्धि ने बहुत रास्ते खोजे हैं। बुद्धि ने आदमी को
बहुत भटकाया है। बुद्धि हर जगह से रास्ता निकाल लेती है, तरकीब निकाल लेती
है। मैं पाखंड विरोधी हूं, तुम्हारी बुद्धि ने उसमें से रास्ता निकाल
लिया, मुझसे ही बचने का। तुम्हारी बुद्धि ने उसमें से रास्ता निकाल लिया
अपने अहंकार को बचाने का, तुम्हारी बुद्धि ने उसमें से रास्ता निकाल लिया
दूसरों की निंदा करने का। मैंने जो कहा, वह तो तुम समझे ही नहीं, तुमने जो
समझना था वह समझ लिया। और शायद तुम सोचते होओगे कि तुम मेरे असली संन्यासी!
क्योंकि मेरी बात का कैसा अनुसरण कर रहे हो! जरा भी पाखंड नहीं! और पाखंड
शब्द का भी अर्थ तुमने बदल लिया।
पाखंड का अर्थ होता है: द्वंद्व, भीतर द्वैत। बाहर कुछ, भीतर कुछ। लेकिन
बाहर—भीतर अगर जुगलबंदी है, फिर कैसा पाखंड! फिर तो कोई कारण नहीं पाखंड
का।
जरा सावधान रहना अपनी बुद्धिमानी से। इस दुनिया में सबसे ज्यादा सावधान
होने की जरूरत है अपनी बुद्धिमानी से। क्योंकि सबसे बड़े धोखे वहीं पैदा
होते हैं। सबसे बड़ी चालबाजियां वहीं पैदा होती हैं।
एक एकांत प्रिय साधु अपनी पत्नी के साथ जंगल में एक छोटासा झोपड़ा बनाकर
सुख से रहा करते थे। लेकिन अक्सर ऐसा होता था कि जंगल में आने जाने वाले
लोग कभी रास्ता भटक जाते या लौटते में उन्हें शाम हो जाती तो वे साधु की
झोपड़ी देखकर वहां शरण मांगते। साधु इससे बहुत परेशान था। एक दिन शाम का समय
था, साधु अपनी पत्नी के साथ शाम का मजा ले रहा था, तभी उसने देखा कि
मुल्ला नसरुद्दीन चला आ रहा है। वह पुराना परिचित है, यदि शरण मांगेगा तो
मना किया भी नहीं जा सकता था। अतः साधु की पत्नी ने एक उपाय सुझाया कि हम
दोनों कमरे में बंद हो जाएं और ऐसा अभिनय करें कि जैसे बहुत झगड़ा चल रहा
है। संभवतः मुल्ला यह देखकर कि ये लोग झगड़ रहे हैं, अब इनसे क्या शरण
मांगना, ऐसा सोचकर स्वयं ही चला जाएगा।
उन लोगों ने ऐसा ही किया। कमरे के दरवाजे बंद कर साधु ने गाली बकना शुरू
कर दिया और एक डंडे से तकिया पीटना शुरू कर दिया। वे अभिनय में तो कुशल थे
ही बड़े पुराने साधु थे! पत्नी ने जोर जोर से रोना और बचाओ, बचाओ, मत मारो,
ऐसा चिल्लाना शुरू कर दिया। ऐसा वे लोग करीब आधा घंटा तक करते रहे। जब
नसरुद्दीन के चले जाने का उन्हें भरोसा हो गया, तब वे निकल कर बाहर आए और
आंगन में पड़ी खाट पर बैठ गए, साधु ने हंसते हुए कहा, साला, भाग गा! देखा
मैंने कैसा मारा? पत्नी ने भी मुस्करा कर कहा, और देखा, मैं भी कैसी रोई!
तभी खाट के नीचे से सिर निकलकर मुल्ला नसरुद्दीन बोला, और देखा, मैं भी
कैसा भागा!
तुम जरा सावधान रहना। तुम जरा होशियार रहना। इस दुनिया में और कोई बड़ा
लुटेरा नहीं है जो तुम्हें लूट ले, इस दुनिया में और कोई बड़ा जालसाज नहीं
है जो तुम्हें धोखा दे दे, तुम्हारी बुद्धि सबसे बड़ी जालसाज है। और इस
कुशलता से देती है धोखे और ऐसी सादगी से देती है धोखे कि स्मरण भी नहीं आता
कि धोखा हो रहा है।
प्रेम कभी पाखंड नहीं है। तर्क सदा पाखंड है। प्रेम कभी भी अंधा नहीं
है। तर्क सदा अंधा है। प्रेम कभी भी पागल नहीं है। तर्क विक्षिप्तता की ही
एक प्रक्रिया है।
सपना यह संसार
ओशो
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