योगेश, उपलब्ध व्यक्ति की उपलब्धि का पता अन्य को नहीं चल सकता।
अनुमान ही हो सकता है। अंधे को कैसे पता चलेगा कि आंख वाले को प्रकाश दिखाई
पड़ता है? अनुमान कर सकता है। क्योंकि टटोल कर देख सकता है कि आंख वाला
आदमी बिना टटोले चलता है। टटोल कर देख सकता है कि आंख वाले आदमी के हाथ में
लकड़ी नहीं है। अंधा है, लेकिन इतना अनुमान कर सकता है कि आंख वाला उठता है
तो किसी से पूछता नहीं कि दरवाजा कहां है, चुपचाप निकल जाता है। बिना पूछे
निकल जाता है। जरूर दिखाई पड़ता होगा। क्योंकि मुझे तो पूछकर निकलना पड़ता
है। मुझे तो लकड़ी से खटखट खोजना पड़ता है। नि मुझे तो एक एक कदम राह पर चलता
हूं तो सम्हलना पड़ता है। मैं दौड़ नहीं सकता और मैं दूसरों को दौड़ते देखता
हूं। बच्चे उसके पास किलकारी मारते हैं और दौड़ते हैं, बाहर और भीतर घर के
होते हैं, इतनी सुगमता से, तो जरूर उनके पास कुछ है जो मेरे पास नहीं है।
पर यह अनुमान ही होगा, ओ प्रमाण नहीं।
लेकिन, अगर अनुमान भी करने में तुम समर्थ हो जाओ, तो भी तुम्हारे लिए
संभावना का एक द्वार खुलता है। फिर प्रत्येक बुद्धपुरुष का व्यवहार अलग अलग
है, क्योंकि प्रत्येक बुद्धपुरुष एक अनूठी, अद्वितीय घटना है। इसलिए अगर
तुमने पहले से ही कुछ सिद्धांत तय कर रखे हों, कि ऐसा होना चाहिए
बुद्धपुरुष, अनुभूत व्यक्ति ऐसा होना चाहिए, तो तुम अनुमान भी न कर पाओगे।
तो तुम बड़ी अड़चन में पड़ोगे। महावीर नग्न हैं, और बुद्ध नग्न नहीं है!
हालैंड में कृष्णमूर्ति का एक शिविर था। एक महिला भारत से हालैंड गई
शिविर में सम्मिलित होने। लौट कर आई तो उसने मुझे कहा कि मेरी भ्रांति टूट
गई! मैं तो फिर शिविर में उपस्थित हो ही नहीं सकी। बात ही कुछ ऐसी हो गई!
जल्दी आ गई थी तो मैंने पूछा भी कि अभी तो शिविर समाप्त ही नहीं हुआ, तू
वापिस भी आ गई? उसने कहा, सब व्यर्थ है। क्योंकि मामला ऐसा हुआ कि शिविर के
एक दिन पहले मैं बाजार गई, कुछ सामान खरीदने, मैंने एक दुकान पर
कृष्णमूर्ति को टाई खरीदते देखा। बुद्धपुरुष और टाई खरीदें! महावीर स्वामी
और टाई खरीदें। एक तो नंग धड़ंग और फिर टाई बांधें, तो खूब मजाक हो जाएगी।
जैन महिला है। तो कहीं न कहीं छिपी तो महावीर की धारणा बैठी रही होगी।
कृष्णमूर्ति से भी अपेक्षा तो वही होगी। चाहे प्रगट न हो, चेतन में न हो,
अचेतन में होगी। यही तो उपद्रव है। तो कृष्णमूर्ति और टाई खरीदें! और बाजार
पाई खरीदने आएं! और न केवल इतना, वह खड़ी हो गई दुकान में भीतर जाकर, ठीक
से निरीक्षण करने को, न केवल कृष्णमूर्ति टाई खरीद रहे थे, बल्कि उन्होंने
कम से कम दो सौ टाइयां फैला रखी थीं। यह भी नहीं जंच रही; वह भी नहीं जंच
रही; इसका रंग नहीं मेल खा रहा, इस का ढंग नहीं मेल खा रहा। उसने कहा, वह
जो मैंने देखा, अपनी आंखों से जो देखा, मैंने कहा, यह आदमी क्या ज्ञान को
उपलब्ध होगा! इस आदमी को कैसा बुद्धत्व! अभी जो टाइयों में उलझा है!
फिर शिविर में सम्मिलित होने का कोई कारण ही न रहा।
लेकिन अगर कोई कृष्ण का भक्त होता, तो शायद अड़चन न होती। क्योंकि कृष्ण
कुछ कम वस्त्रों की चिंता नहीं करते मालूम होते हैं। पीतांबर, मोरमुकुट टाई
तो उन दिनों नहीं होती थी नहीं तो जरूर बांधते, छोड़ सकते नहीं थे; जब
मोरमुकुट तक बांधने में न झेंपे, तो टाई बांधने में कुछ अड़चन होती!
लेकिन जैनों ने तो कृष्ण को नर्क में डाल दिया है उसी मोरमुकुट के कारण।
और थोड़े बहुत दिन के लिए नहीं डाला है, जब तक यह सृष्टि है तब तक नर्क में
रहेंगे। यह सृष्टि नष्ट होगी, फिर दूसरी सृष्टि बनेगी, तब मुक्त हो
पाएंगे। छोटे मोटे पापी तो कई दफा आ जाएंगे, चले जाएंगे, आवागमन हो जाएगा
बहुत, लेकिन कृष्ण तो सातवें नर्क में पड़े हैं सो पड़े ही रहेंगे। मोरमुकुट
को क्षमा न कर पाए!
अगर तुमने कोई एक धारणा बांध ली है मजबूती से, तुमने कोई पक्षपात बना
लिया है, तो फिर अड़चन होगी। फिर तो तुम अनुमान भी करने में समर्थ न रह
जाओगे। अनुमान भी वही कर सकता है जो पक्षपातरहित हो। थोड़ा मुक्त हो। कोई
धारणा पहले से ही निर्णीत न हो। और कोई धारणा काम नहीं आएगी। क्योंकि
महावीर महावीर हैं, कृष्ण कृष्ण, बुद्ध बुद्ध, मुहम्मद मुहम्मद। सब उस एक
को उपलब्ध हुए हैं, लेकिन फिर भी सबने गीत तो अपनी ही आवाज में गाए। सबने
अभिव्यक्ति तो अपने ही ढंग से दी। इन छोटी छोटी बातों से निर्णय नहीं होगा।
हां, अगर इन सारी बातों की तलहटी में उतरोगे, तो कुछ बातें जरूर
पाओगे जैसे एक समता पाओगे, सुख में, दुख में; सफलता में, असफलता में,
दरिद्रता में, समृद्धि में; एक समतुलता पाओगे, तराजू हिलेगा ही नहीं, दोनों
पलड़े हमेशा बराबर ही रहेंगे। कपड़े पहनें कि न पहनें, नग्न हों कि मोरमुकुट
बांधे, इससे भेद नहीं पड़ेगा। वह जो सम्यक्तत्व है, उससे कपड़ों से क्या
लेना देना? एक दिन भोजन करें, एक दिन उपवास करें; दिन में दो बार भोजन
करें, कि तीन बार भोजन करें, कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। फर्क तो पड़ेगा अंतरतम
में। वहां एक ज्योति सदा प्रज्वलित रहेगी। लेकिन उस ज्योति की प्रतीति केवल
उन्हीं को हो सकती है जो निष्कर्ष रहित हैं।
सपना यह संसार
ओशो
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