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Thursday, November 5, 2015

जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति ९

इससे उलटा प्रयोग भारत में किया था और हम पच्चीस वर्ष तक बच्चों को प्रौढ़ता से रोकने के अद्भुत परिणामों को उपलब्ध हुए थे। आप यह मत समझना कि हिंदुस्तान के गुरुकुलों में बच्चे चौदह साल में प्रौढ़ हो जाते थे, और फिर पच्चीस साल तक उनको ब्रह्मचर्य रखा जा सकता था। वह असंभव है। अगर चौदह साल में बच्चा प्रौढ़ हो गया, तो फिर पच्चीस साल तक उसको ब्रह्मचारी रखना असभव है। और अगर कोशिश की जाएगी, तो पागल होगा। कोशिश की जाएगी तो विकृत हो जाएगा। कोशिश की जाएगी तो विकृत काम रूप उसमें प्रगट होने शुरू हो जाएंगे।

नहीं, जो प्रयोग था वह बहुत दूसरा था। वह प्रयोग यह था कि पच्चीस वर्ष तक उसको विशेष तरह का भोजन दिया जा रहा था, और विशेष तरह का वातावरण दिया जा रहा था, जहां कामुकता की कोई गंध और कोई खबर न थी। और भोजन उसे ऐसा दिया जा रहा था जो उसके स्वप्र शरीर से उसे पच्चीस वर्ष तक बाहर न आने दे। और यह मौका था, इस क्षण में उसे जो भी सिखाया जाता, वह उसके स्वप्र शरीर में प्रवेश कर जाता था।

मजे की बात है कि चौदह साल के बाद कोई भी चीज सिखायी जाए, वह गहरे प्रवेश नहीं करती। ऊपर ऊपर रह जाती है। चौदह साल के पहले जो भी सिखाया जाए वह गहरा प्रवेश करता है। सात साल के पहले जो सिखाया जाए वह और भी गहरा प्रवेश करता है। और अगर हमने किसी दिन कोई उपाय खोज लिया कि हम मां के पेट में बच्चे को कुछ सिखा सके, तो उसकी गहराई का कोई हिसाब ही लगाना असंभव है। वह भी हम किसी न किसी दिन कर पाएंगे। क्योंकि उस दिशा में काम चलता है। उस दिशा में भारत में तो काम किया है। यह पच्चीस वर्ष तक उसकी अगर ‘मेच्योरिटी ‘ रोकी जा सके, तो बच्चा स्वप्र की अवस्था में होगा। और स्वप्र की अवस्था बहुत ही ग्राहक अवस्था है।

आपने कभी खयाल किया कि स्वप्र में संदेह कभी नहीं उठता? स्वप्र में आप अचानक देखते हैं कि घोड़ा चला आ रहा है, अचानक पास आकर देखते हैं कि घोड़ा नहीं आपका मित्र है। और थोड़ा पास आता है, आप देखते हैं मित्र नहीं, यह तो वृक्ष खड़ा हुआ है। लेकिन आपके मन में यह भी नहीं उठता कि यह क्या हो रहा है? ऐसा कैसे हो सकता है कि अभी घोड़ा था, अभी मित्र हो गया, अब वृक्ष हो गया। इतना संदेह भी नहीं उठता। स्वप्र शरीर आस्थावान है। स्वप्र शरीर पूर्ण श्रद्धा से भरा है। संदेह उठता ही नहीं। अगर स्वप्र शरीर में कुछ भी डाल दिया जाए तो वह नि:सदिग्ध गहरा उतर जाता है। स्कूल शरीर आस्थावान नहीं है। सब संदेह उठता है। स्थूल शरीर का एक दफा बोध आ जाए, फिर शिक्षण मुश्किल हो जाता है..... 

क्रमशः 

ओशो 

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