मैंने एक कहानी सुनी है। एक चर्च के लोग पादरी से बहुत ऊब गए थे। और एक
क्षण आया जब कि चर्च के सदस्यों ने पादरी से सीधे —सीधे कहा: ‘अब आपको यहां
से जाना होगा।’ पादरी ने कहा. ‘मुझे एक और मौका दीजिए, बस एक मौका और;
उसके बाद भी यदि आप कहेंगे तो मैं चला जाऊंगा।’
अगले रविवार को सारा शहर चर्च में जमा हुआ कि देखें अब वह पादरी क्या
करता है, जब उसे सिर्फ एक और मौका दिया गया है। उन्होंने कल्पना भी नहीं की
थी, उन्हें कभी खयाल भी नहीं था कि उस दिन ऐसा सुंदर प्रवचन होने वाला है।
उन्होंने ऐसा प्रवचन कभी नहीं सुना था। आश्चर्यचकित होकर, मग्न होकर
उन्होंने प्रवचन का रस लिया। और जब प्रवचन समाप्त हुआ तो उन्होंने पादरी को
घेरकर उससे कहा : ‘अब आपको जाने की जरूरत नहीं है। आप यहीं रहें। हमने ऐसा
प्रवचन पहले कभी नहीं सुना, पूरी जिंदगी में नहीं सुना। आप यहीं रहें और
आपकी तनख्वाह भी बढ़ाई जाती है।’
लेकिन तभी एक व्यक्ति ने, जो धर्ममंडली का प्रमुख सदस्य था, पादरी से
पूछा. ‘मुझे बस एक बात बताने की कृपा करें। जब आपने व्याख्यान शुरू किया तो
आपने अपना बायां हाथ उठाया और दो उंगलिया दिखाईं और जब आपने व्याख्यान
समाप्त किया तो फिर आपने दायां हाथ उठाया और दो अंगुलियां दिखाईं। इस
प्रतीक का क्या अर्थ है?’ पादरी ने कहा: ‘अर्थ आसान है। वे उद्धरणचिह्न के
प्रतीक हैं। वह प्रवचन मेरा नहीं था, वह उधार था।’
उन उद्धरणचिह्नों को सदा स्मरण रखो। उनको भूल जाना अच्छा लगता है।
लेकिन तुम जो कुछ भी जानते हो वह सब उद्धरणचिह्नों के भीतर है। वह
तुम्हारा नहीं है। और तुम उन उद्धरणचिह्नों को तभी छोड़ सकते हो जब कोई चीज
तुम्हारा अपना अनुभव बन जाए। ये विधियां जानकारी को अनुभव में बदलने की
विधियां हैं।
ये विधियां परिचय को समझ में रूपांतरित करने के लिए हैं। वह जो बुद्ध का
अनुभव है, कृष्ण का अनुभव है, क्राइस्ट का अनुभव है, वह इन विधियों के
द्वारा तुम्हारा हो जाएगा, तुम्हारा अपना ज्ञान हो जाएगा। और जब तक यह
तुम्हारा अनुभव नहीं बनता, तब तक कोई सत्य सत्य नहीं है। वह एक खूबसूरत
असत्य हो सकता है, एक सुंदर झूठ हो सकता है, लेकिन कोई सत्य सत्य नहीं है
जब तक वह तुम्हारा अनुभव न हो जाए तुम्हारा निजी, प्रामाणिक अनुभव न हो
जाए।
तो ये तीन बातें सदा ध्यान में रहें। पहली बात कि सदा स्मरण रखो कि मेरा
घर जल रहा है। दूसरी बात कि शैतान की मत सुनो। वह हमेशा तुम्हें कहेगा कि
जल्दी क्या है! और तीसरी बात स्मरण रहे कि परिचय बोध नहीं है, समझ नहीं है।
मैं यहां जो कुछ कह रहा हूं वह तुम्हें उसका थोड़ा परिचय देगा। वह जरूरी
है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। वह तुम्हारी यात्रा का आरंभ है, अंत नहीं है।
कुछ करो कि परिचय परिचय ही न रहे, स्मृति ही न रहे, वह तुम्हारा अनुभव बन
जाए, तुम्हारा जीवन बन जाए।
तंत्र सूत्र
ओशो
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