हिंदुओं की कथा में कहा गया है कि मुख्य अप्सरा उर्वशी ने एक
पुरूष से प्रेम करने के लिए एक दिन पृथ्वी पर जाने की अनुमति मांगी। इंद्र
ने कहा, ‘क्या मूर्खता है, तुम यहां प्रेम कर सकती हो। और इतने सुंदर लोग
तुम्हें पृथ्वी पर नहीं मिलेंगे। वे भले ही सुंदर हो पर, अमर है। इसमें
कोई मजा नहीं आता, उनका प्रेम एक मुर्दा प्रेम है। सच में वे सब मरे हुए
है।’
वास्तव में वे मुर्दा ही है। क्योंकि उन्हें जीवंत बनाने के
लिए प्रेम जगाने के लिए मृत्यु चाहिए। जो वहां पर नहीं है। वे सदा-सदा
रहेंगे। वे कभी मर नहीं सकते। इसलिए वे जीवित भी कैसे हो सकते है? वह
जीवंतता मृत्यु के विपरीत ही होती है। आदमी जीवित है, क्योंकि मृत्यु
सतत संघर्ष कर रही है। मृत्यु की भूमिका में जीवन है।
तो उर्वशी ने कहां, मुझे पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दो। मैं किसी
को प्रेम करना चाहती हूं। उसे आज्ञा मिल गई। तो वह नीचे पृथ्वी पर आ गई और
एक युवक पुरुरवा के प्रेम में पड़ गई। लेकिन इंद्र की और से एक शर्त थी।
इंद्र ने शर्त रखी थी कि वह पृथ्वी पर जा सकती है, किसी से प्रेम कर सकती
है, पर जो पुरूष उसे प्रेम करे उसे यह पहले ही पता देना होगा कि वह उस से
यह कभी न पूछे कि वह कौन है।
प्रेम के लिए यह कठिन है, क्योंकि प्रेम जानना चाहता है। प्रेम
प्रेमी के विषय में सब कुछ जानना चाहता है। हर अज्ञात चीज को ज्ञात करना
चाहता है। हर रहस्य में प्रवेश करना चाहता है। तो इंद्र ने बड़ी चालाकी से
यह शर्त रखी, जिसकी चालबाजी को उर्वशी नहीं समझ पाई। वह बोली, ‘ठीक है,
मैं अपने प्रेमी को कह दूंगी कि वह मेरे बारे में कभी कुछ न जानना चाहे।
कभी यह न पूछे कि मैं कौन हूं। और यदि वह पूछता है तो तत्क्षण उसे छोड़कर
मैं वापस आ जाऊगी।‘ और उसे पुरुरवा से कहा, ‘कभी मुझ से यह मत पूछना कि
मैं कौन हूं। जि क्षण तुम पूछोगे, मुझे पृथ्वी को छोड़ना पड़ेगा।’
लेकिन प्रेम तो जानना चाहता है। और इस बात के कारण पुरुरवा और भी
उत्सुक हो गया होगा कि वह कौन हे। वह सो नहीं भी सका। वह उर्वशी की और
देखता रहा। वह है कौन? इतनी सुंदर स्त्री, किसी स्वप्निल पदार्थ की बनी
लगती है। पार्थिव, भौतिक नहीं लगती। शायद वह कहीं और से, किसी अज्ञात आयाम
से आई है। वह और-और उत्सुक होता गया। लेकिन सह और भयभीत भी होता गया। कि
वह जा सकती है। वह इना भयभीत हो गया कि जब रात वह सोती, उसकी साड़ी का
पल्लू वह अपने हाथ में ले लेता। क्योंकि उसे अपने पर भी भरोसा नहीं था।
कभी भी वह पूछ सकता था, प्रश्न सदा उसके मन में रहता था। अपनी नींद में भी
वह पूछ सकता था। और उर्वशी ने कहा था कि नींद में भी उसके बाबत नहीं पूछना
है। तो वह उसकी साड़ी का कोना अपने हाथ में लेकर सोता।
लेकिन एक रात वह अपने को वश में नहीं रख पाया और उसने सोचा कि अब
वह उससे इतना प्रेम करती है कि छोड़कर नहीं जाएगी। तो उसने पूछ लिया।
उर्वशी को अदृश्य होना पड़ा, बस उसकी साड़ी का एक टुकड़ा पुरुरवा के हाथ
में रह गया। और कहा जाता है कि वह अभी भी उसे खोज रहा है।
स्वर्ग में प्रेम नहीं हो सकता। क्योंकि असल में वहां कोई जीवन
ही नहीं है। जीवन यहां इस पृथ्वी पर है, जहां मृत्यु है। जब भी तुम कुछ
सुरक्षित कर लेते हो, जीवन खो जाता है। असुरक्षित रहो। यह जीवन का ही गुण
है। इसके बारे में कुछ किया नहीं जा सकता। और यह सुंदर है।
जरा सोचो, यदि तुम्हारा शरीर अमर होता तो कितना कुरूप होता। तुम
आत्मघात करने के उपाय खोजते फिरते। और यदि यह असंभव है, कानून के विरूद्ध
है, तो तुम्हें इतना कष्ट होगा कि कल्पना भी नहीं कर सकते। अमरत्व एक
बहुत लंबी बात है। अब पश्चिम में लोग स्वेच्छा मरण की बात सोच रहे है।
क्योंकि लोग अब लंबे समय तक जी रहे है1 तो जो व्यक्ति सौ वर्ष तक पहुंच
जाता है वह स्वयं को मारने का अधिकार चाहता है।
और वास्तव में,यह अधिकार देना ही पड़ेगा। जब जीवन बहुत छोटा था
तो हमने आत्महत्या न करने का कानून बनाया था। बुद्ध के समय में चालीस या
पचास साल का हो जाना बहुत था। औसत आयु कोई बीस साल के करीब थी। भारत में
अभी बीस साल पहले तक औसत आयु तेईस साल थी। अब स्वीडन में औसत आयु तिरासी
साल है। तो लोग बड़ी आसानी से डेढ़ सौ साल तक जी सकते है। रूस में कोई
पंद्रह सौ लोग है जो डेढ़ सौ तक पहुंच गए है। अब यदि वे कहते है कि उन्हें
स्वयं को मारने का अधिकार है। क्योंकि अब बहुत हो चुका, तो हमें यह
अधिकार उन्हें देना होगा। इससे उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता।
देर-अबेर आत्महत्या हमारा जन्मसिद्ध अधिकार होगा। अगर कोई मरना
चाहता है तो तुम उसे मना नहीं कर सकते किसी भी कारण से नहीं। क्योंकि अब
जीवन का कोई अर्थ नहीं रह गया। पहले ही बहुत हो चुका। सौ साल के व्यक्ति
को जीने जैसा नहीं लगता। ऐसा नहीं है कि यह परेशान हो गया है। कि उसके पास
भोजन नहीं है। सब कुछ है, पर जीवन का कोई अर्थ नहीं रह गया।
विज्ञान भैरव तंत्र
ओशो
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