तुम्हारा प्रेम तो भय से बचने का उपाय भर है। इसलिए जब तुम प्रेम में
होते हो, तुम निर्भय मालूम पड़ते हो, कोई तुम्हें बल देता है। और यह
पारस्परिक बात है। तुम दूसरे को बल देते हो, दूसरा तुम्हें बल देता है।
दोनों दीनहीन हैं और दोनों किसी दूसरे को खोज रहे हैं। और फिर दो दीनहीन
व्यक्ति मिलते हैं और एक दूसरे को बल देने की चेष्टा करते हैं। यह चमत्कार
है। यह हो कैसे सकता है? यह केवल वंचना है, धोखा है। तुम सोचते हो कि कोई
तुम्हारे पीछे है, तुम्हारे साथ है। लेकिन तुम भलीभाति जानते हो कि मृत्यु
में कोई भी तुम्हारे साथ नहीं हो सकता। और जब कोई मृत्यु में तुम्हारे साथ
नहीं हो सकता तो वह जीवन में तुम्हारे साथ कैसे हो सकता है? यह मृत्यु को
टालने का, भुलाने का उपाय भर है। क्योंकि तुम भयभीत हो, तुम्हें निर्भय
होने के लिए किसी की जरूरत पड़ती है।
कहा जाता है, इमर्सन ने कहीं कहा है, कि बड़े से बड़ा योद्धा भी अपनी
पत्नी के सामने कायर होता है। नेपोलियन भी अपनी पत्नी के सामने कायर होता
है। क्योंकि पत्नी जानती है कि पति को उसके सहारे की जरूरत है, उसे स्वयं
होने के लिए उसके बल की जरूरत है। पति पत्नी पर निर्भर है। जब वह युद्धक्षेत्र से वापस आता है, लड़ कर वापस आता है, तो कापता आता है, भयभीत आता
है। पत्नी की बाहों में विश्राम पाता है, आश्वासन पाता है। पत्नी उसे
सांत्वना देती है, आश्वस्त करती है। पत्नी के सामने वह बच्चे जैसा हो जाता
है। हरेक पति पत्नी के सामने बच्चा है। और पत्नी? वह पति पर निर्भर है। वह
पति के सहारे जीती है। वह पति के बिना नहीं जी सकती, पति उसका जीवन है।
यह पारस्परिक धोखा है। दोनों भयभीत हैं, क्योंकि मृत्यु है। दोनों
एक दूसरे के प्रेम में मृत्यु को भुलाने की चेष्टा करते हैं।
प्रेमी प्रेमिका निर्भीक हो जाते हैं, या निर्भीक होने की चेष्टा करते हैं।
वे कभी कभी बहुत निर्भीकता के साथ मृत्यु का मुकाबला भी कर लेते हैं।
लेकिन वह भी ऊपरी है, वैसा दिखता भर है।
हमारा प्रेम भय का ही अंग है उससे बचने के लिए है। सच्चा प्रेम तब घटित
होता है जब भय नहीं रहता है, जब भय विलीन हो जाता है, जब तुम जानते हो कि न
तुम्हारा कोई आरंभ है और न तुम्हारा कोई अंत है।
और इस पर विचार मत करो। भय के कारण तुम ऐसा सोचने लग सकते हो। तुम सोच
सकते हो: ‘हां, मैं जानता हूं मेरा कोई अंत नहीं है, मेरी कोई मृत्यु नहीं
है, आत्मा अमर है।’ तुम भय के कारण ऐसा सोच सकते हो, लेकिन उससे कुछ भी
नहीं होगा।
प्रामाणिक अनुभव तभी होगा जब तुम ध्यान में गहरे उतरोगे। तब भय विसर्जित
हो जाएगा, क्योंकि तुम स्वयं को अनंत असीम देखते हो। तुम अनंत की तरह फैल
जाते हो आदिहीन अतीत में, अंतहीन भविष्य में। और इस क्षण में, इस वर्तमान
क्षण में उसकी गहराई में तुम हो। तुम बस हो, सनातन से हो तुम्हारा कभी आरंभ
नहीं था, तुम्हारा कभी अंत नहीं होगा।
तंत्र सूत्र
ओशो
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