वैज्ञानिक कहते हैं कि जब तुम किसी की तरफ बहुत प्रेम से देखते हो तो
तुम्हारे भीतर से एक ऊर्जा उसकी तरफ बहती है। अब इस ऊर्जा को नापने के भी
उपाय हैं। तुम्हारी तरफ से एक विशिष्ट ऊष्मा, गर्मी उसकी तरफ प्रवाहित होती
है ठीक वैसे ही जैसे विद्युत के प्रवाह होते हैं; ठीक वैसे ही विद्युतधारा
तुम्हारी तरफ से उसकी तरफ बहने लगती है।
इसलिए अगर तुम्हें कोई प्रेम से देखे तो अपनी प्रेम की आंख को छिपा नहीं
सकता, तुम पहचान ही लोगे। तुम्हें जब कोई घृणा से देखता है, तब भी छिपा
नहीं सकता; क्योंकि घृणा के क्षण में भी एक विध्वंसात्मक ऊर्जा छुरी की तरह
तुम्हारी तरफ आती है, चुभ जाती है।
प्रेम तुम्हें खिला जाता है, घृणा तुम्हें मार जाती है। घृणा में एक जहर
है, प्रेम में एक अमृत है। रूस में एक महिला है, उस पर बड़े वैज्ञानिक
प्रयोग हुए हैं। वह सिर्फ किसी वस्तु पर ध्यान करके उसे चला देती है। टेबल
के ऊपर वह दस फीट की दूरी पर खड़ी है और एक बर्तन रखा है। वह एक पांच मिनट
तक उस पर ध्यान करती रहेगी, उसकी आंखें उस पर एकजुट जम जाएंगी और बर्तन
कंपने लगेगा। और वह अगर कहेगी कि बाएं चलो, तो बर्तन बाएं सरकने लगेगा;
दाएं चलो, तो बर्तन दाएं सरकने लगेगा।
इस पर बहुत अध्ययन हुआ है कि मामला क्या है। लेकिन एक और आश्चर्य की
घटना पता चली कि अगर वह पांच मिनट यह प्रयोग करे तो उसका आधा किलो वजन कम
हो जाता है। तो ऊर्जा निश्चित ही प्रवाहित हुई। उसने ऊर्जा खोई। पांच मिनट
के प्रयोग में उसने काफी जोर से ऊर्जा को फेंका। उसी ऊर्जा के धक्के में
बर्तन हटने लगा, सरकने लगा, बंध गया।
हम एक दूसरे में बह रहे हैं जानें हम, न जानें हम।
तुमने यह भी देखा होगा कि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनके पास तुम्हें
बहाव मालूम होगा; जैसे तुम किसी नदी की धारा में पड़ गए, जो बह रही है। उनके
साथ तुम रहोगे तो ताजगी मालूम होगी। उनके साथ तुम रहोगे तो एक प्रवाह है,
गति मालूम होगी। फिर कुछ ऐसे लोग हैं जो डबरों की तरह हैं; उनके पास तुम
रहोगे तो ऐसा लगेगा, तुम भी कुंद हुए, बंद हुए, कहीं बहाव नहीं मालूम होता,
सड़ाध सी मालूम होती है, सब रुका रुका, द्वार दरवाजे बंद, नई हवा नहीं, नई
रोशनी नहीं।
तुमने जाना होगा, देखा होगा। तुम जिनको आमतौर से साधु संत कहते हो, वे
ऐसे ही डबरे हैं। उनके पास तुम जा कर बैठो, थोड़ी देर ठीक, चौबीस घंटे किसी
संत के पास रहना बड़ा मुश्किल है; वह तुम्हारी जान लेने लगेगा। उसके पास तुम
हंस न सकोगे जोर से, तुम मजाक न कर सकोगे, तुम गीत न गुनगुना सकोगे। वह
खुद भी बंद है, वह तुम्हें भी बंद करेगा। वह खुद अकड़ा बैठा है, वह तुम्हें
भी अकड़ाएगा। उसने सब द्वार दरवाजे अपने बंद कर लिए हैं। वह कब्र बन गया है,
वह तुमको भी कब्र बना देगा।
इसीलिए तो लोग साधु संतों के दर्शन करके एकदम भागते हैं। नमस्कार
महाराज और भागे! पैर छुए और भागे! ठीक ही करते हैं। किसी आतरिक अनुभूति के
बल ऐसा करते हैं। पूजा कर लेते हैं, सत्संग नहीं करते। सत्संग खतरनाक हो
सकता है।
जिन व्यक्तियों के पास प्रवाह मालूम होता है, जिनके पास तुम्हारे जीवन
में भी स्कुरणा होती है, तुम्हारे भीतर भी कुछ कंपने लगता है, डोलने लगता
है, गति होने लगती है उसका केवल इतना ही अर्थ है कि वे लोग तुम्हारे भीतर
अपने प्राणों को डालते हैं; वे तुम्हें कुछ देने को तत्पर हैं; कंजूस नहीं
हैं, कृपण नहीं हैं। और जो तुम्हारे भीतर कुछ डालता है वह तुम्हें भी तत्पर
करता है कि तुम भी दो! तुम्हारे भीतर भी प्रतिध्वनि उठती है, संवेदन उठता
है।
अष्टावक्र महागीता
ओशो
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