अगर तुम्हें समझ में आ गया कि शराब पीना व्यर्थ है, तो यही समझ काफी
होनी चाहिए। इसी समझ के आधार पर शराब छूट जानी चाहिए। अगर इस समझ से ही न
छूटती हो तो अभी मत छोड़ना। क्योंकि व्रत लेकर तुम कोई न कोई बेईमानी करोगे।
फिर व्रत ही क्यों लेना। जब समझ के अनुकूल ही नहीं है अभी बात तो समझ के
प्रतिकूल व्रत क्यों लेना!
समझ के प्रतिकूल लिया गया व्रत तुम्हारे भीतर द्वंद्व पैदा करेगा,
कानफ्लिक्ट पैदा करेगा, संघर्ष पैदा करेगा। तुम दो हिस्सों में बंट जाओगे।
एक हिस्सा पीना चाहेगा, एक हिस्सा कहेगा कि कैसे हो सकता है, सबके सामने
व्रत ले लिया है! तो तुम्हारे भीतर तनाव पैदा होगा, अशांति पैदा होगी,
चिंता पैदा होगी, बेचैनी पैदा होगी। और धर्म से बेचैनी पैदा नहीं होती,
धर्म से चैन आता है। धर्म से अशांति पैदा नहीं होती, धर्म से शांति उतरती
है। तो जिस धर्म से भी अशांति पैदा हो, जानना कि वह धर्म नहीं है।
तुम देखे? इधर मृत्यु डरा रही, इधर धर्म डरा रहा। इधर मृत्यु कहती है,
गए। इधर मृत्यु कहती है, जल्दी करो, भोग लो। और इधर धर्म कहता है, भूलकर
भोगना मत, नहीं तो जलाए जाओगे नर्क की लपटों में। कीड़े मकोड़े बनोगे। भटकोगे
ही योनियों और योनियों में। महादुख होगा परिणाम। जरा सा भोग महादुख में ले
जाएगा। ये क्षणभंगुर सुख की आशा अनंत अनंतकालीन नर्क में डाल देगी। इधर
मौत है, वह कहती है, देर क्या कर रहे, यह जवानी हाथ से चली जा रही है, पी
लो, पिला लो, मौज कर लो। फिर दुबारा कोई आना नहीं है। मौत सब छीन लेगी। यह
घड़ीभर के लिए जो जीवन मिला है, इसे ऐसा ही न गुजर जाने दो। आधे में मृत्यु
और आधे में धर्म है और आदमी इन दोनों के बीच में कटा हुआ खड़ा है। इधर मृत्यु खींचती है, उधर महात्मा। तुम्हारी बड़ी दुर्गति है।
तुमने इस सत्य को समझा या नहीं? तुम्हारी बड़ी दुर्गति है! अगर मृत्यु को
मानो तो मृत्यु कहती है, भोग लो, खोओ मत क्षण, कल का कुछ पता नहीं, कौन
जाने कल हो, न हो। तो जो करना है, कर लो। और इधर महात्मा कहता है,
सोच विचारकर करना। ऐसा मत कर लेना कुछ कि कल बिगड़ जाए आज के पीछे। कल का
खयाल रखकर करना। मौत के बाद का ध्यान रखना। बीज तो अभी बोओगे, फल कौन
काटेगा? ऐसा आदमी दोनों के बीच में खड़ा है। न घर का न घाट का। धोबी का गधा।
ओशो
एस धम्मो सनंतनो
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