नहीं कहता तुमसे पत्नी को छोडो, बल्कि कहता हूं इतना प्रेम करो कि पत्नी
में परमात्मा दिखाई पड़ने लगे। नहीं कहता पति को छोड़ो, इतना प्रेम करो कि
पति में परमात्मा दिखाई पड़ने लगे। प्रेम जैसे गहरा होता है, वहीं परमात्मा
की झलक आनी शुरू हो जाती है। है ही नहीं परमात्मा कुछ और सिवाय प्रेम की
गहरी झलक के, प्रेम की गहरी लपट के। बच्चों को छोड़ कर मत भागो! उनकी आखों
में झांको। वहां अभी परमात्मा ज्यादा ताजा है। अभी वहां धूल नहीं जमी। अभी
बच्चे सूख नहीं गए हैं; अभी रसपूर्ण हैं। उनसे कुछ सीखो!……..
अच्छी दुनिया होगी तो हम बच्चे को सिखाएंगे कम, उससे सीखेंगे ज्यादा। और
जो सिखाएंगे, वे उसे सजग करके सिखाएंगे कि ये दो कौड़ी की बातें हैं
कामचलाऊ हैं, उपयोगी हैं तेरी जिंदगी में, रोटी रोजी कमाने में सहयोगी
होंगी, इनसे आजीविका मिल जाएगी, इनसे जीवन नहीं मिलता। और हम बच्चे से
सीखेंगे जीवन। उसकी आखों में झलकता हुआ प्रेम, आश्चर्यचकित विमुग्ध भाव।
बच्चे की अवाक हो जाने की क्षमता। छोटी—छोटी चीजों से ध्यानमग्न हो जाने की
कला। एक तितली के पीछे ही दौड़ पडा तो सारा जगत भूल जाता है, ऐसा उसका
चित्त एकाग्र हो जाता है। एक फूल को ही देखता है तो ठिठका रह जाता है।
भरोसा नहीं आता। इतना सौदर्य भी इस जगत में हो सकता है! इसीलिए तो बच्चे
पूछे जाते हैं, प्रश्नों पर प्रश्न पूछे जाते हैं; थका देंगे तुम्हें, इतने
प्रश्न पूछते हैं। उनके प्रश्नों का कोई अंत नहीं। क्योंकि उनकी जिज्ञासा
का कोई अंत नहीं। उनकी मुमुक्षा का कोई अंत नहीं। जानने की कैसी अभीप्सा
है।
अगर हम में समझ हो, तो हम बच्चों से उनकी सरलता सीखेंगे, उनका प्रेम
सीखेंगे, उनका निर्दोष भाव सीखेंगे, उनकी आश्चर्यविमुग्ध होने की क्षमता
और पात्रता सीखेगे। तब शायद तुम्हारा हृदय भरने लगे एक नये रस से। तुम भी
शायद नाच सको छोटे बच्चों के साथ। तुम भी शायद खेल सको छोटे बच्चों की
भांति। तुम्हारे जीवन में भी एक लीला प्रकट हो। परमेश्वर लीलामय है, तुम भी
थोड़े लीलामय हो जाओ तो उसकी भाषा समझ में आए, उससे सेतु बने, उससे थोड़ा
संबंध जुड़े, उससे थोडी गांठ बंधे।
इसलिए कहता हूं रसमय होओ। रसमय होओ अर्थात प्रेममय होओ, प्रीतिमय होओ।
इसलिए कहता हूं : रसमय होओ। चांद तारे नाच रहे हैं, पशु पक्षी नाच रहे
हैं, पृथ्वी, ग्रह उपग्रह नाच रहे हैं, सारा अस्तित्व नाच रहा है। एक तुम
क्यों खडे हो उदास? क्यों अलग थलग? क्यों अपने को अजनबी बना रखा है? क्यों
तोड़ लिया है अपने को इस विराट अस्तित्व से? किस अहंकार में अकड़े हो? कैसी
जड़ता? झुको! अर्पित होओ! अस्तित्व से गलबहियां लो! अस्तित्व को आलिंगन करो!
नाचो इसके साथ।
सपना यह संसार
ओशो
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